3 July, महंगे पेट्रोलियम व खाद- बीज ने बढ़ाई कृषि उपज की लागत

महंगे पेट्रोलियम व खाद- बीज ने बढ़ाई कृषि उपज की लागत
  1. महंगे पेट्रोलियम व खाद- बीज ने बढ़ाई कृषि उपज की लागत

  2. कोरबा : पेट्रोल व डीजल की बढ़ती कीमत ने कृषि खेती के शुरूआत से ही लागत में वृद्धि के संकेत दे दिए हैं।

  3. कृषि बैल हल से होने वाली जुताई जहां 400 से बढ़कर 500 हो गई है।

महंगे पेट्रोलियम व खाद- बीज ने बढ़ाई कृषि उपज की लागत
महंगे पेट्रोलियम व खाद- बीज ने बढ़ाई कृषि उपज की लागत

वहीं ट्रैक्टर से जोतने के एवज में 1000 के बजाए 1200 लिया जा रहा है।

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खाद बीज की कीमत पहले से बढ़ी हुई है। उस पर खेतों में काम करने वाले दिहाड़ी मजदूरों ने भी प्रतिदिन की मजदूरी 400 रुपये कर दी हैं।

खाद बीज मानसून की निष्क्रियता से पिछड़ती खेती के बीच लागत में कृषि बढ़ोतरी ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है।

खाद बीज मानसून आगमन से अब तक 1148.2 मिमी वर्षा हो चुकी है।

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मिट्टी में नमी आने के बाद खेतों में जोताई का काम जारी है।

इसके अलावा जिन लोगों ने सूखा बोआई की थी उन्हे आगामी दिनों में रोपा व बियासी के लिए जुताई की फिर से आवश्यकता पड़ेगी।

गांव में कृषि ट्रैक्टर कम और जुताई कराने वाले किसानों की संख्या अधिक है।

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कृषि ऐसे में ट्रैक्टर मालिकों ने भी जोताई की दर बढ़ा दी है। जुताई कार्य में आई तेजी से शहर के पेट्रोल पंपों में ही डीजल की मांग बढ़ गई है।

ग्रामीण क्षेत्रों में बैल से खेतों की जुताई की परंपरा कम हो चुकी है।

सीमित किसानों के पास ही ये संसाधन उपलब्ध हैं। इस वजह से इसकी भी कीमत बढ़ गई है।

कृषि  सिंचाई सुविधा का विस्तार नहीं होने की वजह से आज भी जिले के अधिकांश किसान परंपरागत खेती पर निर्भर है।

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पिछड़ती खेती कृषि के कारण अब किसान पेट्रोल अथवा डीजल मोटर पंप से सिंचाई कर रहे हैं।

समय पर बारिश हो जाती तो इसकी आवश्यकता नहीं पड़ती।

मानसून की निष्क्रियता के चलते किसानों को सिंचाई सुविधा के लिए अतिरिक्त खर्च करना पड़ रहा है।

किराए पर सिंचाई मशीन लेने पर प्रतिदिन 1000 रुपये से भी अधिक खर्च आ रहा।

रिस्दी के किसान बोधराम का कहना है कि बियासी कार्य ट्रैक्टर से नहीं की जा सकती।

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इसके लिए बैल हल ही उपयुक्त है। ऐसे में हल मालिकों ने इसकी कीमत में बढ़ोतरी कर दी है।

खंड वर्षा से थरहा तैयार होने में देरी

खंड वर्षा खेती में बाधा बनी है। 15 जून को जिस तेजी से बारिश हुई थी उससे माना जा रहा था कि जुलाई माह के अंत तक रोपाई शुरू हो जाएगी।

थम-थम कर हो रही बारिश के चलते अभी थरहा भी तैयार नहीं हुआ है।

अब तक हुई बारिश पर गौर करें तो सबसे अधिक 286.8 मिली मीटर वर्षा कटघोरा में हुई है। सबसे कम वर्षा 55.6 मिलीमीटर हरदीबाजार तहसील में दर्ज किया गया है।

जिले में 81 हजार 882 हेक्टेयर भूमि में धान की खेती होगी। सर्वाधिक खेती का रकबा करतला और पाली में है, जहां आवश्यकता से कम बारिश हुई है।

किसानों को अभी भी बेहतर बारिश की आस बंधी है। पखवाड़े भर के भीतर बारिश नहीं होने से खेती पूरी तरह पिछड़ जाएगी।

मौसमी सब्जी के तैयार होने में देरी

सब्जी की खेती के लिए जिला कृषि विभाग ने इस वर्ष 11500 हेक्टेयर में क्षेत्राच्छादन का लक्ष्‌य रखा है।

लक्ष्‌य के विपरीत 3313 हेक्टेयर में बुआई हो चुकी है।

प्रारंभिक तौर पर तैयार होने वाले सब्जी फसल बरबट्टी, तरोई, कद्दू की उपज की प्रगति में बारिश बाधा बनी हुई है।

टमाटर, बैगन, सेम, मूली आदि की बुआई के लिए तैयार मांद पर उमस अब भारी पड़ने लगा है।

मानसून की निष्क्रियता के चलते स्थानीय बाड़ी में सब्जियों के तैयार होने में समय लग रहा है।

सब्जी मंडी दीगर जिलों से आने वाली सब्जी पर निर्भर है। बाजार में स्थानीय सब्जियों की आवक नहीं होने से हरी सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं।

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दलहन और तिल की बोआई में संशय

मानसून की निष्क्रियता ने धान ही नहीं बल्कि दलहन और तिलहन की बोआई को प्रभावित किया है।

जिन किसानों ने सूखा बोआई कर ली है वे अब मूंगफली और तिल की बोआई को लेकर कश्मकश की स्थिति में है।

समय पर बारिश नहीं होने पर बीज व्यर्थ जाएगा। धान की तुलना में दहलन और तिलहन बीज की कीमत अधिक है।

बीजों की खरीदी पूरा होने के बाद फिर से उपचारित बीज मिलना मुश्किल है।

कम लागत में अधिक फसल लाभ के लिए जिला कृषि विभाग ने इस बार दलहन के रकबा को 9440 से बढ़ाकर 13190 हेक्टेयर कर दिया है।

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पिछड़ती वर्षा से बोआई करने वाले किसानों के संख्या में कमी आ सकती है।

फसलवार क्षेत्राच्छादन हेक्टेयर में

पुसल- लक्ष्‌य

धान रोपा- 41000

बोता- 36960

लेही- 3000

कतार- 800

दलहन- 13190

तिलहन- 3910

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