भागवत पुराणों का तिलक व विशुद्ध प्रेम शास्त्र है: पंडित हरगोपाल शर्मा

जिसे सुन श्रोता भी भाव विभोर होते रहे पंडित हरगोपाल शर्मा ने कहा जैसे क्षेत्रों में काशी, बहने वालों में गंगा,देवताओं में कृष्ण व वैष्णवों में शंकर श्रेष्ठ है वैसे ही पुराणों में श्रीमद् भागवत श्रेष्ठ है भागवत पुराणों का तिलक व विशुद्ध प्रेम शास्त्र है । बलि प्रथा पर उन्होंने कहा कि कभी कोई देवी या देवता बलि नहीं चाहता कोई भी माता पिता अपने बच्चों की बलि नहीं चाहते और यह पूर्णतः धर्म व शास्त्र के विरुद्ध है और इसका दुष्परिणाम व्यक्ति को भोगना पड़ता है

हमें कोई भी धर्म का कार्य शास्त्र विरुद्ध नहीं करना चाहिये । पंडित हरगोपाल शर्मा ने कहा हमसे अनजाने में प्रतिदिन कुछ पाप हो जाते है उसके लिए हम रोज गौ ग्रास , अग्नि को भोजन, चींटी को आटा,पक्षियों को अन्न व अतिथि का सत्कार करना चाहिए इन पांच प्रकार के यज्ञ से हमें उसका दोष नहीं लगता । प्रहलाद चरित्र के विषय में उन्होंने कहा कि प्रहलाद जी ने माता के गर्भ में ही भगवान की कथा नारद जी से सुनी उसका यह प्रभाव हुआ

उसके पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप के उद्धार व अपने भक्त के वचन को सिद्ध करने के लिए भगवान को जड़ रूपी खम्भ से चैतन्य रूप में नृसिंह रूप में प्रकट होना पड़ा । इसलिए प्रत्येक गर्भवती स्त्री को गर्भधारण के समय भगवान की कथा सुननी व अच्छे साहित्यों का पठन करना चाहिए । गज व ग्राह की कथा हमे संदेश देती है कि इस संसार में कोई किसी का नहीं सारे रिश्ते सिर्फ स्वार्थ के है इसलिए व्यक्ति को सदैव भगवान का स्मरण बना रहना चाहिए ।

राम जन्म व कृष्ण जन्म की कथा को बड़े ही सुन्दर ढंग से सुनाते हुए कहा कि सूर्यवंश व चन्द्रवंश की ये विशेषता रही कि सूर्यवंश में सूर्य से लेकर दशरथ तक अधिकांश राजाओं ने यज्ञ किया तभी उनके पुत्र हुआ चंद्रवंश में चंद्रमा से लेकर भगवान द्वारकानाथ व उनके पुत्रों का विवाह राजी से नहीं हुआ उसमें झगड़ा जरूर हुआ ।

जब जब इस धरा में पाप की वृद्धि होती है तब तब भगवान विभिन्न रूपों में अवतरित हो पापियों का नाश कर इस धरा पर पुनःधर्म की स्थापना करते है ।कृष्ण जन्म पर श्रद्धालु गण नन्द के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की व अन्य बधाई गीतों पर झूमते नाचते रहे भगवान के बाल चरित्रों के साथ ही गोवर्धन पूजन पर उन्होंने कहा कि भगवान ने इंद्र की पूजा बंद करा हमें प्रकृति के पूजन का संदेश दिया उन्होंने कहा कि हमे वृक्ष,पर्वत,नदियों का संरक्षण करना चाहिए व इनके प्रति देवतुल्य भाव रखना चाहिए ।

महारास के प्रसंग पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि भगवान ने काम को जीतने के लिए ही महारास किया और यह स्त्री और पुरुष का नहीं जीव व जीवात्मा का मिलन था जैसे नन्हा शिशु अपनी ही परछाई से क्रीड़ा करता है वैसे ही भगवान ने गोपियों के साथ दिव्य रास किया गोपियों ने कहा प्रभु संसार में तीन तरह के लोग रहते है पहले जो प्रेम के बदले प्रेम करते है दूसरे वो जो अकारण प्रेम करते है और तीसरे जो किसी से प्रेम नहीं करते तब भगवान ने कहा जो प्रेम के बदले प्रेम व्यवहार ,अकारण प्रेम सिर्फ माता पिता करते है और जो किसी से प्रेम नहीं करते वो आत्माराम, आप्तकाम अकृतग्य और गुरु द्रोही होते है ।

उद्धव चरित्र पर पंडित हरगोपाल शर्मा ने कहा बृहस्पति के परम ज्ञानी शिष्य का ज्ञान गोपियों के प्रेमभाव के आगे नतमस्तक हो गया । भगवान के सोलह हजार एक सौ आठ विवाह की कथा को बड़े ही विस्तार से बताया भक्त सुदामा जी के विषय में कहा उनके विषय में शास्त्रों में कुछ और लिखा है और लोग कहते कुछ और है

सुदामा जी को कही भी दरिद्र नहीं कहा गया और उन्होंने कहीं भी किसी से भिक्षा नहीं मांगी क्योंकि ब्राह्मण अगर भिक्षा मांगता है तो उसका ब्राह्मणत्व नष्ट हो जाता है ब्राह्मण को दान लेने का अधिकार है भिक्षा मांगने का नहीं गरीब होना अलग बात है दरिद्र होना अलग ।

परम संतोषी, धर्मनिष्ठ सुदामा जी के आगमन का समाचार सुन वही त्रिलोकी का नाथ जिसके पीछे संसार भागता है आज भोजन की थाली छोड़ सुदामा जी के स्वागत हेतु भागे । उन्होंने उद्धव जी के साथ प्रभु के संवाद व दत्तात्रेय जी के चौबीस गुरु बनाने के प्रसंग व भगवान के स्वधाम गमन की कथा को बड़े ही सुन्दर से बताया अंत में सुकदेव जी की विदाई व परीक्षित मोक्ष के प्रसंग को सुनाया शर्मा जी ने उपस्थित जनसमुदाय से धर्म के साथ ही अपने राष्ट्र के प्रति दायित्वों का निर्वहन करने का आव्हान किया । पितर पक्ष में चल रही भागवत कथा को सुनने नगर सहित अन्य क्षेत्रों से श्रद्धालुओं का निरंतर आगमन होता रहा ।

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