बस्तर: अब समृद्धि की ओर, नई औद्योगिक नीति के साथ निवेश और आर्थिक प्रगति का नया दौर


हिमांशु शर्मा

बस्तर… यह नाम सुनते ही आंखों के सामने घने जंगल, झरनों की गूंज और जनजातीय लोककला की अनूठी छवियां उभर आती हैं। पर अब बस्तर की पहचान केवल प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर तक सीमित नहीं रहेगी। छत्तीसगढ़ सरकार की नई औद्योगिक नीति ने इस क्षेत्र को औद्योगिक निवेश, रोजगार और सामाजिक विश्वास का नया केंद्र बना दिया है। बस्तर की नई पीढ़ी इस बदलाव को महसूस भी कर रही है। माओवादी हिंसा का दायरा तेजी के साथ सिकुड़ रहा है और युवा उत्साह के साथ बाकी दुनिया से कम से कदम मिलाकर आगे बढ़ाने के लिए उत्सुक हैं।

संस्कृति और उद्योग का संगम

बस्तर की जनजातीय कला और कारीगरी सदियों से यहां की आत्मा रही है। ढोकरा कला, घड़वा धातु कला, बांस और लकड़ी के सजावटी सामान, वस्त्र और स्थानीय हस्तशिल्प आज भी विश्व में पहचान रखते हैं। नई औद्योगिक नीति ने इन पारंपरिक उत्पादों को आधुनिक बाजार से जोड़ने की दिशा में विशेष पहल की है। जनजातीय हस्तशिल्प और कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन देकर उन्हें बस्तर के अपने ब्रांड रूप में स्थापित किया जा रहा है। स्थानीय बुनकरों, शिल्पकारों और महिला कारीगरों को उद्योग स्थापित करने में प्राथमिकता और वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जा रही है।

औद्योगिक निवेश और विकास

बस्तर में उद्योगपतियों ने सरकार को 967 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश प्रस्ताव प्रस्तुत किए हैं और सरकार ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के विकास के लिए 52,000 करोड़ रुपये की योजनाएं तैयार की हैं। बस्तर में खनन, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, पर्यटन, खाद्य प्रसंस्करण व एमएसएमई क्षेत्र में निवेश हो रहा है। इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र से सबसे बड़ा निवेश एनएमडीसी की 43,000 करोड़ की परियोजनाएं हैं, रेलवे और सड़क निर्माण में भी निवेश चल रहा है। सरकार मार्च 2026 तक नक्सल उन्मूलन का लक्ष्य लेकर चल रही है जिससे स्थानीय सुरक्षा और निवेश में सुधार हो रहा है। आज बस्तर में निवेश का माहौल पहले से कहीं ज्यादा आसान और पारदर्शी हो गया है। उद्यमियों के लिए इंसेंटिव कैलकुलेटर जैसी व्यवस्था ने लाभ की जानकारी सुलभ बना दी है। उद्योग स्थापित करने पर नक्सल पीड़ित परिवारों को विशेष अनुदान, अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के लिए अतिरिक्त 10 प्रतिशत सब्सिडी, आत्मसमर्पित नक्सलियों को रोजगार देने वाले उद्योगों को 40 प्रतिशत वेतन-सब्सिडी जैसे प्रावधानों से न केवल उद्योग तेजी से बढ़ेंगे, बल्कि बस्तर के युवाओं को अपने ही क्षेत्र में स्थाई रोजगार मिलेगा। इस प्रकार बस्तर में औद्योगिक निवेश में तेजी आ रही है और यह क्षेत्र सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन की ओर बढ़ रहा है।

पर्यटन और संस्कृति की नई उड़ान

बस्तर को पर्यटन के लिहाज से दुनिया ने हमेशा विशेष माना है। चित्रकोट और तीरथगढ़ जैसे मनोहारी झरने, कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान और घने वन इसे और समृद्ध करते हैं। सरकार ने अब पर्यटन को औद्योगिक नीति का हिस्सा बनाकर होमस्टे, ईको-टूरिज़्म और सांस्कृतिक महोत्सवों को बढ़ावा दिया है। बस्तर दशहरा को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए बड़े प्रयास किया जा रहे हैं। तीरथगढ़ जलप्रपात पर ग्लास ब्रिज बनाने की योजना पर काम चल रहा है। संपूर्ण बस्तर में पर्यटन सर्किल का विकास किया जा रहा है। महत्वपूर्ण यह है, कि इन योजनाओं से सीधे जनजातीय समुदायों को भागीदार बनाया जा रहा है। उनके नृत्य, गीत, त्यौहार और कला को पर्यटन से जोड़कर आय के नए अवसर तैयार हो रहे हैं। बस्तर का यह बदलाव स्थानीय युवाओं को अपने ही जिले में रोजगार और उद्यमिता के अवसर देगा। पारंपरिक उत्पादों को आधुनिक तकनीक और मार्केटिंग से जोड़कर इन्हें वैश्विक बाजारों तक पहुंचाने की योजना तैयार है।

हरियाली से समृद्धि की राह

बोध घाट सिंचाई परियोजना से बस्तर में तरक्की के नए रास्ते खुलेंगे। यह बहुउद्देशीय परियोजना इंद्रावती नदी पर आधारित है और लगभग 49,000 करोड़ रुपये की लागत से दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर सहित बस्तर के कई जिलों के 3,78,475 हेक्टेयर क्षेत्र में स्थायी सिंचाई सुविधा प्रदान करेगी। इससे करीब 269 गांवों को सीधे लाभ मिलेगा।परियोजना के तहत नहर नेटवर्क, जलाशय और पम्प हाउस का निर्माण होगा, जिससे किसानों को खरीफ और रबी दोनों मौसमों में जल उपलब्ध होगा, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि होगी और क्षेत्र की खाद्य सुरक्षा मजबूत होगी। इसके अतिरिक्त, परियोजना से 125 मेगावाट बिजली उत्पादन भी होगा, जो ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करेगा और स्थानीय रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देगा।

विश्वास और विकास का संगम

नई औद्योगिक नीति केवल निवेश या व्यापार की बात नहीं करती, बल्कि एक ऐसे सामाजिक बदलाव की रूपरेखा है, जिसमें बस्तर का हर वर्ग साझेदार बने। यहां का भविष्य अब नक्सलवाद नहीं, बल्कि हुनर, संस्कृति और उद्योग का मेल तय करेगा। राज्य सरकार मोहम्मद प्रभावित इलाकों में सुरक्षा बलों की तैनाती के साथ यह सुनिश्चित करने में जुटी है कि अब बस्तर के अंदरूनी क्षेत्रों में हिंसा का माहौल खत्म हो चुका है। ‘नियद नेल्ला नार’ कार्यक्रम के अंतर्गत सुरक्षा बलों के नौ स्थापित 54 कैंपों के आसपास बस से 324 गांव में आधारभूत बुनियादी सुविधाओं का विकास किया गया है और यहां के लोगों को सभी प्रकार की नागरिक सेवाएं प्रदान की जा रही हैं। जो लोग कभी हाशिए पर जीवन जी रहे थे, आज वह समाज की मुख्य धारा से जुड़ चुके हैं। बस्तर में शांति स्थापित करने के लिए सरकार वर्ष 2026 के अंत तक यहां नक्सलवाद के समूल खात्मे को लेकर प्रतिबद्ध है। इस अभियान का व्यापक असर भी यहां देखने को मिल रहा है। बड़ी पैमाने पर नक्सली आत्मसमर्पण कर समाज की मुख्य धारा से जुड़ रहे हैं और भी बस्तर के विकास में सहभागी बन रहे हैं। “विकास भी, विश्वास भी”, यही है बस्तर की नई पहचान। यहां जंगल की हरियाली, लोक कला का रंग और उद्योग की चहल-पहल मिलकर समृद्धि की नई तस्वीर रच रहे हैं।

बस्तर: अब समृद्धि की ओर

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