-सुभाष मिश्र
इस समय एक बार फिर सरकारी नौकरी में आरक्षण का मुद्दा गरमाने लगा है । लोकसभा चुनाव में आरक्षण और संविधान को लेकर बहुत सी बयानबाज़ी हुई । बांग्लादेश में भी आरक्षण को लेकर तख़्ता पलट जैसी घटना हो गई । सुप्रीम कोर्ट ने ST , ST और OBC के आरक्षण के भीतर क्रीमी लेयर को हटाकर आरक्षण के भीतर की व्यवस्था दी है । अब कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव है ऐसे समय लेटरल एंट्री में आरक्षण को नकार दिया गया है ।भारत सरकार के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने सिविल सेवाओं में लेटरल एंट्री के लिए पोस्ट विज्ञापित की है । कुल 45 पदों के लिए जारी विज्ञापन में आरक्षण जैसी बात नहीं है । इसके पहले भी 2018 से लेकर बाद तक 63 पदों पर लेटरल एंटी के ज़रिए भर्ती हुई है ।दरअसल भारतीय सेवा एक तरह की कर्टन वॉल की तरह है । अंग्रेजों की बनाई इस व्यवस्था जिसे ब्यूरोक्रेसी कहा जाता है , में शुरुआत से ही एक श्रेष्ठी भाव रहा है । RR यानी सीधे UPSC से सिलेक्ट होने वाले अफ़सरों और डिप्टी कलेक्टर डी एस पी से प्रमोशन पाकर इस सेवा में शमिल होने वाले अफ़सरों के बीच भी गहरी खाई है । सीधी भर्ती से आने वाले अधिकारियों और उनकी बीबियों में भी एक प्रकार का श्रेष्ठता भाव होता है , जो क्लबों , सार्वजनिक अवसरों पर साफ़ दिखता है । यदि ब्यूरोक्रेसी की लोहे की इस दीवार को तोड़कर राज्य प्रशासनिक सेवा या अन्य सेवा की अफ़सर आगे बढ़ता है , तो भी वह यहाँ तब तक अछूते जैसा ही रहता है जब तक की उसे किसी बड़े नेता , मंत्री , मुख्यमंत्री का सीधे संरक्षण प्राप्त ना हो । अब यदि ऐसे में लेटरल तरीक़े से कोई इस जमात में शमिल होगा तो निश्चित ही हाय तौबा तो मचेगी ही । अधिकांश राज्यों में यह भी देखने में आया है की बहुत से विभागों में जहां विशेषज्ञ सेवा की ज़रूरत होती और जहां सालो साल से काम करने वाले अधिकारियों को पदस्थ होना चाहिए , वहाँ भी भारतीय सेवा के अधिकारी बिना किसी विशेषज्ञता के पोस्टेड हैं । “जेक ऑफ मास्टर ऑफ नन “ की कहावत को चरितार्थ करते ये अधिकारी सबको ज्ञान पेलते हैं भले ही इन्हें विभागीय कार्यों की ABCD ही क्यों ना आती हो । बहुत से अधिकारियों के भ्रष्टाचार और दीगर कारनामों की वजह से यह सेवा की भी काफ़ी बदनामी हुई है , हो रही है । विशेषज्ञों के आने से और कुछ हो ना हो संबंधित विभाग का काम तो कुछ हद तक ठीक ही होगा । जो लोग लेटरल सर्विस का विरोध कर रहे हैं , उन्हें ब्यूरोक्रेसी के भीतर की इस सच्चाई को भी समझना होगा । सरकारी नौकरी के एकल पदों पर पहले आरक्षण नहीं होता था पर अब उन्हें भी आरक्षण की गणना में गिना जाने लगा है । पदोन्नति से भरे जाने वाले बहुत से शीर्ष पदों पर योग्य लोग नहीं मिलने से वे लंबे समय से ख़ाली पड़े हैं । लेटरल एंट्री में आरक्षण की यह माँग क्या सही में जायज़ है ?
