:रामनारायण गौतम:
सक्ती , बाराद्वार नगर में जिंदल परिवार के द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन व्यास पीठ से कथा वाचक पंडित नंदकिशोर नागपुर वाले ने हयग्रीव अवतार, मधु , कैटभ वध, सुखदेव जनक संवाद की कथा भक्तगणों को कथा श्रवण कराते हुए बताया भगवान विष्णु ने हयग्रीव अवतार धारण कर मधु और कैटभ नामक दो शक्तिशाली असुरों का वध किया और ब्रह्माजी से चुराए गए वेदों को वापस प्राप्त किया।

असुरों का जन्म और वरदान: सृष्टि के आरंभ में, जब भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग पर योगनिद्रा में लीन थे, तब उनके कान के मैल से मधु और कैटभ नामक दो भयंकर असुरों का जन्म हुआ। इन असुरों ने हजारों वर्षों तक घोर तपस्या कर देवी महामाया (दुर्गा) को प्रसन्न किया और यह वरदान प्राप्त किया कि वे केवल अपनी स्वयं की इच्छा से ही मारे जा सकेंगे और किसी के द्वारा नहीं। इस वरदान ने उन्हें अत्यंत अहंकारी और शक्तिशाली बना दिया।
वेदों की चोरी: एक समय ब्रह्माजी सृष्टि की रचना के कार्य में लगे थे। इसी दौरान, थकान के कारण जब उन्हें जम्हाई आई, तो उनके मुख से वेद निकल गए। अवसर पाकर मधु और कैटभ ने वेदों को चुरा लिया और उन्हें आदि सागर की गहराइयों में छिपा दिया।
ब्रह्मा की प्रार्थना: वेदों के बिना ब्रह्माजी सृष्टि का कार्य जारी नहीं रख पा रहे थे। उन्होंने भगवान विष्णु से सहायता के लिए प्रार्थना की और उन्हें नींद से जगाने के लिए देवी महामाया की स्तुति की।

हयग्रीव अवतार: ब्रह्माजी की प्रार्थना पर, भगवान विष्णु ने वेदों को पुनः प्राप्त करने और असुरों का वध करने का निर्णय लिया। उन्होंने हयग्रीव (घोड़े के सिर और मानव धड़ वाला) का रूप धारण किया। हयग्रीव अवतार ज्ञान और विद्या का प्रतीक माना जाता है।
वध और वेदों की पुनःप्राप्ति: हयग्रीव रूप में भगवान विष्णु ने असुरों को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों के बीच 5000 वर्षों तक भयंकर युद्ध चला, लेकिन अपने वरदान के कारण असुरों पर विजय पाना असंभव लग रहा था। तब भगवान विष्णु ने माया का सहारा लिया और असुरों की शक्ति की प्रशंसा की तब मधु और कैटभ ने भगवान विष्णु से कहा आप हमसे जो वरदान मांगोगे हम आपको देंगे
असुरों ने भगवान विष्णु को वरदान तो दे दिया, लेकिन एक शर्त रखी कि उन्हें ऐसी जगह मारा जाए जहाँ जल न हो (क्योंकि उस समय पूरी पृथ्वी जलमग्न थी)।
भगवान हयग्रीव ने तुरंत अपने शरीर को अत्यंत विशाल किया और अपनी जांघों को पानी के ऊपर उठाकर ठोस ज़मीन का रूप दे दिया। उन्होंने असुरों को अपनी जांघों पर लिटाया और अपने सुदर्शन चक्र से उनके सिर काट दिए, इस प्रकार उनका वध किया इसीलिए किसी भी मनुष्य को अहंकार नहीं करना चाहिए अहंकार करने वालों का मति भ्रष्ट हो जाता है और वह स्वयं और उसका हिट नहीं होता इस कथा का सार यही है अगर दैत्य अहंकार में चूर होकर मधू कैटभ, भगवान विष्णु को वरदान मांगने के लिए नहीं कहते तो उनकी मृत्यु नहीं होती पर जब-जब धरती पर भार बढ़ता है भगवान किसी ने किसी रूप में अवतरित होकर इसी प्रकार से दैत्यों का संहार कर सभी की रक्षा करते हैं देवी भागवत कथा में प्रतिदिन सैकड़ो की संख्या में श्रद्धालु वन पहुंचकर मां देवी भगवती की महाआरती , प्रसाद ग्रहण कर पुण्य का लाभ ले रहे
सभी भक्तगण श्रद्धालुओं से जिंदल परिवार द्वारा देवी भागवत कथा में प्रतिदिन पहुंचकर पुण्य का लाभ लेने के लिए आग्रह किया गया