The king of India, the only flag bearer of the earth! भारत का राजा, पृथ्वी का अकेला ध्वजाधारी!

The king of India, the only flag bearer of the earth!

हरिशंकर व्यास

king of India भारत का राजा, पृथ्वी का अकेला ध्वजाधारी!

king of India इस हेडिंग का आपको क्या अर्थ समझ आया? यदि नहीं तो आप दुनिया का नक्शा ले कर ढूंढे कि उसमें भारत के अलावा पृथ्वी पर वह दूसरा कौन सा देश है, जहां का प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या इस्लामी बादशाह देश का धर्मराजा बना हुआ है? शासक धर्म मान्यता की नित नई झांकी दर्शाए होता है! जनता अपने प्रधानमंत्री को ईश्वर का अवतार तथा उसके धर्म-कर्म के अश्वमेध यज्ञों, शाही भव्यताओं से गद्गद होती है!

उससे धर्मराज प्राप्त होने के गौरव,सुरक्षा और सतुयगी खुशहाली से अपने को विश्वगुरू समझती है! याद करें त्रेता युग के धर्मनिष्ठ राजा दशरथ और राजा रावण के धर्म व्यवहार को। या तो वह वक्त था या सन् 2021 का वक्त है जब भारत भूमि को वह धर्मराजा प्राप्त है जो कभी केदारनाथ, कभी काशी विश्वनाथ, कभी महाकाल, कभी अयोध्या, कभी दक्षिण, कभी उत्तर, कभी पूरब, कभी पश्चिम में पूजा के वस्त्र धारण किए हुए, ललाट पर चंदन और गले में रूद्राक्ष व माला पहने ‘अपनी सत्ता की रक्षा के लिए शिखा धारण कर धर्मध्वजी होने का अभिनय करे।’ आखऱि वाक्य में शांतिपर्व से कोट कर रहा हूं।

तभी तुलना करें त्रेतायुग में उन राजा दशरथ और राजा रावण के महा अनुष्ठानों से मौजूदा राजा द्वारा अपने को धर्मध्वजी बतलाने के अनुष्ठानों और चमत्कारों की। क्या हिंदू प्रजा अपने धर्मध्वजी राजा नरेंद्र मोदी से मोटिवेटेड हुए अपने को धन्य नहीं मानती है? क्या इन हिंदुओं के अनुसार मोदी से भारत सोने की चीडियां हुआ और विश्वगुरू नहीं है?

अब राजा और प्रजा की भारत मनोदशा से फिर अमेरिका, यूरोप के राष्ट्रपतियों व प्रधानमंत्रियों से तुलना करें। क्या कही भी कोई ऐसी धर्मध्वजी राजनीति करता मिलेगा? क्या अफीक्री देशों, उनके प्रधानमंत्रियों-राष्ट्रपतियों में कोई अपने आदि कबीलाई धर्मों का ऐसा पालनकर्ता है? क्या सऊदी अरब के बादशाह को मक्का-मदीना के नवनिर्माणों पर इस्लाम की ध्वजा लिए अपने को देवत्व खलीफा बतलाते हुए देखा है?

क्या रूसी ऑर्थोडॉक्स चर्च की धर्मानुगत जारशाही के अनुष्ठानों में व्लादीमिर पुतिन को किसी ने पूजा-पाठ करते हुए अंधविश्वासों से जनता को रिझाते देखा है? क्या चाइनीज-कम्युनिस्ट राष्ट्रपति, जापानी प्रधानमंत्री या यहूदियों के प्रधानमंत्री अपनी-अपनी हान, कंफ्यूशियस, बौद्ध या यहूदी सभ्यता के प्राचीन धर्मराष्ट्र को हिंदुओं के नरेंद्र मोदी, अरविंद केजरीवाल, योगी आदित्यनाथ, राहुल गांधी की तरह धर्मध्वजा प्रतीको से अपने को आस्थावान बतला कर जनता को रिझात देखा है?

तभी इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक का भारत हिंदू राष्ट्र नहीं है, बल्कि वह दुनिया का वह धर्मध्वजाधारी इलाक़ा है जो कलियुगी चमत्कारों और अंधविश्वासों में सांस लेता है। हिंदुओं को 21 वीं सदी में वह राजा, वह राजनीति मिली है, जो काले जादू, काले कपड़ों की मान्यताओं, रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों तथा देवत्व की छाप के राजा, राजा की सर्वज्ञता, उसकी एकलता, उसकी अलौकिक शक्तियों से प्रजा को मंत्रमुग्ध बनाती है और उससे राजा अपनी सत्ता की रक्षा और विस्तार करता है।

सवाल है आधुनिक काल में राजनीति और राज करने के तरीक़ों के भारत के ये फ़ार्मूले कहा से आए, कैसे बने? तो जवाब है भोले हिंदुओं की गुलाम-भक्त बुनावट और चाणक्य द्वारा अज्ञानी प्रजा के हवाले लिए गए सत्ता सूत्रों से। हां, सबका जवाब चाणक्य उफऱ् कौटिल्य लिखित ‘अर्थशास्त्र’ किताब के सूत्र हैं। कौटिल्य ने अर्थशास्त्र के तेरहवें अधिकरण में अंधविश्वास और राजनीति के इतने फॉर्मूले राजा को सुझाए थे कि उनमें एक-एक का उपयोग कर प्रधानमंत्री मोदी ने इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक में अपना कर अपनी सत्ता का धर्मध्वजा बना डाला है। अर्थशास्त्र के वी, 2 और वी, 3 के सूत्रों में प्रजा को अंधविश्वासों और झूठ में पाल कर कैसे राजनीति हो, इसको बताया गया हैं। इसके कई सूत्र है। जैसे- राजा को अपनी अंदरूनी और बाहरी स्थितियों को मजबूत करने के लिए सामान्य लोगों की अंधमान्यताओं का लाभ उठाना चाहिए।ज् धार्मिक प्रथाएं अंधविश्वास मात्र हैं और शासकों को चाहिए कि वे अपने स्वार्थों के लिए इनसे लाभ उठाएं।

ज्लोगों को राजा की सर्वज्ञता और देवता जैसे होने का अहसास कराया जाए।..गुप्तचरों के जरिए अफसरों, दुश्मन लोगों की गतिविधियों का पता लगा कर राजा लोगों के मन पर ऐसी छाप बनवाए कि हमारा राजा तो ऐसा है कि वह अपनी अलौकिक शक्तियों से सबकी सारी बातें जान लेता है।..राजा देवताओं का खास है यह भी प्रचारित हो।ज्वह अपनी अलौकिक शक्ति का परिचय देने के लिए जल में जादू के कुछ करतब भी दिखा सकता है।..आदि, आदि। मतलब नौटंकियाँ कर सकता हैं। धर्म में आस्था न हो लेकिन दिखावा ज़रूर हो।

king of India  हां, कौटिल्य ने राजा को अपने प्रचार के लिए और उसके देवत्व याकि भगवान होने की जनता को प्रतीति (अहसास) कराने के प्रचार में सात तरह के लोगों की सेवा लेने की सलाह दी है। ये लोग है: ज्योतिषी, भविष्यवक्ता, मोहूर्कतिक, कथावाचक, ईक्षणिक मतलब भविष्य का शुभाशुभ बताने वाले और गुप्तचर व साचिव्यकर याकि राजा का सहचर। अर्थशास्त्र के सूत्र 103 में पंडितों, पुरोहित वर्ग का महत्व बताते हुए चाणक्य ने लिखा है कि लोकमत बनाने के लिए पुरोहितों की भूमिका असरदार और महत्व की होती है। इससे राजा की अलौकिक शक्तियों याकि छप्पन इंची छाती का जलवा बनाने, विदेश में भी राजा के समक्ष देवताओं के प्रकट होने, राजा द्वारा स्वर्ग से वरदान लिए हुए होने और उसकी विजय अवश्यंभावी की धारणा बनती है। ऐसे ही अपने अफसरों से आकाश से लुआठी दिखा कर और नगाड़े का शोर मचाकर दुश्मन और उसके लोगों की हार तय दिखलाई जाए।

king of India अर्थशास्त्र के तेरहवें अध्याय में विजयेच्छु राजा की अलौकिक शक्तियों के प्रचार के लिए जितने भी सुझाए दिए गए हैं उन सबका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेखूबी उपयोग किया है, कैसे, यह घटनाओं के सिलसिले से अपने आप मालूम होता जाएगा। चमत्कारों का सहारा लेना, सुसंगठित तंत्र द्वारा चतुराई से प्रचार करवा कर राजा की सर्वज्ञता और देवत्व की लोगों पर छाप बनाना, अंधविश्वासों को हवा देना, लोगों के बीच राजा की अलौकिक शक्तियों की भ्रांति बनाने का अनुभव इक्कीसवीं सदी में पृथ्वी पर सिर्फ और सिर्फ हिंदू जनता प्राप्त करते हुए हैं। तभी मेरा मानना है कि भारत आज दुनिया का अकेला धर्मध्वजी शासन व्यवस्था वाला। रामशरण शर्मा की पुस्तक प्राचीन भारत में राजनीतिक विचार में एक अध्याय है। इसमें धर्म और राजनीति का उपसंहार है कि अंधविश्वास और राजनीति का आपसी रिश्ता कौटिल्य की कृति की ऐसी वह विशेषता है, जिसकी और सामान्यत: ध्यान नहीं दिया जाता। कौटिल्य ने इस बात पर बहुत जोर दिया है कि विदेश नीति में राज्य के हितसाधन के निमित्त जनसाधारण के अज्ञान और अंधविश्वास से राजा को लाभ उठाना चाहिए!

king of India  सोचें, मौजूदा वक्त पर लागू इस उपसंहार पर। इसमें मेरी थीसिस है कि प्राचीन हिंदू राजाओं ने अपनी सर्वज्ञता में हिंदुओं को बुद्धिहीन, अंधविश्वासी बनाने का महा पाप किया। उसके कारण कौम की ताकत जीरो हुई। हिंदुओं को सैकड़ों साल मुस्लिम बादशाहों की गुलामी झेलनी पड़ी। अब उसी प्रवृत्ति में नरेंद्र मोदी अपनी ध्वजाधारी राजनीति में हिंदुओं को बहलाते हुए और उनके अज्ञान का लाभ उठा उन्हें और अंधविश्वासी बना रहे है। वे हिंदुओं के वर्तमान और भविष्य को ऐसा खोखला बना दे रहे हैं कि इतिहास वापिस रिपीट होगा।

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