आज का चुनावी लोकतंत्र और महात्मा गांधी

आज का चुनावी लोकतंत्र और महात्मा गांधी

-सुभाष मिश्र

वैसे तो हमारे देश का संविधान सभी को चुनाव में हिस्सा लेने और निर्वाचित का मौका देता है . लेकिन जिस तेजी से हमारे यहां चुनाव में धनबल और बाहूुबल का बोलबाला बढ़ रहा है उससे साफ लग रहा है कि अब सामान्य आदमी के लिए इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया में आमिल हो पाना बराबरी से खम ठोकपाना संभव है असंभव नहीं है तो सहज भी नहीं . ऐसे में मन में एक सवाल उठ रहा है कि क्या गांधीजी भी इसी लोकतांत्रिक स्वरूप की परिकल्पना करते थे.

महात्मा गांधी की लोकतंत्र कल्पना पूरी तरह से अहिंसा से घिरा हुआ उनका आदर्श एक राज्यविहीन लोकतंत्र है, जिसमें सत्याग्रही ग्राम समुदायों का एक संघ है, जो स्वैच्छिक सहयोग और सम्मानजनक और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के आधार पर कार्य करता है, जो भारतीय लोकतंत्र के संदर्भ में प्रासंगिक है। वर्तमान लोकतंत्र में, बहुत अधिक केंद्रीकरण और असमानता है। स्वशासन की गांधीवादी अवधारणा का अर्थ है स्वराज वास्तविक लोकतंत्र है, जहां लोगों की शक्ति व्यक्तियों में निहित है और प्रत्येक व्यक्ति को यह एहसास होता है कि वह स्वयं का वास्तविक स्वामी है। ये मुद्दे आज भी प्रासंगिक हैं और स्वतंत्र भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं। आज चिंता का मुख्य कारण असहिष्णुता और हिंसा को जन्म देने वाली घृणा है और यहीं पर गांधी के मूल्यों का अधिक जुनून के साथ पालन करने की आवश्यकता है।
आज चुनावों में जिस तरह भाषाई मर्यादा तार तार हो रही है।
संवैधानिक पदों पर बैठे नेता भी जिस तरह से चुनावी दंगल में आपा खो रहे हैं ऐसे में क्या गांधी की आत्मा बेचैन नहीं होती होगी।
महात्मा गांधी की कल्पना में अहिंसा से पूर्णतया आच्छादित लोकतंत्र आज तक दुनिया के किसी भी देश में नहीं है। उनकी कल्पना का लोकतंत्र ऐसा है, जिसमें दंड का कोई प्रावधान नहीं है और यहां तक ​​कि ‘राज्य’ जैसी संस्था भी इसमें अप्रचलित है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि महात्मा गांधी का मानना ​​है, “…राज्य केंद्रीकृत और संगठित हिंसा का प्रतीक है।” चूंकि अहिंसा मानव आत्मा से जुड़ी है, इसलिए मनुष्य अहिंसक हो सकता है, जबकि इसके विरोध में, “…राज्य एक आत्माविहीन मशीन है। इस हिसाब से, हिंसा से छुटकारा पाना असंभव है। इसका अस्तित्व ही हिंसा पर निर्भर करता है।” महात्मा गांधी के दर्शन के अनुसार, अहिंसा को हमारे जीवन का अभिन्न अंग माना जाना चाहिए और इसी सिद्धांत के आधार पर आधुनिक राजनीति को संचालित होना चाहिए।

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