Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से- समय के सच को उजागर करती एक हत्या

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

भारत में यदि नक्सलवाद की बात करें तो सबसे पहले छत्तीसगढ़ के बस्तर का नाम आता है। कभी जन अदालत लगाकर या फिर बाज़ार में ग्रामीणों की हत्या, कभी पुलिस जवानों को विस्फोट या एम्बुश लगाकर मारना तो कभी पुलिस मुठभेड़ नक्सलियों के मारे जाने की घटना की वजह से सुर्खियों में रहता है। यहां की सामाजिक और भौगोलिक परिस्थितियों के कारण बस्तर, नक्सलगढ़ बन गया है। इस बार फिर बस्तर एक पत्रकार की हत्या के लिए चर्चा में है।
राजेश जोशी की कविता है –
जो इस पागलपन में शामिल नहीं होंगे
मारे जाएँगे
कटघरे में खड़े कर दिए जाएँगे, जो विरोध में बोलेंगे
जो सच-सच बोलेंगे, मारे जाएँगे
सबसे बड़ा अपराध है इस समय
निहत्थे और निरपराध होना
जो अपराधी नहीं होंगे
मारे जाएँगे।

हाल ही में बीजापुर के पत्रकार मुकेश चंद्राकर की जिस निर्ममता से हत्या कर की गई, उसने हमारे समय के सच को उजागर किया। ये हत्या बताती है कि दूरस्थ नक्सल क्षेत्र में किस तरह का भ्रष्टाचार है, किस तरह की दुरभि संधी नेता, अफ़सर, ठेकेदार और पॉवरफुल लोगों के बीच है जो एक मामूली आदमी को कुछ साल में करोड़ों का आसामी बना देती है। पत्रकार मुकेश की हत्या के मामले के चारों आरोपियों को पकड़ा गया। सरकार ने तत्परता दिखाते हुए एसआईटी का गठन किया। ठेकेदार सुरेश चंद्राकर जो कि इस घटना का मुख्य अभियुक्त है, सड़क निर्माण कार्य में काफी मालामाल हुआ। सड़क निर्माण कार्य की खबर से नाराज होकर हत्या की साजिश रची। वारदात की योजना हत्या से 5 दिन पहले बनाई गई।
एसआईटी की जांच में अब तक हुए खुलासे में ये बात सामने आई है कि 2 जनवरी 2025 की शाम 8 बजे पत्रकार मुकेश चंद्राकर ने अपने कुछ साथियों के साथ थाने आकर उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस अधीक्षक बीजापुर और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने मुकेश की पतासाजी के लिए सायबर सेल और पुलिस अधिकारियों को जांच के निर्देश दिए। जांच के दौरान पुलिस को अलग-अलग जगहों पर मुकेश के लोकेशन मिले, जिस पर उन्होंने मौके पर जाकर जांच की लेकिन उन्हें वहां कुछ नहीं मिला। इस दौरान मुकेश के भाई युकेश ने त्र-द्वड्डद्बद्य पर अपडेट हुई मुकेश की लास्ट लोकेशन पुलिस से साझा की, जो चटूटानपारा स्थित सुरेश चंद्राकर का बैडमिंटन कोर्ट था। रितेश चंद्राकर और महेंद्र रामटेके ने कमरा नंबर 11 में लोहे की रॉड से पीट-पीटकर मुकेश की हत्या की। दिनेश चंद्राकर ने सबूत मिटाने और शव छिपाने में मदद की। इस मामले में दिनेश, रितेश, और महेंद्र की गिरफ्तारी के बाद सुरेश चंद्राकर को 5 जनवरी हैदराबाद से पकड़ा गया। सभी आरोपियों ने हत्या का जुर्म कबूल किया। पुलिस ने जब मौके पर पहुंचकर जांच की तो वहां 17 लेबर कमरे बने हुए थे, जिन पर ताले लगे थे। पुलिस ने जब ताले खुलवाने के लिए सुरेश से संपर्क किया तो उसने बीजापुर से बाहर होने की बात कही। इसके बाद जब वह वापस आया तब पुलिस ने उसके सामने सभी कमरों को खुलवाकर चेक किया, लेकिन वहां कुछ नहीं मिला। वहीं पास में मौजूद बने नए सेप्टिक टैंक के फ्लोरिंग के बारे में पूछने पर सुरेश ने बाथरूम के रेनोवेशन का कार्य जारी होना बताया। आगे की पूछताछ में सुरेश ने पुलिस को बताया कि बीते 2 साल से उनकी मुकेश से बात नहीं हुई है और इसके अलावा वह कुछ नहीं जानता है। इसके बाद पुलिस ने सभी संदेहियों और मुकेश चंद्राकर की काल डिटेल निकलवाने के लिए सायबर सेल के माध्यम से प्रतिवेदन भेज दिया। इस बीच पत्रकार मुकेश और उसकी हत्या के संदेहियों की काल