:राजकुमार मल:
भाटापारा- सिर्फ तीन से आठ साल की उम्र में 30 से 35 फीट की ऊंचाई छू लेना इसकी विशेषता है। पत्तियां मानव एवं मवेशियों में संक्रमण रोकने में सक्षम हैं। मेड़ों में रोपण की सलाह इसलिए दी जाती है क्योंकि यही पत्तियां कीट प्रकोप को रोकतीं हैं।

एग्रोफॉरेस्ट्री की दुनिया में ‘मिलिया दुबिया’ के नाम से पहचानी जाती है यह प्रजाति। सबसे तेज बढ़वार लेने वाला यह वानिकी वृक्ष अब रोपण के लिए तैयार है वन विभाग की रोपणियों और निजी नर्सरियों में। महत्वपूर्ण इसलिए क्योंकि फार्म हाउस और सब्जी बाड़ियों के अलावा कॉलोनियों में रोपण बड़ी संख्या में हो रहे हैं।
3 साल में 30 फीट
‘मिलिया दुबिया’ एग्रोफॉरेस्ट्री के क्षेत्र में अपनी असाधारण वृद्धि दर के लिए जाना जाता है। 3 साल में 30 फीट तक की ऊंचाई हासिल कर लेने वाली यह प्रजाति 30 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी शानदार बढ़वार लेती है। अपनी इस विशेषता की वजह से ही ‘मिलिया दुबिया’ तटीय क्षेत्रों में रोपण का दायरा बढ़ा रहा है।
इसलिए मेड़ों में रोपण
नीम की पत्तियों की तरह दिखने वाली मिलिया दुबिया की पत्तियां मवेशियों के लिए आदर्श चारा तो हैं ही, साथ ही इनमें कीट प्रकोप को रोकने के भी असाधारण गुणों का खुलासा हुआ है। यही वजह है कि इसका रोपण मेड़ों में करने की सलाह वानिकी वैज्ञानिक दे रहे हैं। दिलचस्प इसलिए क्योंकि यह मानव और मवेशियों को संक्रमण से बचाते हैं।

बनती हैं यह सामग्री
परिपक्व मिलिया दुबिया की लकड़ियों की डिमांड मैच बॉक्स, पैकिंग बॉक्स और सिगार बॉक्स निर्माता इकाइयों से रहती है। इसके अलावा पेंसिल और कृषि उपकरण बनाने वाले कारखाने भी बड़ी मात्रा में खरीदी करते हैं। सबसे ज्यादा खरीदी समुद्री नाव बनाने वाली क्या करती है क्योंकि नाव के आउट रिगर इससे ही बनते हैं।
इन राज्यों में सबसे ज्यादा
मिलिया दुबिया पर हुए अनुसंधान और परिणाम के बाद तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में वृहद स्तर पर इस प्रजाति के पौधों का रोपण किया जा रहा है। तटीय क्षेत्रों में जैसी बढ़वार देखी जा रही है, उसके बाद अपने छत्तीसगढ़ में भी इसके पौधे न केवल रोपणियों और नर्सरियों में मिल रहे हैं बल्कि रोपण भी हो रहा है।

लगाएं मेड़ और तटीय इलाकों में
मिलिया दुबिया शानदार बढ़त लेने वाला एकमात्र ऐसा वृक्ष है, जो नियत अवधि में 10 से 12 मीटर की ऊंचाई वाला साफ तना और 120 से 130 सेंटीमीटर की गोलाई हासिल कर लेता है जबकि कुल ऊंचाई 20 से 25 मीटर तक पहुंच जाती है। मेड़ और तटीय क्षेत्रों में यह प्रजाति बेहतर परिणाम देती है।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट, फॉरेस्ट्री, बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्री एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर