Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से- अस्थिर बांग्लादेश और असुरक्षित हिन्दू

Editor-in-Chief

-सुभाष मिश्र

‘फल पड़ोसी के दरख्त पर ना लगते तो वसीम
मेरे आंगन में भी ये पत्थर ना आए होते’

कई बार होता है कि आप अगर किसी चीज में शामिल नहीं भी होते हैं तो भी आपको शामिल होना पड़ता है. कभी-कभी कोई शब्द कितना असर डालते हैं या किसी कोर्ट का फैसला कितना भारी हो सकता है. इसको हम बांग्लादेश की घटना से समझ सकते हैं. अरबी का एक शब्द है ‘रजाकार’. बांग्लादेश में ‘रजाकार’ का अर्थ गद्दार होता है. मगर, अरबी में इस शब्द का अर्थ है स्वयंसेवक या साथ देने वाला. पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बना, लेकिन कुछ लोग नहीं चाहत थे कि बांग्लादेश एक अलग देश बने. जब बांग्लादेश बना तो कुछ लोगों ने इसका विरोध किया. इन लोगों ने बड़ी सख्या में बांग्लादेश समर्थकों की हत्या तक की. ऐसे लोग ‘रजाकार’ कहे जाने लगे. इस घटना के एक संगठन बना और उस संगठन में बहुत से लोगों की भर्ती की गई. धीरे-धीरे इस संगठन में शामिल होने वालों की संख्या बढती गई और उनका विरोध भी बढ़ता गया. इस संगठन के मुखिया शेख मुजीब-उर-रहमान को लोगों ने ‘बंग बंधु’ के नाम से बुलाने लगे. बाद में ‘बंग बंधु’ के नेतृत्व में बांग्लादेश बना. शेख़ मुजीब बांग्लादेश के राष्ट्रपति बने, मगर, सैनिक तख्ता पलट के बाद उनकी हत्या कर दी गई और देश में सैनिक शासन लागू हो गया. गनीमत रही कि उनकी बेटी शेख हसीना और उनकी बहन विदेश में होने के कारण बच गईं. शेख हसीना अपने देश बांग्लादेश लौट आईं और 15 साल तक प्रधानमन्त्री रहीं. अभी हाल में ही हुए आम चुनाव में बांग्लादेश की 300 सीटों में से 224 सीटें उन्होंने जीती. अभी जब नरेन्द्र मोदी तीसरी बार प्रधानमन्त्री बने और पड़ोसी देशों के राष्ट्राध्यक्ष आए थे तो बांग्लादेश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना भी आईं थीं. वह नेता प्रतिपक्ष से भी मिलीं. अभी भारत में भी आरक्षण के भीतर आरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है. बांग्लादेश में सारा बवाल आरक्षण को लेकर हुआ.
जब बांग्लादेश बना तो एक कोटा सिस्टम लागू हुआ. इसमें 40 प्रतिशत आरक्षण पिछड़े जिलों के लिए था. 30 प्रतिशत आरक्षण स्वतन्त्रता सेनानियों के परिवार के लिए, 20 प्रतिशत आरक्षण सामान्य वर्ग के लिए और 10 प्रतिशत आरक्षण महिलाओं के लिए था. 2009 में इसमें बदलाव किया गया. स्वतन्त्रता सेनानियों के पोते-पोतियों को भी आरक्षण का लाभ देने का प्रावधान किया गया. 2012 में आरक्षण का एक नया कोटा लागू कर दिया गया, जिसमें 44 प्रतिशत आरक्षण सामान्य वर्ग के लिए 30 प्रतिशत आरक्षण स्वतन्त्रता सेनानियों के परिवार के लिए, 10 प्रतिशत आरक्षण पिछड़े वर्ग के लिए, 10 प्रतिशत आरक्षण महिलाओं के लिए. 5 प्रतिशत अल्पसंख्यक के लिए और 1 प्रतिशत विकलांग के लिए था. बाद में प्रधानमन्त्री शेख हसीना ने 2018 में आरक्षण का पूरा कोटा सिस्टम ही ख़त्म कर दिया. 2024 में हाई कोर्ट का फैसला आया. हाई कोर्ट ने कोटा सिस्टम को फिर बहाल कर दिया. इसको लेकर सामान्य वर्ग के युवकों ने प्रदर्शन शुरू किया. आरोप है कि सामान्य वर्ग के युवकों को पड़ोसी राज्य के एक संगठन जमात-ए-इस्लाम का समर्थन प्राप्त है. इस विरोध में शामिल युवकों को प्रधानमन्त्री शेख हसीना ने रजाकार करार दिया. शेख हसीना ने कहा कि आरक्षण का लाभ स्वतन्त्रता सेनानियों के परिवार के पोते-पोतियों को नहीं मिलेगा तो क्या लाभ रजाकार को मिलेगा? को प्रधानमन्त्री शेख हसीना ने जिस टीवी पर इन्टरव्यू में यह बात कही प्रदर्शनकारियों ने उस टीवी केंद्र को आग लगा दिया. प्रदर्शनकारियों की आग में घी डालने का काम सूचना प्रसारण मंत्री ने किया. उन्होंने ने भी इसी तरह की बात कही. इस पर छात्र भडक गए. अचानक प्रधानमंत्री शेख हसीना को भारत आना पड़ा.
भारत के समक्ष समस्या यह है कि उसके 8 पड़ोसियों देशो नेपाल, भूटान, चीन, म्यांमार, पाकिस्तान, मालदीव, बांग्लादेश, श्रीलंका हैं. इनमें से 3 ही उसके साथ हैं. बांग्लादेश बनाने में भारत की भूमिका रही है और शेख हसीना भारत समर्थक रहीं हैं. वह भारत के साथ सहानुभूति भी रखती थीं. 3 पड़ोसी देश में नेपाल, भूटान और श्रीलंका से भारत के संबध अच्छे हैं. इसके विपरीत पाकिस्तान, चीन और मालदीव का रुख भारत विरोधी है. म्यांमार और नेपाल तटस्थ हैं. ऐसे में हमारी समस्या यह है कि हम अपने पड़ोसियों से संबंध अच्छे कैसे रखे. पाकिस्तान आए-दिन कश्मीर के बहाने हम पर हमलावर रहता है. चीन हमारी सीमाओं पर कब्जे कर रहा है. पड़ोसी देशों की गतिविधियां हमे भी प्रभावित करती हैं. अब लोगों के मन में सवाल है कि हमने बांग्लादेश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना को शरण क्यों दी. बांग्लादेश में चल रहे प्रदर्शन को भारत विरोधी हवा दे रहे हैं. इसके कारण भीड़ हिंदुओं के घरों और बिजनस को निशाना बनाया रही हैं. बांग्लादेश में प्रदर्शन और हिंसा की मुख्य वजहों में आरक्षण, प्रदर्शनकारियों को रजाकार कहना और प्रदर्शनकारियों की भावनाओं को नहीं समझकर प्रदर्शन को समय रहते नियन्त्रण नहीं कर पाना रहा. बांग्लादेश के राजनीतिक इतिहास को देखे तो वहां तीन बार तख्ता पलट हुआ. यहाँ दो राजनीतिक परिवार का भी झगड़ा है. शेख हसीना के बेटे और पूर्व आधिकारिक सलाहकार सजीब वाजेद जॉय ने कहा कि वे अब राजनीति में वापसी नहीं करेंगी। दूसरी ओर पूर्व प्रधानमन्त्री खालिदा जिया को जेल से रिहा कर दिया गया है. उनके बेटे भी राजनीति में हैं.
बांग्लादेश में आरक्षण को लेकर जो बवाल शुरू हुआ तो प्रधानमंत्री शेख हसीना को कुर्सी और देश छोड़ना पड़ा. भारी प्रदर्शन के बाद तख्तापलट हो गया. प्रधानमंत्री शेख हसीना को भाग कर भारत में शरण लेना पड़ा है. उनके बांग्लादेश छोड़ते ही पूरे देश में भारी बवाल देखा जा रहा है. बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों पर हमले हो रहे हैं. वहीं शेख हसीना भाग कर भारत आ गई हैं. वह भारत पहुंची और वह यहां कुछ समय के लिए शरण ले सकती हैं. यहां से वह लंदन जा सकती हैं. लंदन हमेशा बहुत से लोगों को शरण देता रहा हैं. हालांकि अमेरिका ने उनका वीजा रद्द कर दिया है. शेख हसीना के बेटे और पूर्व आधिकारिक सलाहकार सजीब वाजेद जॉय ने कहा कि वे अब राजनीति में वापसी नहीं करेंगी। उन्होंने अपने परिवार की अपील पर अपनी सुरक्षा के लिए देश छोड़ा है। उनकी मां इस बात से निराश हैं कि उनकी कड़ी मेहनत और बांग्लादेश को बदलने के बाद भी अल्पसंख्यक उनके खिलाफ उठ खड़े हुए हैं। बांग्‍लादेश में शेख हसीना सरकार को हटाने में अहम भूमिका निभाने वाली पाकिस्‍तानी सेना और उसकी बदनाम खुफिया एजेंसी आईएसआई इस ‘जीत’ का जश्‍न मनाने के लिए बैठक की. जमात-ए-इस्‍लामी और बीएनएपी के जरिए आईएसआई ने छात्रों के इस आंदोलन को हवा दी और आखिरकार शेख हसीना को जाना पड़ा. बांग्‍लादेश में हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है. भीड़ में शामिल लोगों ने जमकर लूटपाट की है। कोई भी ऐसा इलाका या जिला नहीं है, जहां हिंदुओं को पीटा नहीं गया हो या उनके बिजनस को लूट न लिया गया हो. जब भी कोई आन्दोलन खड़ा होता है तो समझना होगा कि कमजोर लोगों को निशाना बनाया जाता है. भारत में इस तरह की स्थिति नहीं है. भारत का लोकतंत्र काफी मजबूत है. हम यह सोच भी नहीं सकते है कि सेना इस तरह का हस्तक्षेप करेगी. लोग लाख कहे कि सरकार तानाशाही कर रही है, लेकिन सच्चाई यह है कि कोई भी सरकार ऐसा करने की भी सोचेगा तो इस देश की जनता सबक सीखा देती है. नरेन्द्र मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) बनाया था. सीएए में गैर मुस्लिम (छह प्रमुख धर्म) के लोगों को जगह दी गई है. सीएए राष्ट्रव्यापी है और यह पूरे भारत में लागू है। हालांकि कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने इसका विरोध करते हुए उनके राज्य में इस कानून को लागू नहीं करने की बात कही है, लेकिन संविधान के जानकारों का मानना है कि इसके लागू किए जाने पर अंतिम फैसला केंद्र सरकार का होगा। बांग्लादेश में हो रही घटनाओं से गैर मुस्लिमों को राहत मिलेगी.
सीएए के तहत मुस्लिम बहुल आबादी वाले देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में उत्पीड़न के कारण भाग कर भारत आए हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। इसमें मुस्लिमों को शामिल नहीं किया गया. भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संसद में कहा कि बांग्‍लादेश में मंदिरों पर हमले हुए हैं. बांग्‍लादेश के हालात पर हमारी नजर है. बांग्‍लादेश में जुलाई से हमले हो रहे हैं. बांग्‍लादेश में पुलिस पर हमले हुए हैं. शेख हसीना ने भारत से अनुमति मांगी थी. हम ढाका के प्रशासन के संपर्क में हैं. वहां पर हालात तेजी से बदल रहे हैं. आर्मी चीफ से अंतरिम सरकार के बारे में बातचीत हुई है. सीमा पर पूरी चौकसी बरती जा रही है।
बांग्लादेश में अस्थिरता कोई नई बात नहीं है. 26 मार्च 1971 को मुजीब-उर-रहमान ने बांग्लादेश को आजाद घोषित कर दिया। उन्होंने देश के लोगों से स्वतंत्रता संग्राम का आह्वान भी किया। इसके बाद शुरू हुआ स्वतंत्रता संग्राम नौ महीने चला। 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की सेना के भारत के सामने आत्मसमर्पण करने के साथ ही ये संघर्ष खत्म हुआ। 1972 में शेख़ मुजीब प्रधानमंत्री बने। उन्होंने उद्योगों के राष्ट्रीयकरण का अभियान चलाया, लेकिन ज़्यादा कामयाबी नहीं मिली। 1974 में देश में भीषण बाढ़ से पूरी फ़सल तबाह हो गई और 28,000 लोग को जान गंवानी पड़ी. इसके साथ ही देश में आपातस्थिति लगा दी गई और राजनैतिक अस्थिरता की शुरूआत हो गई. 1975 में शेख़ मुजीब बांग्लादेश के राष्ट्रपति बने, मगर, अगस्त में हुए सैनिक तख्ता पलट के बाद उनकी हत्या कर दी गई और देश में सैनिक शासन लागू हो गया। 1977 में जनरल ज़िया-उर-रहमान राष्ट्रपति बने और इस्लाम को संविधानिक मान्यता दी गई. 1979 में चुनाव हुए और सैनिक शासन समाप्त हुआ. जनरल ज़िया-उर-रहमान की बांग्लादेश नेशनल पार्टी ने बहुमत हासिल किया. हालात फिर बदले और 1981 में जनरल ज़िया तख़्ता पलट की कोशिश में मारे गए और अब्दुस सत्तार राष्ट्रपति बने. 1982 में एक और तख्ता पलट के बाद जनरल एरशाद सत्ता में आए. साथ ही संविधान और राजनैतिक दलों की वैधता समाप्त की गई. 1983 में सभी स्कूलों में अरबी और क़ुरान की पढ़ाई के जनरल एरशाद के फ़ैसले के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरू हुए. 1986 में संसद और राष्ट्रपति के लिए चुनाव में एरशाद विजयी रहे, सैनिक शासन हटा दिया और संविधान को बहाल किया गया. 1987 में विपक्ष की हड़ताल के बाद देश में इमरजेंसी लगाई गई. 1991 में भ्रष्टाचार के आरोप में एरशाद जेल भेजे गए। जनरल ज़िया-उर-रहमान की विधवा ख़ालिदा ज़िया प्रधानमंत्री बनीं। संविधान में परिवर्तन करके राष्ट्रपति के अधिकार सीमित कर दिए गए। 1996 में अवामी लीग सत्ता में लौटी और शेख़ हसीना प्रधानमंत्री बनीं. मगर, देश में हड़तालों का दौर शुरू हुआ. 1975 के मुजीब हत्याकांड के लिए ज़िम्मेदार 15 पूर्व सैनिक अधिकारियों को मौत की सज़ा सुनाई गई. 2001 के आम चुनाव में शेख़ हसीना की पार्टी अवामी लीग हार गई और धार्मिक दलों के समर्थन के साथ जातीय पार्टी सत्ता में आई और बेग़म ख़ालिदा जिया प्रधानमंत्री बनीं। इसके बाद कभी शेख़ हसीना तो कभी ख़ालिदा जिया लगातर प्रधानमंत्री बनती रहीं. अब बेग़म ख़ालिदा जिया और शेख हसीना के बेटे उनकी राजनीतिक विरासत को बढ़ाएंगे.