डिटेल्स की जांच में यह बात सामने आई कि मुकेश ने आखिरी बार रितेश से ही फोन पर बात की थी। इस आधार पर पुलिस इस निष्कर्ष पर पहुंच चुकी थी कि रितेश का मुकेश की गुमशुदगी से प्रत्यक्ष रूप से कोई न कोई संबंध जरूर है। जांच के दौरान यह बात भी सामने आई कि वारदात के वक्त रितेश और सुरेश का भाई दिनेश भी मौके पर मौजूद था। यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने उसे कॉल किया लेकिन उसका नंबर लगातार बंद आ रहा था। इस बीच पुलिस को पता चला कि दिनेश जिला अस्पताल बीजापुर में अपना इलाज करवा रहा है। इसके बाद पुलिस ने डॉक्टर से अनुमति लेकर दिनेश से पूछताछ की, जिसमें पहले तो उसने गोलमोल जवाब देकर पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की। दिनेश ने पुलिस को बताया कि घटना में प्रयुक्त लोहे की रॉड, कपड़े और मोबाइल वगैरह ठिकाने लगाने में उसने आरोपियों की मदद की थी।
दिनेश के बयान के आधार पर पुलिस ने महेंद्र रामटेके की पतासाजी की और उसे बस स्टैंड से गिरफ्तार किया। पुलिस की पूछताछ में उसने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया। दिनेश और महेंद्र से पूछताछ में यह बात सामने आई कि पत्रकार मुकेश चंद्राकर मुख्य आरोपी सुरेश चंद्राकर का भाई था और उसने उनके ही ठेका कार्य के खिलाफ न्यूज चलाई थी। इस बात से नाराज होकर सुरेश ने उसकी हत्या की साजिश रची थी, जिसे दिनेश और महेंद्र ने मिलकर बैडमिंटन कोर्ट के पास बने कमरे नंबर 11 में अंजाम दिया था। आरोपियों ने वारदात के वक्त सुरेश चंद्राकर को बाहर रखा ताकि उस पर किसी को संदेह न हो। महेंद्र रामटेके की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने विधिवत तरीके से कार्रवाई करते हुए नगरपालिका के कर्मियों और एफएसएल टीम की मौजूदगी में बैडमिंटन कोर्ट के सेप्टिक टैंक की खुदाई की, जहां उन्हें मुकेश चंद्राकर का शव मिला। दिनेश, महेंद्र और रितेश की गिरफ्तारी के बाद पुलिस मुख्य आरोपी सुरेश चंद्राकर की तलाश में जुट गई। 5 जनवरी की रात हैदराबाद से गिरफ्तार किया। पुलिस की पूछताछ में उसने अपना जुर्म कबूल कर लिया और बताया कि मुकेश ने अपने चैनल में उसके खिलाफ खबर लगाई थी, जिसके चलते उसके खिलाफ जांच बैठ गई। इसी का बदला लेने के लिए उसने इस वारदात को अंजाम दिया।
भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं, ये यह हत्याकांड जाहिर करती है। ये हत्या नहीं हुई होती तो पता ही नहीं चलता किस तरह से एक अदना सा आदमी एक बड़ा साम्राज्य स्थापित कर बैठा है। ऐसे कितने ही सुरेश चंद्राकर नक्सली क्षेत्र में पनप रहे हैं, यह एक खोज का विषय है।
सवाल यह उठता है कि भ्रष्टाचार की जडें़ कहां तक फैली हुई है, एक साधारण व्यक्ति करोड़ों की संपत्ति का मालिक बन जाता है और सच बाहर लाने वाले की निर्ममता से हत्या कर दी जाती है। ये हत्या बस्तर और उस जैसे अंदरूनी क्षेत्र में पनप रहे नये भारत की तस्वीर बताती है जिसकी कल्पना मुक्तिबोध जैसे कवि ने बहुत साल पहले अंधेरे में कविता में की थी।

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यह शोभायात्रा है किसी मृत-दल की।
विचारों की फिरकी सिर में घूमती है
इतने में प्रोसेशन में से कुछ मेरी ओर
आँखें उठीं मेरी ओर-भर
हृदय में मानो कि संगीन नोंकें ही घुस पड़ीं बर्बर,
सड़क पर उठ खड़ा हो गया कोई शोर–
मारो गोली, दाग़ो स्साले को एकदम
दुनिया की नजऱों से हटकर
छिपे तरीक़े से
हम जा रहे थे कि
आधीरात–अँधेरे में उसने
देख लिया हमको
व जान गया वह सब
मार डालो, उसको खत्म करो एकदम
रास्ते पर भाग-दौड़ थका-पेल!!
गैलरी से भागा मैं पसीने से सराबोर!!

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