दीक्षा मिश्रा
भारत के समाज में शिक्षक को सदैव उच्च स्थान प्राप्त है। गुरुकुल परंपरा से लेकर आधुनिक शिक्षा व्यवस्था तक शिक्षक को “गुरु”, “आदर्श” और “राष्ट्र निर्माता” माना गया है। किंतु वर्तमान समय में बदलते सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक परिदृश्य ने शिक्षकों की स्थिति को कई स्तरों पर प्रभावित किया है।प्राचीन काल में गुरु ही शिक्षा, संस्कृति, नैतिकता और जीवन मूल्यों का आधार थे। मध्यकालीन समय में भी शिक्षा का केंद्र धार्मिक और नैतिक शिक्षण पर था। स्वतंत्रता के बाद जब संविधान में शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में महत्व दिया गया, तब शिक्षक देश के विकास के केंद्रीय स्तंभ के रूप में स्थापित हुए। मगर आज के वैश्वीकरण और तकनीकी युग में उनकी भूमिका और चुनौतियां पहले से कहीं अधिक जटिल हो गई हैं।
वर्तमान समय में शिक्षकों की स्थिति
समाज में शिक्षक का सम्मान अब भी बना हुआ है, हालांकि,, यह सम्मान पहले जैसा व्यापक और निर्विवाद नहीं है। शहरीकरण और आधुनिक जीवनशैली ने पारंपरिक “गुरु-शिष्य” संबंध को कमजोर किया है। वहीं, सरकारी स्कूलों में कार्यरत स्थायी शिक्षकों की वेतन व्यवस्था अपेक्षाकृत स्थिर है, लेकिन निजी स्कूलों में शिक्षक कम वेतन, असुरक्षित नौकरी और सीमित सुविधाओं से जूझ रहे हैं।। यहां तक की शिक्षकों से केवल पढ़ाने की अपेक्षा नहीं की जाती, बल्कि उन्हें प्रशासनिक कार्य, चुनाव ड्यूटी, सर्वेक्षण आदि में भी लगाया जाता है। इस अतिरिक्त बोझ के कारण शिक्षण की गुणवत्ता प्रभावित होती है ऑनलाइन शिक्षा, स्मार्ट क्लास और डिजिटल माध्यमों ने शिक्षकों की भूमिका को नया रूप दिया है। जो शिक्षक तकनीकी रूप से दक्ष हैं, वे सफल हो रहे हैं, जबकि ग्रामीण व संसाधन हीन क्षेत्रों में यह बड़ी समस्या बनी हुई है। शिक्षण पेशे की गरिमा बनाए रखना शिक्षकों के लिए कठिन होता जा रहा है। विद्यार्थियों की बदलती सोच, अनुशासन की कमी, और बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने शिक्षक की मानसिक स्थिति पर दबाव डाला है।
नई शिक्षा नीति 2020 और शिक्षक
नई शिक्षा नीति (NEP 2020) ने शिक्षक को शिक्षा व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण घटक माना है। नीति में निम्न बिंदुओं पर जोर दिया गया है। जिसमें शिक्षक प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के साथ शोध, नवाचार और निरंतर सीखने पर ध्यान के केंद्रीय किया गया है। शिक्षक को सामाजिक नेतृत्व और राष्ट्रीय विकास में भागीदारी का अवसर के अलावा राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक” (National Professional Standards for Teachers) के निर्माण पर भी जोर दिया गया है। यह नीति शिक्षकों की स्थिति को मजबूत बनाने का प्रयास करती है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसके सफल कार्यान्वयन की चुनौती बनी हुई है।
शिक्षकों के सामने चुनौतियां
निजी और सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों के बीच असमानता की गहरी खाई है। जिसकी गहराई को पाट पाना काफी मुश्किल हैं राजनीतिक हस्तक्षेप और स्थानांतरण की समस्याएं काफी चिंताजनक हैं। क्योंकि इनके लिए ग्रामीण और शहरी शिक्षा में असमान अवसर मौजूद हैं। साथ ही लोगों में शिक्षण को सेवा नहीं बल्कि नौकरी समझे जाने की प्रवृत्ति उत्पन्न हो गई हैं जो कि एक गंभीर समस्या हैं।
हालांकि , शिक्षक केवल ज्ञान प्रदाता नहीं, बल्कि समाज के निर्माता होते हैं। आज उनकी स्थिति मिश्रित है। पर चुनौतियां और दबाव भी अत्यधिक हैं। यदि समाज और सरकार मिलकर शिक्षकों को आवश्यक साधन, सम्मान और स्वतंत्रता प्रदान करें, तो वे वास्तव में राष्ट्र निर्माता की भूमिका को सशक्त रूप से निभा सकेंगे।