Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – स्त्री पर अत्याचार का कौन जिम्मेदार

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

आज मैं जिसकी बात करने वाला हूं वह है समाज की मानसिकता की। दरअसल हम स्त्री को, विशेषकर कामकाजी स्त्री जो अक्सर घर से बाहर निकलती है। ऐसी स्त्री जब किसी पुरूष को जब अकेले में मिल जाती है, तो उसको दबोचने का कोई भी मौका नहीं छोड़ता, या फिर बत्तमीजी करने से बाज नहीं आता। हम अक्सर देखते हैं कि जो कामकाजी स्त्रियां हैं जो अक्सर देर रात तक घर से बाहर रहती हैं, तो उनके साथ कई बार इस तरह की घटनाएं होती हैं। अगर हम निर्भया केस की बात करें तो हम देखते हैं कि एक लड़की है बस में अकेली जा रही है, उसका साथी भी है, वहां कई लोग एक साथ मिलकर उसका गैंगरेप करते हैं। ऐसी घटनाएं हम हैदराबाद में देखते हैं। इसी तरह की घटना अभी कोलकाता में हुई। कोलकाता के एक सरकारी मेडिकल कॉलेज में पीजी के सेकेंड ईयर की एक लेडी डॉक्टर थी, उसके साथ अनाचार हुआ।
जब कोरोना आया था तो हमें ऐसा लगता था कि डॉक्टर तो भगवान हैं, क्योंकि हमारे पास कोई दवाई नहीं थी और डॉक्टर ही हमको बचा रहे थे। अब ऐसे में अगर कहीं ऐसा हो कि उस डॉक्टर के साथ अस्पताल में ही रेप होता हो, तो ये समझना पड़ेगा कि आखिर ये क्या है ? हम डॉक्टरों का सम्मान करते हैं, जब हम बीमार पड़ते हैं तो डॉक्टर ही हमारा इलाज करते हैं। इससे डॉक्टर और मरीज के बीच में एक सम्बंध बनता है। हम कोलकाता की घटना में यही देखते हैं कि एक आदमीं जो यहीं का था, और जो इस अस्पताल में आता-जाता था, उसी ने इस वारदात को अंजाम दिया। अब इस पर लगातार राजनीति गरमाती जा रही है। वहां की विपक्षी पार्टियां इस पर सीबीआई जांच की मांग कर रही हैं। वहीं ममता बनर्जी ने कमेटी गठित की है और कहा है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।
अब आए दिन डॉक्टरों के साथ मारपीट की घटनाएं होती हैं। जो लोग अपने परिजनों को लेकर अस्पताल जाते हैं, तो उनको लगता है कि डॉक्टर उनके मरीज का तत्परता से इलाज करे। ऐसे में अगर इसमें किसी भी तरह की चूक होती है तो लोग मारपीट पर आमादा हो जाते हैं। अभी मैं जिसकी बात कर रहा हूं वह कोलकाता के मेडिकल कॉलेज की है। जहां एक ट्रेनी महिला डॉक्टर के साथ बड़ी ही दरिंदगी के साथ रेप किया गया। इसमें जिस तरह की नृशंसता से उसकी हत्या हुई । इसकी जानकारी होते ही पूरा कोलकाता उमड़ पड़ा। लोगों को लगा कि देश में इतने कड़े कानून होने के बावजूद भी ऐसा कैसे हो गया ? हम लगातार कड़े कानूनों की बात कर रहे हैं। कोलकाता जो देश की कल्चरल राजधानी है। जहां बुध्दिजीवियों का एक बड़ा वर्ग रहता है। इसके बावजूद भी वहां पर ऐसी घटना होती है। तो इस घटना को लेकर लोग उत्तेजित होते हैं, डॉक्टर्स आंदोलन करते हैं, लोगों को लगता है कि पता नहीं ये काम किसने किया है। रात को जब लेडी बाहर जाती है तो तमाम तरह की बात होती है। अभी जिस आरोपी को पकड़ा गया है उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजा गया है, अगर हम ये देखते हैं कि भारतीय न्याय संहिता में बलात्कार की धारा 64 और हत्या की धारा 183 में उसको अरेस्ट करने के बाद पुलिस ने उसको अदालत में पेश किया।
जहां से उसको पुलिस रिमांड पर भेजा गया है।
वह लड़की बहुत होनहार थी,वह डॉक्टर थी, उसके माता-पिता का सपना था कि वो और तरक्की करे। वो डॉक्टर बन कर न जाने कितने ही लोगों का इलाज करती। वो पीजी कर रही थी, हमारे यहां ये भी देखा जाता है कि पीजी में एडमिशन भी बहुत मुश्किल से होता है। जब उसकी लाश मिली तो देखा गया कि उसके शरीर पर कई जगह घाव थे। उसके प्राइवेट पार्ट तक से खून बह रहा था। उसकी गर्दन में घाव था उसके हाथ की हड्डी तोड़ दी गई थी। उसे देखने वाले लगातार यही सोच रहे थे कि अरे ……कौन ये दरिंदा है जिसने इस तरह का जघन्य कृत्य किया है ? इसके पीछे कौन लोग हैं ? उसके बाद तफ्तीश में पता चला कि इसका आरोपी जो है वो इसी मेडिकल कॉलेज में लगातार आता-जाता है। उसने लेडी डॉक्टर में मुंह में कपड़ा भी ठूंस दिया, उसके साथ हैवानियत भी की। उसके साथ रेप भी किया। इस संघर्ष में वो लेडी डॉक्टर उस आरोपी से जमकर लड़ी, उसने संघर्ष किया मगर आखिरकार वो हार गई। अब जाकर ये मामला पुलिस में आया है और उस आरोपी को अरेस्ट किया गया है। उसे सियालदह की एक अदालत में पेश किया गया। जहां से उसको 14 दिनों की हिरासत में लिया गया है। इस पूरे मामले को लेकर पूरे देश के मेडिकल कॉलेजों में कैंडल मार्च भी निकाला गया। डॉक्टर्स ने लोगों से ये अपील की कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
