नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ शराब घोटाले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय को कड़ी फटकार लगाते हुए जांच की प्रगति पर सवाल खड़े किए। अदालत ने पूछा कि ऐसी कौन-सी जांच शेष है, जो अभी तक पूरी नहीं हो पाई है और इसे पूरा करने में कितना समय लगेगा।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक ओर एजेंसी आरोपियों को जमानत नहीं देने की बात करती है, जबकि दूसरी ओर जांच जारी होने का तर्क देती है। कोर्ट ने इस विरोधाभास पर कड़ा रुख अपनाया और स्पष्ट रूप से पूछा कि पूर्व मंत्री कवासी लखमा के खिलाफ कौन-सी जांच लंबित है।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि जांच अधिकारी अपना व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करें, जिसमें लंबित जांच का विवरण और उसे पूरा करने की समयसीमा बताई जाए।
पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा को ED ने 15 जनवरी 2025 को गिरफ्तार किया था, जिसके बाद EOW ने भी उन्हें हिरासत में लिया। वे पिछले 10 महीनों से जेल में बंद हैं और उनकी तबीयत बिगड़ने की जानकारी सामने आई है। कांग्रेस ने लखमा को तत्काल चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध कराने की मांग की है।
अधिकारियों की अंतरिम सुरक्षा को स्थायी किया गया
सुप्रीम कोर्ट ने शराब घोटाले से जुड़े मामलों में आबकारी विभाग के अधिकारियों को मिली अंतरिम गिरफ्तारी सुरक्षा को स्थायी कर दिया है। यह फैसला उन मामलों की सुनवाई के दौरान लिया गया, जिनमें अधिकारियों पर भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप हैं।
यह निर्णय जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमल्या बागची की पीठ द्वारा सीनियर एडवोकेट एस. नागमुथु और सिद्धार्थ अग्रवाल की दलीलें सुनने के बाद दिया गया। राज्य और ED की ओर से सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी और एएसजी एस.डी. संजय ने पक्ष रखा।