अपराध पर अंकुश के नाम पर हुए तबादले, फिर भी कई थानों में ‘जमे’ हुए हैं पुलिसकर्मी

जानकारी के मुताबिक, इन अधिकारियों और कर्मचारियों में सब-इंस्पेक्टर (एसआई), असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर (एएसआई), प्रधान आरक्षक और आरक्षक शामिल हैं। इन सभी की तैनाती लंबे समय से एक ही इलाके में है और स्थानीय स्तर पर इनकी गहरी पैठ बनी हुई है। यही वजह है कि इन क्षेत्रों में अपराध पर अंकुश लगाने के बजाय कई मामलों में अपराधियों को संरक्षण मिलने की शिकायतें सामने आती रही हैं।

स्थानीय लोगों और सूत्रों का आरोप है कि कुछ पुलिसकर्मी अवैध कारोबार चलाने वाले तत्वों, जिनमें सट्टा बाज़ारी, गांजा-शराब की अवैध बिक्री और गुंडागर्दी में लिप्त लोग शामिल हैं, से नियमित रूप से सांठगांठ करते हैं और उनसे ‘हफ्ता’ वसूलते हैं। इस तरह की गतिविधियों के चलते न सिर्फ पुलिस विभाग की छवि खराब हो रही है, बल्कि अपराध को बढ़ावा भी मिल रहा है।

ऐसे में, सवाल उठता है कि क्या सिर्फ कुछ तबादले करने भर से इस गहरी जमी हुई व्यवस्था और अपराधियों के साथ मिलीभगत पर अंकुश लग पाएगा? पुलिस प्रशासन के इरादे तो साफ हैं, लेकिन जमीनी हकीकत अब भी चुनौतीपूर्ण नज़र आ रही है।

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