अब बात करें छत्तीसगढ़ के जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल मेडिकल कॉलेज की तो यहां कोलकाता की उस घटना के विरोध में डॉक्टर्स ने शनिवार की रात को कैंडल मार्च निकाला। हम देखते हैं कि अस्पतालों में अक्सर इस तरह की घटनाएं घट रही हैं। सरकारी अस्पतालों और कार्यालयों को सुरक्षित जगह माना जाता है। अब ऐसे में अगर इन जगहों पर ऐसी बातें होती हैं तो यह नि:संदेह चिंता का विषय है कि रात को कोई भी आदमीं अस्पताल में इस उम्मीद से जाता है कि उसको वहां अच्छा डॉक्टर मिलेगा, और ऐसी जगह पर अगर डॉक्टर के साथ ही ऐसा कुछ हो जाए तो फिर इससे निंदनीय भला और क्या हो सकता है?
2023 के नवम्बर महीने में कोरबा मेडिकल कॉलेज अस्पताल में महिला डॉक्टर से मारपीट का सनसनीखेज मामला सामने आया है। इस कृत्य को किसी और ने नहीं बल्कि विभाग से जुड़ी मितानिन ने अंजाम दी है। महिला डॉक्टर के साथ हुई इस घटना को अस्पताल प्रबंधन ने गंभीरता से लिया।
इससे पहले भी इस तरह की तमाम घटनाएं हो चुकी हैं। इनका जो संगठन है वो कई बार ऐसे मामलों को सरकार के संज्ञान में लाता है। ऐसे में इसको लेकर मेडिकल कॉलेजों के डॉक्टर हड़ताल पर चले जाते हैं। जब डॉक्टर्स हड़ताल करते हैं तो इसका असर तमाम मरीजों पर पड़ता है, पूरी व्यवस्था पर पड़ता है। कई बार हमको ऐसा लगता है कि जो लोग हमारे साथ देर रात तक काम करते हैं, अगर वे ही सुरक्षित नहीं हैं तो फिर भला कौन सुरक्षित है ?
2023 के नवम्बर महीने में कोरबा मेडिकल कॉलेज अस्पताल में महिला डॉक्टर से मारपीट का सनसनीखेज मामला सामने आया है।
मार्च 2023 सूरजपुर के जिला आस्पताल में डॉक्टर के साथ मरीज के साथ आये 6 लोगों ने मारपीट की। इसके बाद जिला अस्पताल के डॉक्टर्स ने इसका विरोध शुरू किया। संबंधित थाने की पुलिस ने सिर्फ 2 लोगों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दजऱ् की थी। इसको लेकर जिला अस्पताल के डॉक्टर्स ने हाथ में काली पट्टी लगाकर कई दिनों तक काम किया।
15 जनवरी 2024 को भिलाई के स्पर्श हॉस्पिटल में पदस्थ डॉक्टर दीपक कोठरी ने अस्पताल प्रबंधन पर उनके साथ मारपीट किए जाने का आरोप लगाया था। इसके जवाब में हॉस्पिटल के डायरेक्टर ने डॉ कोठरी पर मरीजों के साथ दुर्व्यवहार करने और समय पर मरीजों को न देखने का आरोप लगा दिया। डॉक्टर कोठरी यहां 7 सालों से काम कर रहे थे।कई बार ऐसा देखा जाता है कि अस्पतालों में अपने परिजनों को पहुंचे लोग वहां पदस्थ डॉक्टर्स और नर्सों के साथ दुव्र्यवहार करते हैं। इसमें अस्पताल के अन्य कर्मचारी भी शामिल होते हैं। कोलकाता की जघन्य घटना ने हम सभी को झकझोर कर रख दिया है। निर्भया काण्ड के बाद लोगों को लगा था कि देश की हालत में कुछ सुधार होगा, मगर उसके बाद हैदराबाद का काण्ड होता है, ऐसी घटनाओं के आंकड़ों में कोई भी सुधार दिखाई नहीं दे रहा है।
अगर हम नेशनल क्राइम ब्यूरो का रिकॉर्ड देखें तो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2015 में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के 3.29 लाख मामले, साल 2016 में 3.38 लाख मामले, साल 2017 में 3.60 लाख मामले और साल 2020 में 3,71,503 मामले दर्ज किये गए। वहीं, साल 2021 में ये आँकड़ा बढ़कर 4,28,278 हो गया, जिनमें से अधिकतर यानी 31.8 फीसदी पति या रिश्तेदार द्वारा की गई हिंसा के, 7.40 फीसदी बलात्कार के, 17.66 फीसदी अपहरण के, 20.8 फीसदी महिलाओं को अपमानित करने के इरादे से की गई हिंसा के मामले शामिल हैं।
अभी हम छत्तीसगढ़ की बात करें तो एक भाई पॉर्न फिल्म देखा करता था, उसने अपनी ही बहन के साथ बलात्कार किया और उसकी हत्या कर दी तो इसके पीछे क्या है? हमारे यहां एक पितृ सत्तात्मक सत्ता होती है। पुरूष और स्त्री के बीच असमान संसाधनों का वितरण भी इसका कारण है। लैंगिक असमानता है जागरूकता का अभाव भी इसका एक कारण है। पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं का आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक स्तर कमजोर होता है। महिलाओं के सशक्तिकरण की बात हो रही है, मगर आज भी महिलाएं पुरूषों पर निर्भर हैं। ये किसी भी रूप में हो सकता है, पिता हो , भाई हो या फिर दोस्त हो। यह किसी भी रूप में हो सकता है। ये बहुत सारे कारण हैं, जिस प्रकार से अभी हम लोगों को पूरी तौर पर जागरूक नहीं कर पा रहे हैं। आज सोशल मीडिया से लेकर तमाम साइट्स पर ऐसी सामग्री भरी पड़ी है जिसको देखकर लोग उत्तेजित होते हैं, ऐसे ही लोग ऐसी जघन्य वारदातों को अंजाम देते हैं। कोलकाता की घटना में भी देखने में ये आया है कि आरोपी ब्लूटुथ के माध्यम से किसी साइट से ऐसी ही उत्तेजक सामग्री का ऑडियो सुन रहा था, उत्तेजना में उसने इस तरह की नृशंस हत्या को अंजाम दिया। अब ये चाहे कोलकाता की घटना हो, दिल्ली की घटना हो या फिर हाथरस की घटना हो। कहीं न कहीं ये एक मानसिकता है कि हम स्त्री के साथ कुछ भी करेंगे तो ये हमारा अधिकार है। ये एक प्रकार की मानसिकता है जिसे बदलने की

