-सुभाष मिश्र
भारत रंग महोत्सव जिसे संक्षेप में भारंगम भी कहा जाता है, अपने रजत जयंती वर्ष में पहली बार छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ स्थित इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित हुआ। मुख्यत: भारतीय नाट्य विद्यालय यानि एनएसडी दिल्ली में आयोजित होने वाला नाटको का यह सबसे बड़ा उत्सव है, जो अब धीरे-धीरे अलग अलग राज्यों में भी पहुंचने लगा है।
इस बार यह महोत्सव दिल्ली के अलावा 13 स्थानों पर 28 जनवरी से 16 फरवरी तक आयोजित हो रहा है। 200 से अधिक नाटकों की प्रस्तुतियां होने जा रही हैं, जिसमें 12 विदेशी नाटकों का मंचन भी सम्मिलित है। रांची, भोपाल, बंगलोरे, जयपुर, अगरतला, गोवा, भटिंडा गोरखपुर और खैरागढ़ इसमें शामिल है। इसके अलावा नेपाल और श्रीलंका में भी इस बार भारत रंग महोत्सव आयोजित किया गया है। वैसे तो राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय यानि एनएसडी की तर्ज पर हर राज्य में भी नाट्य विद्यालय और पूना फिल्म इंस्टिट्यूट की तर्ज पर प्रशिक्षण संस्थान खुलने चाहिए, किन्तु इस सम्बन्ध में सरकारों की उदासीनता के चलते यह संभव नहीं हो पा रहा है। कुछ राज्यों में अपने प्रशिक्षण संस्थान है, लेकिन वह भी पर्याप्त नहीं है। बहुत सारे लोग अपने-अपने प्रशिक्षण संस्थान चला रहे हंै किन्तु उनके पास अच्छे प्रशिक्षक और संसाधनों की कमी है। हमारे देश में इस तरह मनोरंजन की इंडस्ट्री सबसे बड़ी में शुमार है किन्तु उसके लिए जिस तरह के दक्ष लोग चाहिए उनकी कमी है। चीन जैसा देश ड्रामा बॉक्स के जरिये अरबो रूपए कमा रहा है। भारत में भी ओटीटी प्लेटफार्म पर बहुत सारा काम उपलब्ध है।
कला संस्कृति और साहित्य को बढ़ावा देने का दम भरने वाली सरकारों के लिए अब यह अंतिम प्राथमिकता होती है। दरअसल कला, अक्सर राज्याश्रय में फलती-फूलती है, किन्तु यदि वे सत्ते के अनुरूप अपना व्यव्हार, प्रस्तुति, आचरण, और लेखन नही करती तो उन्हें सरकारों का कोपभाजन भी बनना पड़ता है। इस बार के भारत रंग महोत्सव के लिए एनएसडी ने एक अपना गीत तैयार किया है।
भारत रंग महोत्सव-2
जय जय भारत रंग, वन्दे भारत रंग 2
भरत मुनि के भारत में, चलों नाटक धर्म निभाएंगे-2
भरत मुनि के पंचमवेद से नाटक के गुण गायेंगे।
नाटक संस्कृति रक्षक शोक विनाशक
जख्मों का मरहम हमें ज्ञान मिले बुद्धि मिले
बस नाटक के ही कारण नाटक से सारा विश्व हो वसुदेव कुटुम्बकम
जय-जय भारंगम।
खैरागढ़ में इस बार 6 अलह-अलग नाटकों की प्रस्तुति हुई जिसमें हिंदी, असमिया, तमिल, बंगला के नाटक शामिल रहे। 4 फरवरी को नर-नारी उफऱ् थैंक यू बाबा लोचनदास नाटक की प्रस्तुति हुई। इस नाटक के लेखक नाग बोडस है और इसे केजी त्रिवेदी भोपाल ने निर्देशित किया। 5 फरवरी को गिरीश कर्नाड द्वारा लिखित चर्चित नाटक हयवदन की प्रस्तुति की गई। जिसका निर्देशन देबेस चट्टोपाध्याय कलकत्ता ने किया। यह नाटक बंगला भाषा में प्रस्तुत किया गया। 6 फरवरी को असमिया नाटक मंगरी की प्रस्तुति की गई, जिसे प्रणब कुमार बर्मन ने लिखा और इसका निर्देशन परिसरानिया ने किया। 7 फरवरी को हिंदी नाटक मध्यम व्यायोग की प्रस्तुति हुई। महाकवि भासा ने लिखा और निशा विश्वकर्मा ने निर्देशित किया। 8 फरवरी को तमिल नाटक नाडापावादई की प्रस्तुति हुई रामासामी ने लिखा और निर्देशित किया। 9 फरवरी को हिंदी नाटक क्रॉस पर्पस की प्रस्तुति हुई जिसे अल्बर्ट कैमुस ने लिखा और श्रीकांत गाडगे ने निर्देशित किया।
