:राजकुमार मल:
भाटापारा- बचा कर रखा हुआ है सरगुजा के किसानों ने दुबराज को लेकिन मैदानी क्षेत्र
में लगभग खत्म होने की स्थिति में आ चुकी है बारीक धान की यह प्रजाति।
विष्णुभोग, जीरा फूल, जवा फूल और काली मूंछ धान 9000 रुपए क्विंटल से आगे जा चुका है।
यह स्थिति देखकर अब एक बार फिर से कृषि वैज्ञानिक मैदानी क्षेत्र में दुबराज की
वापसी की संभावनाएं तलाश रहे हैं। पहली कोशिश प्रदेश सरकार से मिलकर दुबराज की बोनी
करने वाले किसानों को प्रोत्साहन राशि दिलवाने की है क्योंकि
निश्चित कीमत देने वाली फसलों की बोनी की ओर रुझान ज्यादा है किसानों का।
इसलिए मैदानी क्षेत्रों से विदाई
मानक से ज्यादा ऊंचाई। कोमल तना और तेज हवा के प्रति असहनशीलता के अलावा नई बारीक धान की प्रजातियों की तुलना में प्रति एकड़ कमजोर उत्पादन ने भी मैदानी क्षेत्र के किसानों को दुबराज का साथ छोड़ने पर विवश किया। मजबूर थीं बारीक चावल उत्पादन करने वाली इकाईयां क्योंकि नई प्रजातियों के सामने दुबराज चावल की मांग तेजी से घट रही थी।

विदाई 2010 से
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक दुबराज का साथ किसानों ने सन 2010 से ही छोड़ना शुरू कर दिया था क्योंकि तब तक एचएमटी, जवा फूल, जीरा फूल और विष्णुभोग जैसी निश्चित कीमत देने वाली धान की बारीक किस्में आ गई थी। यह प्रजातियां दुबराज में आने वाली सभी समस्या से मुक्त थीं। इसलिए किसानों ने दुबराज को छोड़ना चालू कर दिया। अब स्थिति यह है कि मैदानी क्षेत्र से यह प्रजाति खात्मे की ओर है।

प्रसिद्ध था चावल भाटापारा का
उच्चतम कीमत और चावल की अंतरप्रांतीय मांग से प्रदेश के लगभग हर जिले के किसान दुबराज धान का विक्रय करने आते थे। अभी भी आ रहे हैं लेकिन दुबराज नहीं बल्कि अन्य बारीक प्रजातियां लेकर लेकिन अब फिर से कोशिशों की खबर के बाद किसान दुबराज की बोनी को लेकर उत्साह दिखा रहे हैं लेकिन बड़ी बाधा वह प्रोत्साहन राशि बन रही है, जिसकी मांग पर सरकार फिलहाल चुप है।

चाहिए प्रोत्साहन नीतियां
धान की अन्य प्रजातियों की तरह दुबराज के लिए भी विशेष प्रोत्साहन की नीतियां आवश्यक हैं। इकाइयां, बाजार और सरकार का समन्वित प्रयास ही मैदानी क्षेत्र में दुबराज की वापसी की राह खोल सकता है।
डॉ एस आर पटेल, रिटायर्ड साइंटिस्ट, एग्रोनॉमी, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर