राजधानी रायपुर में सड़क सुरक्षा को लेकर शुरू किया गया हेलमेट अभियान अब सवालों के घेरे में आ गया है। पेट्रोल डीलर एसोसिएशन ने दोपहिया चालकों को बगैर हेलमेट पेट्रोल न देने का सख्त निर्णय लिया था। उद्देश्य था लोगों को सड़क हादसों से बचाने के लिए जागरूक करना। लेकिन इस फैसले का नतीजा यह हुआ कि पेट्रोल पंपों के आसपास अब हेलमेट किराए पर मिलने लगे हैं। लोग महज 10 रुपए देकर किराए का हेलमेट पहनकर पेट्रोल भरवा रहे हैं और बाद में उसे लौटा रहे हैं।

पेट्रोल पंप कर्मचारी ही दे रहे सलाह
जानकारी के अनुसार, कई पेट्रोल पंप कर्मचारियों ने ही बिना हेलमेट पेट्रोल लेने आए ग्राहकों को रास्ता दिखाया कि पास में किराए का हेलमेट मिल जाएगा। कुछ कर्मचारी तो खुद सलाह देते हैं कि “कोई दूसरा हेलमेट पहन लो और पेट्रोल भरवा लो।” इससे अभियान का मूल मकसद ही बेकार होता दिख रहा है।
शुरुआत थी जागरूकता से
शुरुआत में एसोसिएशन ने कहा था कि बगैर हेलमेट आने वालों को पहले समझाइश दी जाएगी, उसके बाद ही पेट्रोल रोका जाएगा। लेकिन जैसे ही यह नियम सख्ती से लागू किया गया, पंपों के आसपास लोग मौके का फायदा उठाने लगे। शंकर नगर सहित शहर के कई इलाकों में कुछ युवक हेलमेट लेकर खड़े रहते हैं। जो ग्राहक बिना हेलमेट आता है, उसे 10 रुपए में हेलमेट किराए पर देकर पेट्रोल भरवा देते हैं। पेट्रोल भरने के बाद हेलमेट वापस ले लेते हैं।
लोग बोले – औचित्य ही खत्म
इस पूरे घटनाक्रम पर आम लोग सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि जब कोई व्यक्ति सिर्फ पेट्रोल भरवाने के लिए किराए का हेलमेट पहन रहा है और बाद में उसे उतार रहा है, तो अभियान का वास्तविक उद्देश्य कहां पूरा हो रहा है? इससे न तो सड़क सुरक्षा बढ़ रही है और न ही लोग नियमित रूप से हेलमेट पहनने के आदी हो पा रहे हैं।
जरूरी है सही दिशा में प्रयास
विशेषज्ञों का मानना है कि सड़क हादसों को रोकने के लिए हेलमेट अनिवार्य करना जरूरी है, लेकिन इसके लिए सिर्फ पेट्रोल पंप पर रोक लगाने की जगह व्यापक जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। पंप संचालकों की सख्ती से उपभोक्ताओं में नाराजगी भी बढ़ रही है। लोग कह रहे हैं कि पंपों की जिम्मेदारी समझाइश और सुरक्षा के लिए जागरूक करना होनी चाहिए, न कि किराए के हेलमेट का नया बाजार खड़ा करना।

आखिर सवाल यही है कि जब लोग सिर्फ पेट्रोल भरवाने के लिए किराए का हेलमेट पहनते हैं और बाद में उसे हटा देते हैं, तो इस हेलमेट अभियान का असली औचित्य क्या रह जाता है?