Environment वांगारी मथाई पर्यावरण पर नोबुल

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 डॉ. सुधीर सक्सेना

Environment वांगारी मथाई पर्यावरण पर नोबुल

Environment 8 अक्टूबर, सन् 2004 को जब नैरोबी में अश्वेत पर्यावरणविद सुश्री वांगारी मथाई के फोन की घंटी घनघनायी तो उन्हें शायद ही उम्मीद रही होगी कि फोन पर मिलने जा रही सूचना उनके जीवन की सबसे बड़ी और कीमती सौगात साबित होगी। फोन पर दूसरी ओर थे नॉर्वे के केन्या स्थित राजदूत। उन्होंने आदरसूचक संबोधन के बाद सुश्री मथाई को इस वर्ष के नोबुल शांति पुरस्कार के लिए चुने जाने की सूचना दी तो सुश्री मथाई पलभर को विस्मय और हर्षातिरेक से अवाक रह गयीं। धडक़नों पर काबू पाकर खुशी से छलकते स्वरों में उन्होंने कहा, ‘‘मैं बहुत खुश हूंं और इस खुशी को व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं।’’

Environment  कुछ ही देर बाद नॉर्वे टेलीविजन ने जब प्रतिक्रिया के लिए उनसे सम्पर्क साधा तो उन्होंने कहा, ‘‘शांति के लिए पर्यावरण बहुत महत्वपूर्ण है। जब हम अपने-अपने संसाधनों को नष्ट करते हैं और जब संसाधन सीमित हो जाते हैं, तो उनके लिए हमें लड़ाइयां लडऩी पड़ती हैं।’’

Environment  मथाई को पर्यावरण पर नोबुल के संदर्भों पर विचार करें : एक बिरवा रोपना और उसे फलते फूलते देखना विभीषिकाओं के बीच एक कठिन अभियान से कमतर नहीं है। वृक्ष स्वास्थ्य एवं समृद्धि के वाहक हैं और शांति के नैसर्गिक प्रतीक भी। वृक्ष पर्यावरण का सर्वोत्कृष्ट मानक रचते हैं। यही वे संदर्भ हैं कि सुश्री वांगारी मथाई ने अपना सारा जीवन वृक्षारोपण अभियान को समर्पित कर दिया था।

Environment  यही उनका मिशन है। नोबुल शांति पुरस्कार समिति के अध्यक्ष ओले डेनवोल्ट के अनुसार, यह पहला मौका है कि पर्यावरण ने नोबुल शांति पुरस्कार का एजेंडा तय किया है। यह पहला अवसर है कि यह प्रतिष्ठापूर्ण पुरस्कार किसी अफ्रीकी महिला को दिया जा रहा है। एक करोड़ स्वीडिश क्रोनर यानी करीब 13 लाख डॉलर का यह पुरस्कार सुश्री मथाई को अल्फ्रेड बर्नार्ड नोबुल की पुण्यतिथि पर 10 दिसंबर को प्रदान किया गया।

Environment  64 वर्षीया सुश्री वांगारी मथाई तब केन्या सरकार में पर्यावरण उपमंत्री थीं। यह एक महत्वपूर्ण पद और जिम्मेदारी थी। लेकिन मथाई के लिए इससे ज्यादा अहमियत रखता रहा उनका मिशन। वे अफ्रीका में हरित अभियान की पुरोधा रही हैं। वे अफ्रीका में ग्रीनबेल्ट या हरित पट्टी कार्यक्रम के तहत तब तक तीन करोड़ से ज्यादा पौधे लगा चुकी थी। इस मिशन से वे चौथाई सदी से भी अधिक समय तक जुड़ी रहीं।

उन्होंने साहसिक पहल करते हुए सन् 1977 में ग्रीनबेल्ट आंदोलन की नींव रखी थी। एकाकी जिद से उपजा यह अभियान रंग लाया। उनके आंदोलन से अफ्रीका में सबसे विशाल वृक्षारोपण अभियान की शक्ल ले ली। इस अभियान से केवल पर्यावरण ही नहीं सुधरा, अपितु बहुविध लाभ मिले। जैव विविधता की समृद्धि के साथ-साथ इससे रोजगार और आजीविका के साधन विकसित हुए और समाज में महिलाओं की स्थिति सुदृढ़ हुई।

Environment  सन् 1940 में जनमी वांगारी की शिक्षा अमेरिका में हुई और वहीं से उन्होंने जैव-विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। तदंतर वे केन्या लौटीं और पीएचडी की डिग्री हासिल करने के बाद वे नैरोबी विश्वविद्यालय में पहली महिला प्रोफेसर बनीं।

उन्होंने एक राजनेता से शादी की, लेकिन पति ने वांगारी और तीन संतानों को इसलिये त्याग दिया, क्योंकि सुश्री वांगारी अधिक शिक्षित, अधिक मजबूत, अधिक कर्मठ, अधिक सफल शख्सियत थीं। पत्नी का स्वतंत्रचेता, जिद्दी और साहसी होना पति को रास नहीं आया। उसने उन्हें छोड़ दिया, लेकिन इससे वांगारी के पांव कर्तव्यपथ से डिगे नहीं। अपने वृहद सरोकारों के चलते वे समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निरंतर पालन करती रहीं।

Environment  राष्ट्रपति डेनियल आराप मोई के अधिनायकवादी काल में उन्होंने केन्या में बहुलवादी लोकतंत्र की स्थापना की मांग उठायी। इससे वे मोई और उनके पि_ुओं की आंखों की किरकिरी बन गयीं। ताकतवर लॉबी ने सन् 1987 में उन्हें राष्ट्रपति पद के चुनाव में षडयंत्रपूर्वक दौड़ से बाहर कर दिया। पंद्रह साल बाद सन् 2002 में विपक्षी गठबंधन ने मोई को करारी शिकस्त दी। माउंट केन्या के मतदाताओं ने मथाई को भारी बहुमत से संसद के लिए चुना। उनके सरोकारों के चलते उन्हें मंत्री पद से नवाजा गया।

Environment  अपनी जद्दोजहद के चलते सुश्री वांगारी मथाई ने सन् 1989 में वूमैन ऑफ द वर्ल्ड और सन् 98 में ‘टाइम’ पत्रिका की ओर से ‘हीरो ऑफ द प्लैनेट’ का खिताब हासिल किया। सन् 1995 में विश्व की चर्चित महिलाओं की फेहरिस्त में उनका नाम शुमार हुआ। इस दरम्यान वांगारी ने अफना मिशन लगातार जारी रखा। नतीजतन नोबुल समिति ने उनके अभियान को सतत विकास, लोकतंत्र और शांति की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान निरूपित करते हुए नोबुल पुरस्कार देने का फैसला किया। समिति ने अपनी घोषणा में कहा-‘‘इस धरती पर शांति इस बार पर निर्भर करती है कि हम जीवन जीने योग्य पर्यावरण को किस प्रकार सुरक्षित रखते हैं?

मथाई केन्या और अफ्रीका में जैविक विविधता समर्थित समाज अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक विकास के प्रोत्साहन के लिए शुरू किए गए संघर्ष में अग्रिम मोर्चे पर खड़ी रहीं।

मथाई नोबुल पुरस्कार मिलने को अपने जीवन की सबसे सुखद घटना थी। उन्होंने कहा था-‘‘मैं अपना अभियान जारी रखूंगी। मैं बहुत खुश हूं और हर चीज के लिए भगवान का धन्यवाद करती हूं। मैं केन्या के नागरिकों से अपील करूंगी कि वे अभियान में मेरा साथ दें।’’ यह और कुछ नहीं, वरन धरती पर अपने होने के लिए धरती के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करना था।

वांगारी मथाई का पूरा नाम था वूअंगरी (वांगारी) मुता मथाई। वे केन्या के किकूयू समुदाय से ताल्लुक रखती थीं। उनमें शिक्षा की गहरी ललक थी। सन 1964 में उन्होंने एटिसन, कान्सास में माउंट सेन्ट स्कोलास्टिका से जीव विज्ञान में स्नातक की उपाधि ली थी। तदंतर स्नातकोत्तर उपाधि के बाद उन्होंने पूर्वी एवं मध्य अफ्रीका की पहली डॉक्ट्रेट का श्रेय प्राप्त किया। सन् 76 में वह राष्ट्रीय महिला परिषद में सक्रिय हुईं और सन् 81-87 में वह परिषद की अध्यक्ष रहीं। सन् 80 के दशक में वह राष्ट्रीय महिला परिषद में सक्रिय हुईं और सन 81-87 में वह परिषद की अध्यक्ष रहीं।

सन् 80 के दशक में उनका पैन अफ्रीकन ग्रीन बेल्ट नेटवर्क केन्या के बाहर युगांडा, तंजानिया, मलानी, लेसोथो, जिंबाब्वे और इथियोपिया आदि देशों में फैल गया। उनके हरित उपक्रम ने बरबस सारे विश्व का ध्यान आकृष्ट किया। उन्होंने प्राय: महिला समूहों को अपने अभियान से जोड़ा। सन् 80 के दशक में उनकी ख्याति ने महाद्वीप की सरहदें लांघी। वे विश्व की 100 चुनिंदा नायिकाओं में नामित हुईं और हाल ऑफ फेम की 500 की चमकीली सूची में शुमार। उन्हें पुरस्कार पर पुरस्कार मिले। गोल्डन आर्क अवार्ड। पेट्रा केली सोफी पुरस्कार। वेटर वर्ल्ड सोसायटी अवार्ड। वांगो पर्यावरण पुरस्कार। द वूमैन ऑफ द वर्ल्ड। एडिनबर्ग मेडल।

उन्होंने कई बार यूएनओ को संबोधित किया। सन् 88 में उनकी किताब ‘द ग्रीनबेल्ट मूवमेंट : शेयरिंग द एप्रोच एण्ड द एक्सपीरियंस’ चर्चित रही। इसी क्रम में नोबुल पुरस्कार मिलने के बाद उन्होंने सन् 2007 में अपनी आत्मकथा लिखी। शीर्षक दिया ‘अनबोएड’। दो साल बाद उनकी एक अन्य कृति आई : ‘चैलेंज फॉर अफ्रीका।’ उनका एक ही सपना था हरी भरी धरती। यही साध लिए उन्होंने 25 सितंबर, सन् 2011 को आंखें मूंदीं और अपनी चिर साधक पृथ्वीवासियों को सौंप गयीं।

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