The Amrit Mahotsav of freedom : वो गाँव जहा आज तक किसी ने नही देखा तिरंगा……

The Amrit Mahotsav of freedom : वो गाँव जहा आज तक किसी ने नही देखा तिरंगा......

The Amrit Mahotsav of freedom : वो गाँव जहा आज तक किसी ने नही देखा तिरंगा……

The Amrit Mahotsav of freedom  :आजादी के असल मायने उस आदिवासी को क्या पता, जिसने भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को देखा तक नहीं ? वो सीधा-सादा बस्तरिया युवक, उसे क्या पता कि अपराध क्या होता है ?
The Amrit Mahotsav of freedom : वो गाँव जहा आज तक किसी ने नही देखा तिरंगा......
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उसे भारत के कानून की किंचिंत भी समझ नहीं है। उसके इसी सीधेपन का फायदा अब तक माओवादियों के नाचा दल से लेकर नक्सलियों के पैरोकार उठाते रहे।
सरकार और सरकारी व्यवस्था के मुखालिफ उनके जेहन में नफरत को कूट-कूट कर भरा जाता है। उसका ऐसा ब्रेनवॉश किया जाता है कि वो युवा हथियार तक उठाने को विवश हो जाता है।
उसको आजाद भारत में कुछ इस तरह से गुलाम बनाया जाता है। तो वहीं कुछेक घरों के युवाओं को जबरन उठा लिया जाता है।

आलम ये है कि इन पहुंच विहीन गांवों में तमाम लोग आपको भारत सरकार की व्यवस्था के मुखालिफ माओवादियों के रटाए बयान सुनाते मिल जाएंगे। वही उनके जीने का लाइसेंस है।

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उससे जो भी हटे उनके सिर कभी दिन में तो कभी रात में कटे। नक्सली उनको जन अदालत लगाकर पुलिस का मुखबिर बता देंगे। उसके बाद वहीं के वहीं उनको मौत का फरमान सुना दिया जाएगा।

इसके बाद सरेआम उनकी धारदार हथियार से गला रेत कर हत्या कर दी जाएगी।

आश्चर्य की बात तो ये कि मानवाधिकार के तमाम अहलकार इसको मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं मानते। अलबत्ता अगर हमारी फोर्स ने एक साथ 10 भी नक्सलियों को मार गिराया।

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तो ऐसे तमाम मानवाधिकारवादी रायपुर के जय स्तंभ चौक से लेकर घड़ी चौक तक आपको झोला लटकाए घूमते हुए मिल जाएंगे।

छत्तीसगढ़ के सुकमा और दंतेवाड़ा जिलों के चिंगाराम, रेंगानार, भूसारास घाटी, छिंदारास, नेरली, ऐसे इलाके हैं, जहां के लोगों ने आज तक तिरंगा देखा तक नहीं। ऐसे ही गांवों में हमारे सुरक्षाबलों के जांबाज जवान जाते हैं।

वहां जाकर समारोह पूर्वक राष्ट्रीय ध्वज लहराया जाता है। जब से सुरक्षा बलों के कैंप इन इलाकों में लगने लगे हैं, लोगों ने राहत की सांस ली है। सुरक्षाबलों के भय से नक्सलियों ने भी बैकफुट पर जाने में ही अपनी भलाई समझी।

जिन हाथों में कभी हथियार हुआ करते थे। उनमें किताबें और लैपटॉप हैं। जिन घरों में तीर-कमान को अपनी सुरक्षा का हथियार माना जाता है।

उन घरों की बेटियां डॉक्टर, इंजीनियर से लेकर कलेक्टर तक बन रही हैं। तभी तो हमारे प्रदेश के मुखिया कहते हैं कि बस्तर बदल रहा है।

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आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर घर-घर तिरंगा अभियान को सफल बनाने का प्रयास पूरे देश में चल रहा है। बस्तर भी इससे अछूता नहीं है।

हमारी सुरक्षाबलों के जांबाज जवान और अफसर बस्तर के उन पहुंचविहीन गांवों में जाकर आदिवासियों को तिरंगे के बारे में जानकारी दे रहे हैं।

देर से ही सही मगर तिरंगे के बहाने आदिवासियों के मन में एक बार फिर देशभक्ति की अलख जगाई जा रही है। आजादी अब अपनी असल जगह पहुंचती दिखाई दे रही है।

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