छत्तीसगढ़ राज्य को बने 24 साल हो चुके है। इस बीच में छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी सिनेमा भी अपने स्तर पर विकसित हुआ। सरकार ने फिल्म नीति भी बनी और अब फिल्म सिटी बनाने की पहल हो रही है किन्तु फिल्म तकनीक और अभिनय को लेकर किसी प्रकार का कोई प्रशिक्षण संस्थान छत्तीसगढ़ में नहीं बन पाया है। यही हाल नाटको को लेकर भी है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर सहित अन्य शहरो में अन्य रंगकर्मियों के लिए ऑडिटोरियम नहीं है, न ही सरकार की ओर से यहाँ पर मध्यप्रदेश की तर्ज पर न कोई नाट्य विद्यालय खोला गया है। मध्यप्रदेश की साहित्यिक विरासत को जिस तरह से सजाया संवारा गया था, बंटवारे के बाद वह काम भी ठीक से नहीं हुआ। हबीब तनवीर, सत्यदेव दुबे, शंकर शेष, रामचंद्र देशमुख, रामदयाल तिवारी, देवदास बंजारे जैसे ख्याति नाम लोगों की परंपरा को आगे बढ़ाने का काम नहीं हो पाया। राज्योत्सव के अवसर पर कुछ लोगो के नाम से पुरस्कार देने मात्र से कला एवं संस्कृति का विकास नहीं होता। ले देकर डॉक्टर रमन सिंह के दूसरे कार्यकाल में रायपुर साहित्य महोत्सव का आयोजन हुआ। एक बार का यह आयोजन कई-कई कारणों से काल के गाल में समाहित हो गया। जहां तक इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय की बात है, उसको लेकर भी जिस संजीदगी से काम होना था वह भी नहीं हुआ। अस्थायी व्यवस्था के तहत किसी कमिश्नर को विश्वविद्यालय का कुलपति बनाना और स्थाई कुलपति का नहीं होना भी विश्वविद्यालय के कार्यो को प्रभावित करता है। कांग्रेस की भूपेश सरकार ने पूर्व में खैरागढ़ विश्वविद्यालय की एक स्टडी सेंटर रायपुर में खोलने की स्वीकृति दे थी, लेकिन वह भी राजनीति के चलते नहीं खुल पाया। स्थानीयता का बोध होना अच्छी बात है, किन्तु केवल स्थानीय स्तर पर एशिया का सबसे बड़ा कला संगीत विश्वविद्यालय को एक्सपोजऱ न मिले यह भी चिंता की बात है। भारत रंग महोत्सव के खैरागढ़ में आयोजित होने पर बहुत से लोग रायगढ़, कोरबा, बिलासपुर, भिलाई राजनादगांव से नाटक देखने खैरागढ़ पहुचे, किन्तु अभी भी खैरागढ़ में बुनियादी (रहने-ठहरने की सुविधा) संसाधनों का अभाव है। अगर यह समारोह और खैरागढ़ में होने वाले बहुत सारे प्रतिष्ठित समारोह खैरागढ़ के साथ-साथ भिलाई, बिलासपुर, रायपुर में हो तो इसे विस्तार मिलेगा, लोग इससे जुडं़ेगे।
भारत रंग महोत्सव में शामिल होने आए हयवदन के डायरेक्टर आए देबस चटोपाध्याय कहते हैं कि मैं पिछले 11 साल से भारंगम में जा रहा हूँ पर जो ऊर्जा खैरागढ़ में आकर मिली वह बड़े-बड़े शहरो में नहीं मिली। इसी तरह की बात क्रॉस पर्पस नाटक के निर्देशक श्रीकांत गाडगे ने भी कही। उन्होंने खैरागढ़ में कला संगीत के लिए जिस तरह से माहोल तैयार किया गया है और विद्यार्थी सिख रहे है उसकी सराहना की। भारंगम के स्थानीय संयोजक नाट्य विभाग के प्रमुख विश्वविद्यालय में डॉ. योगेन्द्र चौबे इस आयोजन से बेहद प्रसन्न है, और उनका मानना है की यहां के विद्यार्थियों के ऐसे आयोजन से बहुत कुछ सीखने मिलता है। डायरेक्टर से खुली बातचीत में वे अपने मन में उठने वाले बहुत सारे प्रश्नों, जिज्ञासाओं का समाधान पाते हैं।
भारत रंग महोत्सव का यह आयोजन विश्वविद्यालय के सहयोग से हुआ। इसमें राज्य के संस्कृति विभाग का जिस तरह से योगदान होना चाहिए था वह कही भी दिखाई नही दिया। पिछले कुछ सालों में लगातार संस्कृति के नाम पर जिस तरह के आयोजन हुए उसको लेकर भी काफी आलोचना हुई। कला, संस्कृति, साहित्य से जुड़ाव रखने वाले लोग संस्कृति के क्षेत्र में थोड़ी सहजता और लचीलापन की उम्मीद करते हैं। बेहतर होता की इस आयोजन में जो कि छत्तीसगढ़ में पहली बार हुआ, छत्तीसगढ़ सरकार भी अपनी इसमें सहभागिता निभाता।