खैरागढ़। श्रीमद्भागवत यज्ञ ज्ञान महोत्सव का 18 से 26 अक्टूबर तक 9 दिवसीय संगीतमय आयोजन खैरागढ़ ठाकुरपारा निवासी गोपाल सिंह दीक्षित एवं परिवार द्वारा ममता परिसर धमना रोड मनोहर गौशाला के पास किया जा रहा है।
आयोजन में पुरी पीठाधीश्वरशंकराचार्य के कृपापात्र शिष्य मधुर सरस वक्ता कथा व्यास आचार्य प्रवर पंडित श्रीराम प्रताप शास्त्री महाराज, कोविद के सुललित वाणी से कथा व्यास आचार्य द्वारा अमृतवाणी सुधा रस प्रवाहित होगा। श्रीमद् भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ महोत्सव के प्रथम दिवस विधि विधान एवं पूजा अर्चना से वैदिक स्थापना की गई। कथा स्थल से मातृ शक्ति माताओ, बहनों के द्वारा मंगल कलश यात्रा सिर पर धारण किए बिना चरण पदुका पहने निकाली गई एवं पवन नदी से जल संग्रहित कर मंगल कलश यात्रा कथा स्थल पर लाकर स्थापित किया गया। कथा व्यास आचार्य भारतीय संस्कृति एवं परंपरा अनुसार कथा व्यास आसन पर सर्वप्रथम संपूर्ण कथा दिवस तक परीक्षित स्वरूप विराजमान होने वाले मोनीष सिंह दीक्षित एवं कविता सिंह द्वारा तथा पिता गोपाल सिंह दीक्षित एवं परिजनों एवं कथा श्रवण करने उपस्थित भक्तों द्वारा तिलक वंदन व पूजा वंदना की गई। श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञ महोत्सव के प्रथम दिवस की गोकर्ण कथा प्रारंभ पूर्व श्रीमद् भागवत महापुराण भगवान की स्तुति वंदना की गई।
कथा प्रारंभ करते हुए आचार्य ने कहा कि इस युग अर्थात कलयुग में प्रभु के सानिध्य एवं मोक्ष के काफी सरल विधान है जबकि सतयुग त्रेता एवं द्वापर में प्रभु को पाने एवं उनके सानिध्य के जो विधान थे वह कठिन एवं दीर्घकालीन थे तथा प्रत्येक के लिए असंभव पूर्ण भी था। आपने बताया कि मातृशक्ति बहनों माताओ ने जो मंगल कलश सिर पर धारण कलश यात्रा की है उनके कलश यात्रा के दौरान एक-एक पग एक यज्ञ के पुण्य के बराबर जबकि एक यज्ञ किया जाना प्रत्येक के लिए संभव नहीं हो पाता।
इसी प्रकार इंसान मृत्यु लोक पर आकरअपने पारिवारिक कर्तव्यों का पालन पुत्र, पिता भाई पति आदि रिश्तो को निभाने में तो करता है लेकिन जो हम सबका स्वामी है जिसके हम सब संतान हैं उसके प्रति अपने कर्तव्य को भूल जाता है। संगीतमय भागवत ज्ञान यज्ञ महोत्सव के द्वितीय दिवस शप्तस्फठनीक शिवलिंग का समस्त परिजनों ने रुद्राभिषेक किया पश्चात द्वितीय दिवस की कथा का वृतांत वर्णन करते हुए कथा व्यास आचार्य श्री ने अमृतवाणी से सभी उपस्थित परिजन भक्तजन श्रद्धालुओं कथावृत्तों को बताया कि प्रभु अपने भक्तों सहायता के लिए उनकी रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं और उन पर आई कठिनाइयों परेशानी को किसी ने किसी रूप में दूर करते हैं। भक्त और प्रभु के रिश्तो के ऐसे अनेक उदाहरण है अपने महाभारत काल वर्णन करते हुए कहां की जब अश्वत्थामा उत्तर के गर्भ में पाल रहे शिशु के वध हेतु ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करता है जो कि कौरव और पांडव की वंश का अंतिम संतान था की रक्षा करने हेतु स्वयं भगवान ने उत्तरा के गर्भ में प्रवेश कर 6 माह तक गर्भ में रहकर कौरव और पांडव वंश के अंतिम संतान की रक्षा करता है। भागवत ज्ञान यज्ञ महोत्सव आयोजक गोपाल सिंह दीक्षित एवं समस्त परिवार ने सभी श्रद्धालुओं से अपील करते हुए कहा है कि भागवत महापुराण के पावन कथा श्रवण कर धन्य लाभ प्राप्त कर उपस्थिति दें।