:विनोद कुशवाहा:
बिलासपुर। दीपावली के उल्लास के बीच शहर के तोरवा क्षेत्र में छत्तीसगढ़ी संस्कृति का रंग बिखरा जब महिलाओं ने पारंपरिक सुआ नाच का आयोजन किया। दीपों की रोशनी और ढोलक की थाप के बीच महिलाओं ने झूमकर नृत्य किया और पारंपरिक गीतों से माहौल को भक्तिमय बना दिया।
सुआ नाच छत्तीसगढ़ की लोक परंपरा का अहम हिस्सा है। यह नृत्य आमतौर पर दीपावली के बाद से गोवर्धन पूजा तक किया जाता है, जब खेतों से नई फसल घर आती है। महिलाएं सुआ की मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करती हैं, जो हरियाली, प्रेम और जीवन के प्रतीक माने जाते हैं।
गीतों के माध्यम से वे धरती माता, फसल और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करती हैं।तोरवा इलाके में आयोजित इस कार्यक्रम में घर-घर की महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में शामिल हुईं। उन्होंने सुआ गीत गाते हुए एक वृत्त बनाकर नृत्य किया और लोककथाओं के स्वर में मिलकर सांस्कृतिक एकता का संदेश दिया। छोटे बच्चे और बुजुर्ग भी इस नज़ारे का आनंद लेते दिखे।
सुआ नाच न सिर्फ एक लोकनृत्य है, बल्कि यह महिलाओं की भावनाओं, कृषि संस्कृति और सामाजिक एकजुटता का प्रतीक भी है। दीपावली जैसे आधुनिक त्योहारों में इस लोक परंपरा का जीवित रहना बिलासपुर की सांस्कृतिक जड़ों को संजोए रखने की मिसाल पेश करता है।