Uttarakhand Assembly : नियुक्तियों का जिन्न फिर जिंदा हो गया, कई सफेदपोशों की गले की फांस बन सकता है विधानसभा भर्ती घोटाला

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Uttarakhand Assembly कई सफेदपोशों की गले की फांस बन सकता है विधानसभा भर्ती घोटाला

 

Uttarakhand Assembly नैनीताल !  उत्तराखंड विधानसभा में तदर्थ नियुक्तियों का जिन्न फिर जिंदा हो गया है और अब यह कई सफेदपोशों की गले की फांस बन सकता है।


देहरादून के अभिनव थापर की ओर से दायर जनहित याचिका पर मुख्य न्यायाघीश विपिन सांघी की अगुवाई वाली युगलपीठ ने फिलहाल विधानसभा सचिवालय और याचिकाकर्ता को आगामी चार अगस्त तक तदर्थ नियुक्ति करने वाले दोषियों की पहचान के साथ ही विस्तृत जवाब पेश करने को कहा है।


विधानसभा सचिवालय की ओर से इस मामले में जो जवाबी हलफनामा पेश किया गया है वह जिम्मेदार फेदपोश लोगों की नींद उड़ाने के साथ ही गले की हड्डी बन सकता है। अनु सचिव हरीश कुमार की ओर से दिये गये हलफनामा में कहा गया है कि राज्य बनने के बाद 2001 से 2022 तक विभिन्न पदों पर कुल 396 तदर्थ नियुक्ति की गयी हैं।


इनमें से 2001 से 2015 के बीच 168 तदर्थ नियुक्ति शामिल हैं। जिन्हें 2013 व 2016 में विनियमित कर दिया गया। वर्ष 2016 से 2022 के बीच विभिन्न पदों पर 228 तदर्थ नियुक्तियां की गयी हैं जिन्हें विधानसभा अध्यक्ष रितु खंडूड़ी के निर्देश पर गठित कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर पिछले साल सितम्बर में पद से हटा दिया गया हैं।


विधानसभा सचिवालय की ओर से पेश हलफनामे में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्षों और मुख्यमंत्री पर भी ऊंगली उठायी गयी है। कहा गया है कि 2016, 2020 और 2021 में 228 तदर्थ नियुक्ति की गयी हैं। इससे साफ है कि कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी सरकार के दौरान ये नियुक्तियां की गयी हैं। वर्ष 2016 में हरीश रावत और इसके बाद त्रिवेंद्र रावत-पुष्कर सिंह धामी की सरकार सत्ता में रही हैं।


यह भी साफ है कि तब श्री हरीश रावत के चहेते गोविन्द सिंह कुंजवाल और भाजपा सरकार में केबिनेट मंत्री प्रेमचंद्र अग्रवाल विधानसभा अध्यक्ष के पद पर आसीन रहे हैं।


जवाबी हलफनामा में कहा गया है कि कार्मिक व वित्त मंत्रालय की आपत्ति के बावजूद नियुक्ति की गयी हैं। साफ साफ कहा गया है कि तत्कालीन विधानसभा अध्यक्षों के इशारे पर गैर कानूनी नियुक्ति की गयी हैं।


हलफनामा में यह भी कहा गया कि इन नियुक्तियों में उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय सेवा (भर्ती और सेवा की शर्तें) नियमावली, 2011 का उल्लंघन किया गया है। विधानसभा भर्ती नियमावली वर्ष 2011 में अस्तित्व में आ गयी थीं लेकिन इसके बावजूद नियमों के विपरीत बड़ी संख्या में नियुक्तियां की गयी हैं।


यह भी कहा गया है कि व्यक्तिगत प्रार्थना पत्र पर नियुक्तियां दी गयी हैं। सभी प्रार्थना पत्रों की भाषा लगभग एक समान है और किसी भी प्रार्थना पत्र में दिनांक अंकित नहीं है। इन्हीं प्रार्थना पत्रों को आधार बना कर तत्कालीन विधानसभा अध्यक्षों ने विधानसभा सचिवालय को नियुक्ति देने के निर्देश दिये हैं।


यह भी कहा गया कि नियुक्ति फाइल पर जो नोट तैयार किया गया उस पर तत्कालीन विधानसभा अध्यक्षों के हस्ताक्षर हैं लेकिन उस पर भी दिनांक अंकित नहीं है। आगे कहा गया कि इन नियुक्तियों को विधानसभा सचिवालय की ओर से सरकार और मंत्रिमंडल की मंजूरी के लिये भेजा गया लेकिन कार्मिक व वित्त विभाग की ओर से इन नियुक्तियों पर आपत्ति दर्ज की गयी।


मुख्यमंत्री ने कामकाज के नियमों के तहत विचलन करने की शक्ति का प्रयोग करते हुए मंत्रिपरिषद की ओर से तदर्थ नियुक्ति को मंजूरी प्रदान कर दी। आगे कहा गया है कि इन नियुक्तियों को करने से पहले प्रावधानों का पालन नहीं किया गया है।


न ही रोजगार कार्यालयों से नाम मांगे गये। पदों को भरने के लिये न तो विज्ञापन, न ही पब्लिक नोटिस जारी किया गया और चयन कमेटी का गठन भी नहीं किया गया। यही नहीं आरक्षण प्रावधानों का पालन भी नहीं किया गया।

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याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिजय नेगी ने बताया कि विधानसभा की ओर से पेश हलफनामा कि कहा गया है कि तदर्थ नियुक्तियां संविधान की धारा 14 और 16 का स्पष्ट उल्लंघन है।

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