:जल संरक्षण के लिए सबसे बेहतर हो सकता है उपयोग:
:राजकुमार मल:
भाटापारा: नहीं दे पाएंगे साथ क्योंकि हमें डस्टबिन मान लिया गया है. बरसों से प्यास बुझाते आ रहे कुंओं की की शायद यही पुकार है. क्योंकि जल संचयन और वाटर रिचार्ज जैसी योजनाएं सूखते कुंओं की मुंडेर तक नहीं पहुंच पाई है.
लगातार गिरते जलस्तर से बोरवेल्स, तालाब और नदियों के बाद अब कुंए भी सूखने लगे हैं. शहर के भीतर लगभग 12 से अधिक ऐसे कुंए हैं, जो पूरी तरह सूख चुके हैं. नए बोर खनन की व्यवस्था तो ठीक मानी जा रही है लेकिन भरोसेमंद साथी रहे कुओं की उपेक्षा जिस तरह शहर और जिम्मेदार कर रहे हैं, वह समझ से परे है.
सेहत हो रही खराब
शहर के मध्य भाग में कई कुंए हैं. दो कुंओं को छोड़कर शेष दस कुंओं को डस्टबिन मान लिया गया है. संस्थानों और घरेलू अपशिष्ट का अंतिम निपटान केंद्र माने जा चुके यह कुंए जल संकट के दौर में भी याद नहीं आ रहे हैं क्योंकि बोरवेल्स और हैंडपंप जैसे फौरी उपायों को प्राथमिकता दी जा रही है. जबकि यह संकट के दिनों में प्यास बुझाने के लिए भरोसेमंद साथी रहे हैं.
सिर्फ इनका बचा अस्तित्व
दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर महावीर धर्मशाला, श्री खप्पर बाबा मंदिर और कल्याण सागर तालाब का कुंआ. यह तीन ऐसी महत्वपूर्ण जगह हैं, जहां के कुंए न केवल अस्तित्व में हैं बल्कि रोजमर्रा की जरूरतें भी पूरी कर रहे हैं. शेष सभी कुंए अपशिष्ट निपटान के अंतिम केंद्र के रूप में उपयोग किये जा रहे हैं. सहयोग, शहर और शहर के जिम्मेदारों का भी बराबर मिल रहा है इस काम में.
मुंडेर कर रहे इंतजार
नलकूपों के पास सोख्ता गढ्ढा और वाटर हार्वेस्टिंग जैसी जल संचय करने वाली योजनाएं महाअभियान के रूप में चलाई जा रहीं हैं लेकिन कुंए की मुंडेर तक यह योजनाएं कब पहुंचेगी ? जैसे सवाल इसलिए उठने लगे हैं क्योंकि योजनाओं में कुंओं का उल्लेख तक नहीं है. ऐसे में सिर्फ एक बात- तकनीकी सहायता या तकनीकी जानकारी दे दी जाए ताकि उपेक्षित हो चले कुंओं की सफाई करवाई जा सके. आस में है शहर सरकार से शहर.
कुओं को लेकर नगर पालिका अध्यक्ष अश्वनी शर्मा का कहना है कि जल संचयन की सभी प्रणालियों में अहम है कुंओं का होना. शहर के सभी कुंओं का सर्वेक्षण तो करवाया ही जाएगा, साथ ही सफाई तथा वाटर रिचार्ज की पक्की व्यवस्था करेंगे ताकि सभी कुंओं से पूरे साल जल उपलब्धता होती रहे.