संघ लोक सेवा आयोग ने 24 केंद्रीय मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव के 45 पदों के लिए निजी क्षेत्र, राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकार और सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारियों से पार्श्व प्रवेश के लिए आवेदन मांगे हैं।विशेषज्ञ सेवाओं के लिए होने वाली इन भर्तियों के लिए निजी क्षैत्र में काम करने वाले विशेषज्ञ व्यक्ति आवेदन कर सकेंगे ।
नीति आयोग ने अपने तीन वर्षीय कार्य एजेंडा में इसकी सिफारिश की थी तथा शासन पर सचिवों के समूह (जीओएस) ने भी अपनी रिपोर्ट में सरकार में मध्यम और वरिष्ठ प्रबंधन स्तर पर कार्मिकों की नियुक्ति की सिफारिश की थी। इसका
उद्देश्य सिविल सेवाओं में डोमेन विशेषज्ञता लाना ,केंद्र में आईएएस अधिकारियों की कमी की समस्या का समाधान करना और राजस्व, वित्तीय सेवाओं, आर्थिक मामलों, कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण, सड़क परिवहन और राजमार्ग, नागरिक उड्डयन, वाणिज्य तथा कई अन्य क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखने वाले उत्कृष्ट व्यक्तियों की भर्ती करना है, ताकि वे देश के लाभ के लिए कार्य कर सकें। कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के अनुसार, आईएएस संवर्ग के लिए 22.48% या 1,510 अधिकारियों की कमी है।आईएएस और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) में संयुक्त रूप से 2,418 अधिकारियों की कमी है । प्राप्त आँकड़ो के अनुसार भारतीय सेवा का कुल स्वीकृत कॉडर 15106 है जिसमें से 12162 पद भरे हुए हैं और 2944 पद रिक्त हैं ।कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने यूपीएससी से सरकारी विभागों और मंत्रालयों में विभिन्न पदों पर पार्श्व प्रवेश के लिए चयन प्रक्रिया आयोजित करने को कहा है।
एक बार अभ्यर्थियों द्वारा आवेदन प्रस्तुत कर दिए जाने के बाद, यूपीएससी चयनित अभ्यर्थियों का साक्षात्कार लेता है तथा चयनित अभ्यर्थियों की सूची कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को भेजता है ।इसके बाद अनुशंसित उम्मीदवारों को सरकार द्वारा सामान्यतः 3 से 5 वर्ष की अवधि के लिए नियुक्त किया जाता है। संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने 24 केंद्रीय मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव के 45 पदों के लिए निजी क्षेत्र, राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकार और पीएसयू कर्मचारियों से पार्श्व प्रवेश पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए हैं।
डिजिटल अर्थव्यवस्था, प्राकृतिक खेती और उन्नत रासायनिक सेल विनिर्माण सहित ये पद 17 सितंबर तक अनुबंध के आधार पर भरे जाएंगे।
यह अनुबंध तीन वर्षों के लिए है, जिसे प्रदर्शन के आधार पर पांच वर्षों तक बढ़ाया जा सकता है।
अभ्यर्थियों के पास पर्याप्त अनुभव होना चाहिए, जिसमें संयुक्त सचिव के लिए 15 वर्ष, निदेशक के लिए 10 वर्ष तथा उप
नवाचार और नए दृष्टिकोण: विविध पृष्ठभूमि से आने वाले व्यक्ति नए विचार, नवीन दृष्टिकोण और नए दृष्टिकोण लेकर आते हैं, जिससे लोक प्रशासन में दक्षता और प्रभावशीलता में सुधार होता है।
योग्यता आधारित चयन: पार्श्व प्रवेश में पारंपरिक वरिष्ठता की तुलना में योग्यता, कौशल और अनुभव पर जोर दिया जाता है, जिससे सिविल सेवाओं के भीतर प्रदर्शन-उन्मुख संस्कृति को बढ़ावा मिलता है।
सीखने की प्रक्रिया को छोटा करना: अनुभवी पेशेवर व्यापक प्रशिक्षण की आवश्यकता के बिना शीघ्रता से अनुकूलन कर सकते हैं और योगदान दे सकते हैं, जो कि अक्सर कैरियर नौकरशाहों के लिए आवश्यक होता है ।
संयुक्त राज्य अमेरिका, बेल्जियम, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों ने इस प्रथा को अपनी प्रणाली के स्थायी भाग के रूप में संस्थागत बना दिया है।
संयुक्त राज्य अमेरिका में इसे ” स्पॉइल्स सिस्टम ” के नाम से जाना जाता है, जिसमें जीतने वाली राजनीतिक पार्टियाँ अपने मित्रों और परिवार के सदस्यों को बिना किसी योग्यता के प्रमुख सरकारी पदों पर नियुक्त करती हैं।
यूनाइटेड किंगडम और आयरलैंड जैसे देशों में अधिकारियों का चयन सिविल के साथ-साथ निजी क्षेत्र में कार्य अनुभव के मानदंड पर किया जाता है।
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने केंद्र के विभिन्न मंत्रालयों में संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों के प्रमुख पदों पर ‘लेटरल एंट्री’ के जरिये जल्द ही 45 विशेषज्ञ नियुक्त किए जाने के फैसले की आलोचना की है. राहुल ने इसकी निंदा करते हुए कहा कि महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के ज़रिए भर्ती कर खुलेआम SC, ST और OBC वर्ग का आरक्षण छीना जा रहा है.
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सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखी पोस्ट में राहुल गांधी ने इसे प्रशासनिक ढांचे और सामाजिक न्याय दोनों को चोट पहुंचाने वाला फैसला बताते हुए कहा कि इस देश विरोधी कदम का INDIA मजबूती से विरोध करेगा. इससे पहले सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती ने भी इसे सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मनमानी बताया और ‘‘साजिश और संविधान का उल्लंघन’’ करार दिया.
