Traditional : पारंपरिक गीतों के साथ भोजली का धूमधाम से विसर्जन

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Traditional : पारंपरिक गीतों के साथ भोजली का धूमधाम से विसर्जन

Traditional : कोरबा । देवी गंगा देवी गंगा.. लहर तुरंगा… हमरो भोजली के दमके आठो अंगा जैसे पारंरिक गीतो के साथ रक्षा बंधन के दूसरे दिन शुक्रवार को भोजली का विसर्जन के विभिन्न नदी घाटों में हुआ है। शहर के विभिन्न बस्ती व कालोनियों से भोजली विसर्जन यात्रा निकाली गई। जिसमें शामिल महिलाओं व युवतियों ने पुन: आगनमन का निमंत्रण देकर भोजली की बिदाई दी गई।

Traditional : भाद्रपद की प्रथमा तिथि होने की वजह से श्रावण में बोएं गए भोजली का धूमधाम से विसर्जन हुआ। विसर्जस का मुख्य आकर्षण शहरी क्षेत्र में देखा गया। जहां विभिन्ना बस्तियों में सैकडों की तादात में महिलाओं व युवतियों ने एकत्र होकर भोजली देवी को बिदाई दी।

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Traditional : पारंपरिक गीतों के साथ भोजली का धूमधाम से विसर्जन

Traditional : ग्रामीण क्षेत्र से पहुंचे श्रमिक बस्तियों में रहने वाले लोगों आज भी परंपरा का जीवंत रखा है। शुक्रवार को लाल मैदान में आयोजित भोजली उत्सव लोगों के लिए आकर्षण रहा। उत्सव के दौरान विभिन्न सांस्कृति कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इधर शहर में भोजली विसर्जन कार्यक्रम में ढोढीपारा, पथर्रीपारा, सीतामढ़ी, पोंड़ी बहार आदि स्थानों में नई पीढ़ी के कि शोरी व युवतियों की भागीदारी रही।

Traditional : ढोढ़ीपारा में भी विसर्जन यात्रा निकाली गई जो पंपहाउस नदी घाट में पूर्ण हुई। पथर्रीपारा में भी भोजली विसर्जन का वृहत आयोज किया गया है। गाजे बाजे के साथ पारंपरिक गीत हुई महिलाओं की टोलियों ने ढेंगुर नाला पहुंच कर भोजली का विर्सन किया। सीतामढ़ी से अलग अलग टुकडिय़ों में निकली भोजली दल की महिलाओं ने हसदेव नदी में भोजली का विसर्जन किया।

शहरी क्षेत्र के अलावा उपनगरीय क्षेत्र बांकीमोंगरा, दीपका, रजगामार, करतला, बालको, छुरी, पाली, चैतमा, दर्री, जमनीपाली, पसान, तुमान आदि स्थानों में भी भोजली विसर्जन का आयोजन किया गया।

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नदी घाटों में भोजली बदने की परंपरा का निर्वहन किया गया। परंपरा में युवती व महिलाओं ने उत्साह से भाग लिया। विसर्जन पूर्व की गई पूजा के पश्चात भोजली के पत्तो कों निकाल कर बालों में व कान में लगाने की परंपरा है। कहा जाता है भोजली बदने से मित्रता में प्रगाढ़ता आती है।

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Traditional : पारंपरिक गीतों के साथ भोजली का धूमधाम से विसर्जन

Traditional : पारंपरिक भोजली गीतों से नदी घाट के तट गुंजायमान रहे। पारंपरिक परिधानों के साथ भोजली विसर्जन करने पहुंची महिलाओं युवतियों ने मांदर ढोल मंजीरे की थाप भोजली देवी के जस गीतों की प्रस्तुति दी। पथर्रीपारा में कर्मा की थाप में झूमते हुए दल के साथ भोजली को विदाई दी गई।

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