सख्त जरूरत है। हम रैलियों में निकलते हैं, एक साथ हम तमाम धार्मिक अनुष्ठानों में भी जाते हैं, वहां तो ऐसा नहीं होता। इससे लगता है कि आज हमें ऐसे लोगों की मानसिकता बदलने की सख्त जरूरत है क्योकि जब तक मानसिकता नहीं बदलेगी, तब तक इसका राजनीतिकरण करने से कुछ भी नहीं होने वाला।राजनीतिकरण करने से ये घटनाएं नहीं रोकी जा सकती है। कहा जा रहा है कि हमने कानून को सख्त किया है। लोगों को ऐसे कृत्यों के लिए फांसी की सजा भी दी जा रही है, मगर लोग इससे डर नहीं रहे हैं। इस तरह की प्रवृत्तियां बढ़ रही हैं जो हमारे लिए चिंता का विषय है। यदि ऐसी घटनाएं डॉक्टर्स के साथ होती हैं तो ये और भी अधिक चिंतनीय है, क्योंकि जो हमारे लिए दिन रात सेवा करने को तत्पर रहते हैं। ऐसे में अगर अस्पताल में सेवारत किसी लेडी डॉक्टर से साथ ऐसी घटना होती है और इसको अंजाम देने वाला भी उसी अस्पताल में आने-जाने वाला होता है तो इससे साफ-साफ लगता है कि स्त्री को लेकर जो पुरूषों के मन में एक विकृत सोच रही है कहीं न कहीं ये उसी का नतीजा है। ऐसे में हमें कड़े कानून के साथ ही साथ लोगों की सोच बदलने के बारे में भी सोचना होगा।

Related News

Related News