RSS का नगर में विजयादशमी उत्सव सह पथ संचलन…स्वयंसेवकों ने दिया एकता का संदेश

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में चतुर्भुज आर्य ने भारत के प्राचीन इतिहास को रेखांकित करते हुए हमारे हिंदू संस्कृति एवं हमारे पारिवारिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि पर कहा कि, प्राचीन काल से वर्तमान तक जाति प्रथा एवं इसके दुष्प्रभाव के कारण समाज को बहुत अधिक नुकसान हुआ है।

अनेक क्षेत्रों में धर्मांतरण इन्हीं बातों के कारण अधिक फल फूल रहे हैं। चारों पुरुषार्थ, धर्म-अर्थ- काम-मोक्ष पर भी वैश्विक षडयंत्रों ने कुठाराघात किया है। अतः हमारे स्वयं सेवकों को समाज में जाकर समाज से अस्पृश्यता की भावना को दूर करने के लिए काम करना होगा। तभी हमारा हिंदू समाज सशक्त होगा।


कार्यक्रम में 1015 स्वयंसेवक नई मंडी बसना में एकत्र हुए एवं पथ संचलन पश्चात रामदत्त चक्रधर का बौद्धिक प्राप्त हुआ। बौद्धिक में उन्होंने कहा कि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का 2 अक्टूबर 1925 में गठन हुआ था। तब से अब तक ,जब हम उसके यात्रा का 100 वर्ष होने पर शताब्दी वर्ष मना रहे हैं।

इस समय भी उसका स्वरूप मूल स्वरूप के ही समान है।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक का ध्येय देश के हिंदू समाज को संगठित करना एवं सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजना है। आगे उन्होंने कहा कि हमारे देश में उत्कृष्ट संस्कार वाले लोग चाहिए । क्योंकि वही सांस्कृतिक एवं चरित्र, राष्ट्रीय चरित्र है। अतः राष्ट्रीय स्वयंसेवकों का ऐसे ही युवाओं का निर्माण करना प्रमुख कार्य है।

संस्कार का पहला गुण स्वयं पर अनुशासन है।अतः देश और समाज को खड़े करने हेतु सेवा एवं संवेदना भाव लिए हुए युवाओं का निर्माण करना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रमुख कार्य है। जो शाखा के माध्यम से संपन्न हो रहा है। आज संघ में लगभग डेढ़ लाख सेवा कार्य चल रहे हैं ।

इन स्वयंसेवकों का भाव “राष्ट्र ही सर्वोपरि है संगठन में शक्ति है”। इसलिए हम सभी स्वयंसेवकों को विभिन्न समाज, विभिन्न जाति, विभिन्न भाषाओं को मानने वाले होने पर भी साथ मिलकर चलते हैं। क्योंकि इससे हिंदू समाज संगठित होता है।

आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रूप में संपूर्ण हिंदू समाज को एक प्रभावी संगठन मिला है। स्वयंसेवकों को सदा शाखा के सुदृढ़ीकरण पर कार्य करना होगा। क्योंकि इससे हमारी संस्कृति से ओतप्रोत एवं देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत युवा समाज को मिलते हैं ।

संघ यात्रा में 1947 के विभाजन में एवं विभिन्न युद्धों में 1962 ,1965 1971 में भी स्वयं सेवकों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। 1962 के चीन युद्ध में योगदानों को देखते हुए 1963 में जवाहरलाल नेहरू जी ने गणतंत्र दिवस की परेड में संघ को आमंत्रित किया।

1965 में 22 दिन तक चले युद्ध में 17 दिन तक दिल्ली की पूरी व्यवस्था संघ के स्वयं सेवकों ने संभाली। इसके लिए लाल बहादुर शास्त्री ने परम पूजनीय गुरु जी से आग्रह किया था ।शक्तिशाली ही सदैव पूजनीय है। इसलिए हिंदू समाज को संगठित होना होगा।

समाज को सफल बनाने के लिए संस्कृति से संस्कारित हिंदू समाज को एकजुट करना होगा। क्योंकि हिंदू समाज का उत्थान से ही देश का उत्थान होगा। आज पंच परिवर्तनों को अपने घरों से ही प्रारंभ करना होगा। इसमें हम सभी को कुटुंब प्रबोधन, समरसता, पर्यावरण, स्व का जागरण एवं नागरिक कर्तव्यों पर विशेष रूप से कार्य करना होगा।

इससे एक कदम आगे बढ़कर हमारे युवाओं को शाखा स्थल पर व्यक्तित्व विकास करने हेतु एक आदत बनाने की आवश्यकता है। आने वाले समय में सदैव कार्य करते हुए इस देश को जगतगुरु बनाना है।

यह कार्य तभी पूरा होगा जब देश के सामान्य लोग अच्छे सोच, अच्छे कार्य एवं अच्छे चरित्र के साथ खड़े होंगे । जब भारत का हिंदू समाज सफल होगा और भारत सफल होगा एवं भारत के सफल होने पर विश्व कल्याण होगा।

हम सभी स्वयंसेवक अपने गुणों का विकास सदैव करते हुए, ऋषियों की कल्पना के भारत का निर्माण करेंगे। जिससे भारत पुन: विश्व गुरु के पद को प्राप्त करेगा ।

राष्ट्रभक्ति के ज्वार को राष्ट्र शक्ति में बदलना ही समय का आवाहन है। इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रत्येक स्वयंसेवक को प्रतिक्षण काम करते हुए हिंदू समाज को जगा कर, एक करना है।

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