बांग्लादेश की परंपरा कहती है कि जब भी ऐसी स्थिति बनती है, देश के चीफ जस्टिस को देश चलाने की जिम्मेदारी दी जाती है. 1990 में बांग्लादेश के पूर्व सैन्य तानाशाह इरशाद के खिलाफ जन आंदोलन खड़ा हुआ था. तब विपक्षी राजनीतिक दलों ने 6 दिसंबर 1990 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश अहमद को सत्ता सौंप दी थी. वे बांग्लादेश के कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में सरकार के मुखिया बने. वर्तमान में बांग्लादेश में राष्ट्रपति पहले से है. ऐसे में आर्मी के जरिए बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शाहबुद्दीन, 65 साल के चीफ जस्टिस ओबैदुल हसन को सरकार का मुखिया चुन सकते हैं. उन्हें 12 सितंबर 2023 को मुख्य न्यायाधीश बनाया गया है. ओबैदुल हसन सभी विपक्षी दलों को साथ लेकर अंतरिम सरकार बना सकते हैं. एक अनुमान ये भी है कि इस सरकार में कोई भी राजनीति दल न होकर बांग्लादेश के रिटायर्ड नौकरशाह, जज, शिक्षाविद और सोशल वर्कर हो सकते हैं. बांग्लादेश में नॉन पॉलिटिकल केयरटेकर गवर्नमेंट का कॉन्सेप्ट भी है. साल 1996 और 2008 में बांग्लादेश में चुनी हुई सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर चुकी थी, तब केयरटेकर सरकारों को सत्ता सौंपी गई थी.
विकल्प बहुत हैं, लेकिन प्राथमिकता यह है कि बांग्लादेश में हिंसा कैसे रुके? प्रदर्शन पर कैसे रोक लगाई जाए? शान्ति की बहाली कैसे हो? देश में हालात सामान्य कैसे हों? ताकि वहां चुनाव की प्रक्रिया फिर शुरू की जा सके. पड़ोसी देश में जो कुछ घटित हो रहा है, उससे हमारा देश भी प्रभावित होता है. हमारे 8 पड़ोसी देशों में 3 से ही संबध अच्छे हैं. पाकिस्तान और चीन हरकत करते रहते हैं. हालांकि मालदीव थोडा शांत हुआ है. ऐसे में देखना होगा कि बांग्लादेश की घटना-‘फल पड़ोसी के दरख्त पर ना लगते तो वसीम, मेरे आंगन में भी ये पत्थर ना आए होते’ वाली स्थिति है. हमे देखना होगा कि पड़ोसी देश का पत्थर हमारे देश में गिरे और हम भी किसी बड़ी मुसीबत में ना फंस जाएं. हमारे देश के सभी दल राजनीतिक प्रक्रिया में विश्वास रखते हैं. कोई भी सैन्य शासन के बारे में सोचता है. ना इस तरह का कोई माहौल हमारे देश में है. इसके बावजूद पडोस में होने वाली घटनाओं से हम प्रभावित होते हैं. हमारा व्यापार प्रभावित होता है. बांग्लादेश में हमारी बहुत सी चीजे उपयोग की जाती हैं. बांग्लादेश के प्रदर्शन में भारतीय वस्तुओं के बहिष्कार का भी नारा दिया गया है. इसकी भी एक तरह से शुरुआत हो चुकी है. पर हमारा देश सुरक्षित है. यह राहत की बात है कि हमारी सरकार इस पर नजर रखे हुए है.