राजकुमार मल
Bhatapara जन प्रतिनिधियों ने भी ओढ़ी हुई हैं खामोशी
Bhatapara भाटापारा- कहने भर का है स्टेडियम। यही वजह है कि सड़क पर अभ्यास करते हैं खिलाड़ी। मांग और शिकायतों से दूरी बना ली है खिलाड़ियों और खेल प्रेमियों ने, क्योंकि तवज्जो नहीं मिलेगी, यह खूब अच्छे से मालूम है।
विकास कार्य ही नहीं, खेल सुविधाओं को लेकर जैसी उदासीनता जनप्रतिनिधियों ने बरती उसका ही परिणाम है अधूरा स्टेडियम। पैसे पूरे खर्च किए गए लेकिन पूर्ण क्यों नहीं हुआ ? सवालों से नागरिकों ने दूरी बना ली है, तो जन प्रतिनिधियों ने भी खामोशी ओढ़ी हुई है। इसके बावजूद अपने दम पर क्षेत्र के खिलाड़ी, शहर का नाम रोशन किए हुए हैं।
Bhatapara इसलिए सड़क पर
खेल प्रतिभाओं को निखारने के लिए बनाए गए एकमात्र स्टेडियम में आउटडोर और इंडोर गेम्स के लिए जरूरी संसाधन खोजने पर भी नहीं मिलते। रावण भाटा में खेल मैदान तो है लेकिन जरूरी सुविधा, खेल प्रेमी और खिलाड़ी अपने दम पर जुटाते हैं। बीच शहर में हाई स्कूल का हाल तो और भी खराब है। यही वजह है कि खिलाड़ी अल सुबह सड़क पर अभ्यास करने के लिए विवश हैं।
Bhatapara शिकायत अनसुनी, मांग अधूरी
खेलप्रेमी और खिलाड़ी। इन्होंने शिकायत करना छोड़ दिया है क्योंकि हल को लेकर जैसी उदासीनता बरती जाती है, उसकी मिसाल शायद ही कहीं मिले। मांग करना इसलिए भूल चुके हैं क्योंकि तय है मांग पूरी नहीं होगी। इसके बावजूद अपने दम पर संसाधन जुटा कर देश और प्रदेश स्तर पर अपना और अपने शहर का नाम रोशन कर रहे हैं खिलाड़ी।
Bhatapara फौज है इनकी
‘दमदार और जनहितैषी’, जैसी सोच रखने वाले जनप्रतिनिधियों की फौज है, तो समाजसेवी चेहरे और स्वयंसेवी संगठन भी खूब नजर आते हैं। लेकिन उपस्थिति केवल कागजों पर दिखाई देती है। ठोस पहल की शुरुआत की थी तत्कालीन कलेक्टर रजत बंसल ने, लेकिन योजना धरातल पर उतरती इसके पहले ही उनके तबादले ने सब कुछ पर पूर्ण विराम लगा दिया। चौतरफा उपेक्षा के बावजूद शहर के खिलाड़ियों ने हिम्मत बनाए रखा है।