:राजकुमार मल:
भाटापारा- पराली समस्या का समाधान अब बेहद आसानी
से किया जा सकेगा। सुपर सीडर के नाम से पहचानी जाने
वाली यह मशीन, फसल अवशेष को न केवल बारीक करती है
बल्कि उसे मिट्टी में समान रूप से मिलाती भी है।
बरसों से चली आ रही पराली जलाने से पर्यावरण को हो रहे नुकसान से छुटकारा मिलने जा रहा है। सुपर सीडर की मदद से किसान अब फसल अवशेष को जलाने की बजाय अगली फसल के लिए ना केवल हरित खाद बना सकेंगे बल्कि खरपतवार से भी छुटकारा पा सकेंगे।

ऐसे काम करता है सुपर सीडर
सुपर सीडर एक उन्नत कृषि उपकरण है, जिसे विशेष रूप से धान के अवशेष प्रबंधन और गेहूं की सीधी बुवाई के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह मशीन किसानों को बिना खेत की जुताई किए, धान के अवशेषों को खेत में छोड़ते हुए गेहूं या अन्य फसलों की बुवाई करने में मदद करती है। इसका उपयोग समय, लागत, और श्रम को बचाने के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल है, क्योंकि यह पराली जलाने की समस्या को कम करता है।
सुपर सीडर के प्रमुख घटक:
- चाकू डिस्क: अवशेषों को काटकर और मिट्टी को थोड़ा ढीला करके बीज के लिए जगह बनाता है।
- बीड्रिल यूनिट: इस यूनिट से बीज और उर्वरक को एकसमान रूप से खेत में बिखेरा जाता है।
- रोलर: बुवाई के बाद मिट्टी को संकुचित करता है, जिससे बीज का मिट्टी से संपर्क बेहतर होता है और अंकुरण अच्छा होता है।
- फर्टिलाइजर बॉक्स: यह उर्वरक को एकसमान रूप से फसल के साथ बिखेरता है।

सुपर सीडर के लाभ:
पराली जलाने से बचाव: यह धान के अवशेषों को खेत में ही काटकर बारीक रूप में फैलाता है।
समय और ईंधन की बचत: जुताई की आवश्यकता नहीं होती, जिससे ईंधन और समय दोनों की बचत होती है।
मिट्टी की नमी का संरक्षण: बिना जुताई के बुवाई करने से मिट्टी की नमी बरकरार रहती है।
फसल की गुणवत्ता में सुधार: सही अवशेष प्रबंधन और सटीक बुवाई से फसल की उपज और गुणवत्ता बढ़ती है।
इन फसलों के लिए प्रभावी
देश में धान की फसल ज्यादा रकबे में ली जाती है। लिहाजा इसके ही अवशेष सबसे ज्यादा जलाए जाते हैं। इसके बाद गेहूं, गन्ना और मक्के की फसलें हैं। इनकी कटाई के बाद अब सुपर सीडर की मदद से फसल अवशेष का आसानी से प्रबंधन किया जा सकेगा।
पराली समस्या का हल सुपर सीडर
सुपर सीडर पराली की समस्या को हल करने में वरदान है। किसान भाई इस मशीन का
उपयोग धान, गन्ना, मक्का आदि फसलों की जड़ों एवं ठूंठ को हटाने के लिए आसानी से कर सकते हैं।
इसके उपयोग से कम लागत एवं समय में बुवाई पूर्ण होता है। साथ ही अधिक उत्पादन,
प्रदूषण में कमी एवं जल का संचय भी होता है।
:डॉ.दिनेश पांडे, साइंटिस्ट (एग्रोनॉमी), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर:
:इंजी. पंकज मिंज, विषय वस्तु विशेषज्ञ (कृषि अभियांत्रिकी), कृषि विज्ञान केंद्र, बिलासपुर: