-सुभाष मिश्र
आरएसएस कभी जाति विहीन समाज की बात करता था और कहता था कि हिदुओं को अलग-अलग बांटने की जरूरत नहीं है। वहीं आरएसएस अगर जातिगत जनगणना की बात कर रहा है तो लोगों का थोड़ा आश्चर्य हो रहा है कि आखिर आरएसएस जातिगत जनगणना की बात क्यों कह रहा है। पिछले दिनों दिल्ली के रामलीला मैदान में विपक्षों दलों ने बड़ी रैली की थी। इस रैली में मुख्य मांग थी कि जातिगत जनगणना होनी चाहिए। विपक्षों दलों लगता है कि जो पिछड़ी जाति हैं और उनकी उप जाति काफी पिछड़ी है। बहुत सी जातियां आरक्षण के बावजूद आरक्षण के लाभ से वंचित है। दूसरी तरफ ओबीसी को भी उस तरह का लाभ नहीं मिला, जैसा कि मिलना चाहिए। ऐसे में आरएसएस कहती है कि वह जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में है, पर इसका राजनीतिक इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वह क्या मजबूरी है कि आरएसएस को जातिगत जनगणना के पक्ष में होने की बात कहनी पड़ी? आरएसएस जब कोई बात कहता है तो लोग उसे गंभीरता से लेते हैं क्योंकि आरएसएस बीजेपी के लिए राजनीतिक लाइन तय करता है। केरल में आरएसएस की बैठक में जातिगत जनगणना के विषय पर मंथन हुआ और उसके बाद प्रेस कान्फ्रेंस में यह बात सामने आई। आरएसएस में काफी बदलाव हुआ है। आरएसएस भाजपा की रीढ़ रहा है। यही कारण है जाति को लेकर आरएसएस बहुत तेजी से अपनी विचारधारा बदल रहा है। आरएसएस ने जाति जनगणना पर सकारात्मक रुख दिखाकर भाजपा को धर्मसंकट से बचा लिया है। आरएसएस ने जाति जनगणना का समर्थन करने का संकेत दे दिया है। हालांकि यह भी सलाह दी है कि इसका उपयोग राजनीतिक या चुनावी उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाना चाहिए। आरएसएस ने यह भी सुझाव दिया कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उप-वर्गीकरण की दिशा में कोई कदम संबंधित समुदायों की सहमति के बिना नहीं उठाया जाना चाहिए। इंडिया गठबंधन के दलों के लगातार जातिगत जनगणना कराने की मांग और एनडीए के घटक दलों में जिसमें चन्द्रबाबु नायडू, नीतीश कुमार और चिराग पासवान शामिल हैं, उनका रुख जातिगत जनगणना को लेकर सकारात्मक है। एनडीए के घटक दल बार-बार संकेत देते रहते हैं कि उनके सहयोग से सरकार चल रही है। जेडीयू और लोजपा (रामविलास) सरकार में शामिल है, पर जाति जनगणना पर इंडिया गठबंधन के दलों के समान ही चाहते हैं। ऐसे में दुविधा है कि सरकार जाति जनगणना कराए या नहीं।
महत्वपूर्ण बात यह है कि देश में हर 10 साल पर होने वाली जनगणना अभी तक नहीं हुई है। पहले जब जनगणना होती थी, तब एससी और एसटी की गणना होती थी। अब आरएसएस के इस समर्थन के बाद क्या भाजपा जातिगत जनगणना के पक्ष में होगी। भाजपा ने कभी भी ऑफिशियली जाति जनगणना का विरोध नहीं किया। मगर, लोकसभा चुनावों में विपक्ष ने जातिगत जनगणना का वादा अपने घोषणापत्र करके जनता के बीच संदेश देने की कोशिश की कि भाजपा जातिगत जनगणना और जातिगत आरक्षण की विरोधी है। इसका असर यह हुआ कि जनता के बीच संदेश गया कि भाजपा सत्ता में आई तो आरक्षण खत्म कर देगी। यही कारण रहा कि उत्तर प्रदेश और बिहार में भाजपा की सीटें घट गईं। हालांकि अन्य राज्यों में इसका असर नहीं रहा। अब आरएसएस ने इस मुद्दे पर ग्रीन सिग्नल दे दिया है तो जाहिर है कि बहुत जल्द ऐसे संकेत मिल सकते हैं भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार जातिगत जनगणना के किसी फॉर्मेट को लेकर सामने आ सकती है।