राहुल गांधी ने अपनी पोस्ट में
लिखा, है की “नरेंद्र मोदी संघ लोक सेवा आयोग की जगह ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ के ज़रिए लोकसेवकों की भर्ती कर संविधान पर हमला कर रहे हैं. केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के ज़रिए भर्ती कर खुलेआम SC, ST और OBC वर्ग का आरक्षण छीना जा रहा है. मैंने हमेशा कहा है कि टॉप ब्यूरोक्रेसी समेत देश के सभी शीर्ष पदों पर वंचितों का प्रतिनिधित्व नहीं है, उसे सुधारने के बजाय लेटरल एंट्री द्वारा उन्हें शीर्ष पदों से और दूर किया जा रहा है.यह UPSC की तैयारी कर रहे प्रतिभाशाली युवाओं के हक़ पर डाका और वंचितों के आरक्षण समेत सामाजिक न्याय की परिकल्पना पर चोट है.’
राहुल गांधी ने आगे लिखा, ‘चंद कॉरपोरेट्स के प्रतिनिधि निर्णायक सरकारी पदों पर बैठ कर क्या कारनामे करेंगे इसका ज्वलंत उदाहरण SEBI है, जहां निजी क्षेत्र से आने वाले को पहली बार चेयरपर्सन बनाया गया. प्रशासनिक ढांचे और सामाजिक न्याय दोनों को चोट पहुंचाने वाले इस देश विरोधी कदम का INDIA मजबूती से विरोध करेगा. IAS का निजीकरण आरक्षण खत्म करने की मोदी की गारंटी है.
लालू यादव का पोस्ट
लालू प्रसाद यादव ने भी लेटरल भर्ती का विरोध करते हुए लिखा, ‘बाबा साहेब के संविधान एवं आरक्षण की धज्जियां उड़ाते हुए नरेंद्र मोदी और उसके सहयोगी दलों की सलाह से सिविल सेवा कर्मियों की जगह अब संघ लोक सेवा आयोग ने निजी क्षेत्र से संयुक्त सचिव, उप-सचिव और निदेशक स्तर पर नियुक्ति के लिए सीधी भर्ती का विज्ञापन निकाला है. इसमें कोई सरकारी कर्मचारी आवेदन नहीं कर सकता. इसमें संविधान प्रदत कोई आरक्षण नहीं है.’
उन्होंने आगे लिखा, ‘कारपोरेट में काम कर रहे बीजेपी की निजी सेना यानि खाकी पेंट वालों को सीधे भारत सरकार के महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों में उच्च पदों पर बैठाने का यह “नागपुरिया मॉडल” है. संघी मॉडल के तहत इस नियुक्ति प्रक्रिया में दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिलेगा. वंचितों के अधिकारों पर NDA के लोग डाका डाल रहे है. ‘
वहीं सपा प्रमुख एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस फैसले के खिलाफ दो अक्टूबर से प्रदर्शन करने की चेतावनी भी दी है. अखिलेश ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा, ‘भाजपा अपनी विचारधारा के संगी-साथियों को पिछले दरवाजे से यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) के उच्च सरकारी पदों पर बैठाने की जो साजिश कर रही है, उसके खिलाफ एक देशव्यापी आंदोलन करने का समय आ गया है.’
उन्होंने दावा किया कि यह तरीका आज के अधिकारियों के साथ युवाओं के लिए भी वर्तमान और भविष्य में उच्च पदों पर जाने का रास्ता बंद कर देगा. सपा प्रमुख ने कहा कि भाजपा जान रही है कि संविधान को खत्म करने की उसकी चाल के खिलाफ देश भर का ‘पीडीए’ जाग उठा है तो वह ऐसे पदों पर सीधी भर्ती करके आरक्षण को दूसरे बहाने से नकारना चाहती है.
वहीं बसपा प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने भी सरकार के इस फैसले को गलत बताया. उन्होंने ‘एक्स’ पर लिखा, ‘केन्द्र में संयुक्त सचिव, निदेशक एवं उपसचिव के 45 उच्च पदों पर सीधी भर्ती का निर्णय सही नहीं है, क्योंकि सीधी भर्ती के माध्यम से नीचे के पदों पर काम कर रहे कर्मचारियों को पदोन्नति के लाभ से वंचित रहना पड़ेगा.’ मायावती ने कहा कि इन उच्च पदों पर सीधी नियुक्तियां करना भाजपा सरकार की मनमानी होगी, जो कि गैर-कानूनी एवं असंवैधानिक होगा.
समूचे विपक्ष को अब इस बात पर भी चिंता करनी चाहिए की एक निष्पक्ष प्रशासनिक आयोग बने जिसकी सिफ़ारिशों को देश हित में लागू किया जाये केवल वोट की राजनीति के लिए ब्यूरोक्रेसी को , सरकारी तंत्र को निरंकुश और बेलगाम होने दिया जायेगा तो वे सालो साल अपने स्वार्थ की रोटी सेंक कर अंग्रेजों की ही तरह फूट डालो , राज करो का फ़ार्मूला अपनाकर अपना उल्लू सीधा करते रहे हैं और जहां उन्हें नही होना चाहिए , वहाँ भी वही क़ाबिज़ दिखाई देंगे ।