नई दिल्ली। कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में आज बस्तर से दिल्ली पहुंचे नक्सल पीड़ितों ने
प्रेस वार्ता के दौरान अपना दर्द देश के सामने रखा और सभी सांसदों से
उपराष्ट्रपति पद के प्रत्याशी बी. सुदर्शन रेड्डी की उम्मीदवारी का
समर्थन न करने की गुहार लगाई।

‘बस्तर शांति समिति’ के बैनर तले हुई इस प्रेस वार्ता में पीड़ितों ने आरोप लगाया कि बी. सुदर्शन रेड्डी वही व्यक्ति हैं जिन्होंने नक्सलवाद के खिलाफ चल रहे आदिवासियों के जनांदोलन ‘सलवा जुडूम’ पर प्रतिबंध लगाया था। उनका कहना है कि इस फैसले से माओवादियों को बढ़ावा मिला और बस्तर आज भी इसका दंश झेल रहा है।
पीड़ितों ने बताया कि ‘सलवा जुडूम’ के मजबूत होने से नक्सल संगठन कमजोर हुआ और खत्म होने की कगार पर पहुंच गया था। लेकिन दिल्ली के कुछ नक्सल समर्थकों के दबाव में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। पीड़ितों का सवाल है कि इस फैसले से पहले उनकी स्थिति और भावनाओं को नहीं समझा गया।
पीड़ितों ने सुनाई अपनी दर्दभरी कहानी
इस मौके पर नक्सल हिंसा की कई मार्मिक कहानियां सामने आईं। सियाराम रामटेके, जो एक सामान्य किसान हैं, ने बताया कि कैसे माओवादियों ने उन पर तीन गोलियां चलाईं और पत्थरों से हमला किया। वह अब दिव्यांग जीवन जीने को मजबूर हैं। वे कहते हैं, “अगर सुदर्शन रेड्डी का वह फैसला नहीं होता, तो शायद यह घटना नहीं होती।”

केदारनाथ कश्यप ने बताया कि कैसे सलवा जुडूम पर प्रतिबंध के बाद माओवादियों ने उनके भाई की नृशंस हत्या कर दी। शहीद जवान मोहन उइके की पत्नी आरती उइके ने आंसुओं के साथ बताया कि कैसे उनके पति की मौत के बाद उनकी तीन महीने की बच्ची पिता के प्यार से वंचित रह गई। आज उनकी 10 साल की बेटी भी इस प्रेस वार्ता में मौजूद थी।
चिंगावरम हमले में एक पैर खो चुके महादेव दूधी ने टूटी-फूटी हिंदी और गोंडी में बताया कि कैसे माओवादियों ने एक आम यात्री बस पर हमला किया, जिसमें 32 लोग मारे गए।
सांसदों को लिखा पत्र, की गुहार
बस्तर शांति समिति के जयराम और मंगऊ राम कावड़े ने बताया कि पीड़ितों ने सभी सांसदों को पत्र लिखकर श्री रेड्डी की उम्मीदवारी का विरोध करने और उनका समर्थन न करने की अपील की है। उनका कहना है कि बस्तर के हजारों परिवार इस फैसले से प्रताड़ित हुए हैं और वे इस उम्मीदवारी से आहत हैं।
यह प्रेस वार्ता बस्तर के उन लोगों की पीड़ा की कहानी है, जो नक्सलवाद और प्रशासनिक फैसलों के बीच पिसते रहे हैं और आज भी न्याय की उम्मीद लगाए हुए हैं।