आमतौर पर आरएसएस वर्ण व्यवस्था को मानने वाला रहा है। यही कारण है कि बहुत से लोग आरएसएस को मनुवादी कहते हैं और ब्राह्मणवादी व्यवस्था के समर्थक रूप में देखते रहे हैं। आरएसएस का नागपुर में कार्यालय है जो लोग इसका संचालन करते हैं, वे ब्राह्मण हैं। 2022 में एक पुस्तक के विमोचन समारोह में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने जो कुछ कहा उससे संघ के प्रति इस तरह का विचार रखने वालों को धक्का लगा। भागवत ने कहा कि वर्ण और जाति जैसी अवधारणाओं को पूरी तरह से त्याग दिया जाना चाहिए। भेदभाव का कारण बनने वाली हर चीज ताला, स्टॉक और बैरल से बाहर हो जानी चाहिए। जाति व्यवस्था की अब कोई प्रासंगिकता नहीं है। संघ प्रमुख ने डॉ. मदन कुलकर्णी और डॉ रेणुका बोकारे लिखित पुस्तक के अनावरण समारोह में कहा था कि सामाजिक समानता भारतीय परंपरा का एक हिस्सा थी, लेकिन इसे भुला दिया गया और इसके हानिकारक परिणाम हुए। यह अतीत है, इसे भूल जाओ जो कुछ भी भेदभाव का कारण बनता है, उसे बाहर कर दिया जाना चाहिए। अब सबके मन में सवाल है कि क्या आने वाले समय में देश की राजनीति में कहा जाता है कि संविधान संकट में है। भाजपा हिन्दुओं की पार्टी है। भाजपा को आरएसएस संचालित करती है और हिन्दुओं की एकता के लिए हर संभव प्रयास करती है। जिस हिंदुत्व का काट जातिगत जनगणना को माना जा रहा था। क्या आरएसएस के समर्थन के बाद भाजपा अब विपक्ष से यह मुद्दा छीन लेगी? अब आरएसएस की ओर से जातिगत जनगणना की बात कही गई है तो राजनीतिक गलियारे में यह बात प्रमुखता से उठाई जा रही है कि क्या भाजपा और मोदी सरकार जातिगत जनगणना करवाएगी? क्या जातिगत जनगणना को सार्वजनिक करेगी? हालांकि अभी कई सवाल हैं कि जातिगत जनगणना का फार्मेट क्या होगा? वैसे बिहार समेत कई राज्यों ने जातिगत गणना करवाई मगर, उसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए।
देश में कोई भी चीज लीक हो जाती है। इसी तरह जातिगत गणना के आंकड़े भी सामने आ गए और उसको लेकर काफी बहस भी हुई। सुप्रीम कोर्ट ने जब आरक्षण के भीतर आरक्षण की बात कही तो आरक्षित वर्ग के 100 सांसद प्रधानमंत्री से मिलकर अपनी चिंता जताई तो प्रधानमन्त्री ने आश्वासन दिया कि ऐसा नहीं होगा। हम वर्तमान जातिगत व्यवस्था और आरक्षण को जारी रखेंगे। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के सात में से छह जजों ने आरक्षण के भीतर आरक्षण के पक्ष में निर्णय दिया था, ऐसे में साफ़ है कि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी भी आरक्षित वर्ग को नाराज नहीं करना चाहते हैं।
