Tribal or forest dwellers आदिवासी या वनवासी

Tribal or forest dwellers अजय दीक्षित

आजकल आदिवासी समाज को मुख्यधारा में लाने के लिए उनको बनवासी बनाया जा रहा है एवं कई तरीकों के प्रलोभन देकर उनको शहरीकरण से जोड़ा जा रहा है ताकि वह आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि आदि के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों का खरीददार बन सके और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को कमा कर दे सके।

Tribal or forest dwellers किसी भी देश का आदिवासी ही मुख्य होता है जो सदियों पुरानी सभ्यता और संस्कृति को अपने जीवन से जोड़ कर रखता है और पीढिय़ों से प्राप्त ज्ञान को आगे तक ले जाता है हमने उनको जानने और समझने के बजाय उनको ही खत्म करने की फुलप्रूफ कोशिश करना चालू कर दी है। आदिवासी समाज जिनके अपनी एक जीवन शैली थी और जो प्राकृतिक रूप से आधारित अपनी नियम कानूनों पर रहता था अब उसका भी उपभोक्ता बाद से जोड़ा जा रहा है ताकि सरकार उनको सुविधाओं के नाम से छल कर सके और उनके जल जंगल जमीन और उसकी उपज को छीन करके अपना और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का अधिकार स्थापित कर सकें।

Tribal or forest dwellers वर्तमान में कई जातियां जैसे कि ओबीसी, एससी, सवर्ण समाज के कुछ समुदाय, मुस्लिम वर्ग आदि वर्तमान की सत्ता से नाखुश है और उनके विरोध में जाकर अपना प्रदर्शन कई तरीके से कर रही है। अत: वर्तमान की सत्ता इन भोले-भाले आदिवासियों का उपयोग वोट बैंक के तौर पर और उसकी मजबूती के लिए करना चाह रहे हैं।

Tribal or forest dwellers इन सबके बाद भी सरकार का जी नहीं भर रहा है तो वह विपक्ष के आदिवासी नेताओं पर कई तरीके के जिन्होंने आरोप लगाकर के उन को मानसिक रूप से परेशान कर रही है और उनको इतना अधिक परेशान किया जा रहा है कि या तो वह अपना राजनीतिक जीवन खत्म कर दें या उनकी पार्टी में जाकर शामिल हो जाएं कितना अधिक गिर गई है ना सत्ता अपने वोट बैंक के लिए और सम्राट बनने के लिए।

Tribal or forest dwellers सरकार के अंतिम उपभोक्ता तक सुविधाएं देने की साजिश लगता यही है उनको एक इंसान नहीं सिर्फ एक उपभोक्ता के रूप में देखा जा रहा है । समान जीवन शैली का बादशाहत हो रही है जिससे हमारे प्राकृतिक संसाधनों का अभाव होता जा रहा है और हम विदेशों से आयातित या कम्पनियों द्वारा निर्मित उत्पादों पर आश्रित होते जा रहे हैं । आदिवासी समाज का विकास होना भी आवश्यक है लेकिन क्या हम उनका यह विकास उन्हीं के क्षेत्रों को विकसित और सुविधा सम्पन्न करके नहीं दे सकते हैं ? क्या उनसे उनके जल, जंगल, जमीन को छीन करके उन्हें वहां से बेदखल करके ही हम अपना विकास देखते हैं? बहुराष्ट्रीय कंपनियों को तो करोड़ों एकड़ जमीन चाहिए अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को विकसित करने के लिए पूंजी पतियों की भूख कभी खत्म नहीं होती जो डॉलर को इक_ा करके अंतरराष्ट्रीय बैंकों में रखने के लिए काम कर रहे हैं एवं सत्ता को अपनी उंगलियों पर नचा रहे हैं।

Tribal or forest dwellers  क्या वह यह नहीं जानते हैं कि इसके दुष्परिणाम होंगे जब हमारे पास हमारे जल जंगल जमीन ही नहीं होंगे तो पर्यावरण प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, ओजोन लेयर में ह्रास से उपजे वीभत्स दृश्य कभी बाढ़, कभी सूखा, कभी बेहद गर्मी, कभी बर्फबारी, कभी भूस्खलन, कभी भूकंप जैसे प्राकृतिक घटनाओं से अपने जन और धन की हानि होते देख रहे हैं।

Tribal or forest dwellers  दिन प्रतिदिन आम जनता के लिए रहने और खेती करने के लिए जमीन कम होती जा रही है वह पलायन के रूप में दर-दर भटक रहा है और कई सारी शहरीकरण से उपजे समस्याओं का शिकार हो रहा है जिसमें आत्महत्या, नशाखोरी, बेरोजगारी, सामाजिक पतन, चारित्रिक पतन हो रहा है। क्या इतनी सारी परेशानियों के बावजूद भी विकास, विकास, विकास का होना आवश्यक है? क्या वोट बैंक की मजबूती इतना अधिक मायने रखती है सत्ता के भूखों के लिए सत्य, अहिंसा और अपरिग्रह के सिद्धांतों को मानने वाली पवित्र भारत भूमि के वाशिंदों के लिए ।

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