‘लाख’ टके की बात… छत्तीसगढ़ से विदा लेने की राह पर ‘कुसुम’

खोज रहा है संरक्षक ताकि संरक्षण की राह मजबूत हो लेकिन व्यवस्था का साथ नहीं मिल रहा है कुसुम के वृक्ष को। यह तब, जब लाख उत्पादन में कुसुम का योगदान 40 से 45 फ़ीसदी तक जा पहुंचा है।


चाहिए इसलिए संरक्षण

लाख की खेती महुआ, पलाश और कुसुम के वृक्षों में की जाती है लेकिन कुसुम के वृक्षों में ली गई लाख की फसल को हमेशा उच्चतम मूल्य मिलता है क्योंकि कुसुम के वृक्ष की लाख से ना केवल कंगन बनाए जा सकते हैं बल्कि वार्निश और पेंट भी बनते हैं। इसके अलावा प्रदेश के ग्रामीण और आदिवासी परिवारों के लिए कुसुम का फल विशेष पोषण महत्व रखता है।


औषधिय महत्व

कुसुम के फल में 50 से 55 फ़ीसदी कैलोरी, 1.5 ग्राम प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट 10 ग्राम और 15 से 20 मिलीग्राम कैल्शियम का होना प्रमाणित हुआ है। बीज से हासिल होने वाला तेल त्वचा रोग तो दूर करता ही है, जोड़ों का दर्द भी दूर करता है। जख्म भरने के लिए तेल के साथ छाल का पाउडर लगाने का परामर्श चिकित्सक भी देते हैं। नई खोज यह कि इसके बीज का तेल अब मच्छर भगाने के लिए अगरबत्ती निर्माण इकाइयां खरीद रहीं हैं।


ग्रामीण अर्थव्यवस्था में योगदान

प्रदेश के लाख उत्पादन में कुसुम का योगदान लगभग 40 से 45 फ़ीसदी है। खेती से जुड़े परिवार एवं श्रमिकों को 10 से 15000 रुपए की सालाना आय होती है। इसके अलावा पत्तियों व बीज के अवशेष का उपयोग करते हैं पशुपालक। घरेलू ईंधन की आपूर्ति निश्चित करते हैं कुसुम के वृक्ष। अतिरिक्त पहचान यह कि कुसुम का वृक्ष घनी छाया देने वाला वृक्ष माना गया है लेकिन अंधाधुंध कटाई से यह पहचान भी खत्म हो रही है।

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