अब मामला ओबीसी का है अगर जातिगत जनगणना होती है तो सर्वाधिक संख्या ओबीसी वर्ग की होगी। कुछ राज्यों में तो ओबीसी की संख्या बहुत अधिक है। अब जब जातिगत जनगणना होगी तो नया नेतृत्त्व उभरेगा। जातिगत जनगणना के बाद जो आंकड़े आएंगे तो सरकार उसका उपयोग उन जातियों के कल्याण के लिए करेगी, जैसा आरएसएस ने कहा है। इसका राजनीति हथियार के रूप में उपयोग नहीं होना चाहिए, पर देश कोई भी चीज राजनीति से अलग नहीं है। सितंबर 2015 में संघ के मुखपत्र ‘पाञ्चजन्य’ और ‘ऑर्गेनाइजऱ’ को दिए एक साक्षात्कार में मोहन भागवत ने आरक्षण की ‘समीक्षा’ किए जाने की ज़रूरत बताई थी। उन्होंने एक ‘अराजनीतिक समिति’ बनाने का भी प्रस्ताव रखा था, जिसका काम ये देखना था कि आरक्षण का फायदा किन लोगों को और कितने समय तक मिलना चाहिए। उनके इस बयान के बाद बिहार विधानसभा के चुनाव हुए थे। लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया और कहा था कि संघ आरक्षण को ख़त्म कराना चाहता है। बिहार विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार में इस बयान की भी बड़ी भूमिका रही। इसी प्रकार से विपक्ष आरोप लगाता रहा है कि आरएसएस के इशारे पर भाजपा जातिगत जनगणना नहीं करवा रही है। अब आरएसएस ने लोगों के सामने अपना मत स्पष्ट कर दिया है कि वह जातिगत जनगणना के विरूद्ध नहीं है, पर इसके राजनीतिक इस्तेमाल के विरूद्ध है। 23 सितंबर 2023 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम के दौरान एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण जारी रखने का समर्थन किया था। भागवत ने कहा कि जब तक समाज में भेदभाव है, आरक्षण भी बरकरार रहना चाहिए। संविधान सम्मत जितना आरक्षण है उसका संघ समर्थन करता है। संघ समय-समय पर मंथन करता है। उसके चिंतक और विचारक देखते हैं कि उनके किस स्टैंड से उसकी समर्थक भाजपा को फायद होगा। इस समय भाजपा जातिगत जनगणना पर घिरी नजर आ रही है। इसीलिए आरएसएस ने यह स्टैंड लिया है कि वह अपनी नीतियों में बदलाव कर रही है। भाजपा ने चुनाव जीतने के लिए ही अपनी नीतियों और स्ट्रक्चर में काफी बदलाव किया है। जो पार्टी कभी ब्राह्मणों और बनियों की पार्टी कही जाती रही है, अब वह पिछड़ों की पार्टी बनती जा रही है। इसका उदाहरण हम छत्तीसगढ़ में देखें तो यहां आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाया। मध्य प्रदेश में ओबीसी को मुख्यमंत्री बनाया गया। भाजपा ने आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाया। उसके पहले दलित समुदाय के रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाया था। भाजपा समय-समय पर कई तरह के प्रयोग करती रही है। भाजपा को यह सारा ज्ञान आरएसएस से मिल रहा है। अगले साल आरएसएस के गठन को 100 साल पूरे हो जाएंगे। 27 सितंबर 1925 को विजय दशमी को केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा आरएसएस की स्थापना की गई थी। उस समय हेडगेवार ने आरएसएस के संबंध में जो विचार रखे थे, उसमें समय-समय पर नए सर संघचालकों ने बदलाव किए। मगर भाजपा जो पूर्व में जनसंघ थी, उसका नियन्त्रण आरएसएस के हाथ में ही रहा। हालांकि बीच-बीच में यह खबर भी आती रही कि भाजपा का आरएसएस से अलगाव हो गया है। भाजपा इतनी ताकतवर हो गई है कि वह कांग्रेसियों को अपने में मिलाकर काम कर सकती है, लेकिन जो भाजपा को जानते हैं, उनको पता है भाजपा के सारे पदों पर आरएसएस के लोग ही बैठे हैं। ऐसे में आरएसएस यह कह रहा है कि जातिगत गणना होनी चाहिए तो भाजपा भी जातिगत जनगणना करवाएगी। हालांकि इसका स्वरूप क्या होगा यह आने वाला समय बताएगा।