Special – गांधीजी की जीवन यात्रा

Special - गांधीजी की जीवन यात्रा

-सुभाष मिश्र

गाँधी जी का जन्म सन् 1869 में 2 अक्टूबर को पोरबंदर में काठियावाड़ के बनिया परिवार में हुआ था। 12 वर्ष की आयु तक एक स्कूल में प्राथमिक शिक्षा पाई, कस्तूरबा गांधी से सगाई हुई। इनके पिता का नाम गोकुलदास माकनजी था। सन् 1881 में राजकोट में उच्च विद्यालय में प्रवेश लिया। सन् 1883 में कस्तूरबा से विवाह किया। सन् 1887 में उन्होंने मैट्रिक पास की। काठियावाड़ के एक महाविद्यालय में दाखिला लिया, पर बीच में पढ़ाई छोड़ दी। 4 सितंबर, 1888 को समुद्र के रास्ते वे इंग्लैंड चले गए। 28 अक्तूबर को उनका जहाज इंग्लैंड पहुँचा। इंग्लैंड में यह सोचकर कि यहाँ रहने के लिए डांस और संगीत जरूरी है, उन्होंने इसकी शिक्षा ली। सन् 1889 में ऐसी पुस्तकें पढ़ीं, जो सादे जीवन पर थीं। उन्होंने बाइबिल, कुरान और टॉलस्टाय को पढ़ी। किंगडम व गॉड इज विदिन यू-पुस्तक के द्वारा उन्हें एक नया आकाश दिखा। गीता को वह अपनी माँ कहा करते थे। सन् 1890 में शाकाहारी अभियान चलाया, क्लब चलाया लंदन में, मैट्रिक पास की दुबारा। सन् 1891 में बैरिस्टर बने । सन् 1892 में राजकोट बंबई में वकालत के लिए जद्दोजहद की। अप्रैल 1893 में दक्षिण अफ्रीका गए। वहाँ रंगभेद दूर करने के लिए काम किया। सन् 1893 में नेटाल में नेटाल भारतीय कांग्रेस बनाई। वहां के सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट के लिए अपना नाम दिया। वहाँ अपना नाम दर्ज कराने वाले वे पहले भारतीय थे। सन् 1901 में भारत वापसी हुई। सन् 1902 में रंगून गए। बंबई में वकालत की। वापस दक्षिण अफ्रीका बुलाया गया। सन् 1904 में रस्किन की पुस्तक अनटू द लॉस्ट पढ़ी। जोहांसबर्ग में प्लेग फैलने पर वहाँ एक अस्पताल खोला। सन् 1905 में बंगाल के विभाजन को नहीं माना। अंग्रेजी चीजों को न इस्तेमाल करने की भारतीयों को हिदायत दी। सन् 1906 में होमरूल का समर्थन किया। सन् 1908 में सत्याग्रह शब्द को अपनाया
सन् 1910 में टॉलस्टाय को इंडियन होम रूल की एक कॉपी भेजी और उस पर उनकी राय भी माँगी। टॉलस्टाय ने उत्तर दिया कि सत्याग्रह न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरे विश्व की मानवता के लिए महत्त्वपूर्ण है। टॉलस्टाय फार्म की नींव रखी। मृत्युपरांत टॉलस्टाय को श्रद्धांजलि अर्पित की। सन् 1912-13 में यूरोपीय कपड़े पहनने छोड़ दिए। सन् 1915 में भारत वापसी। एंबुलेंस सेवाओं के लिए कैसर-ए-हिंद स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। अहमदाबाद में सत्याग्रह आश्रम यानि साबरमती आश्रम स्थापित किया। सन् 1916 में बर्मा का दौरा किया। सन् 1917 में चरखे का प्रयोग कर हर घर में चरखे का उपयोग करने की सलाह दी। नील की खेती में मजदूरों की हालत क्या है, यह जानने के लिए चंपारन का दौरा किया। सन् 1918 में अहमदाबाद में कपड़ा मजदूरों की मदद की। सत्याग्रह किया। सन् 1919 में रौलेट ऐक्ट खिलाफ सत्याग्रह करने की शपथ पर साइन किए। जलियाँवाला बाग की दुर्घटना। सन् 1922 में चौरा-चौरी की भयानक घटना घटी, 5 दिन उपवास रखा। साबरमती में राजद्रोह के कारण गिरफ्तार हुए। 18 मार्च को 6 साल का कारावास दिया गया। हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए 21 दिन उपवास किया। बेलगाँव में कांग्रेस के अध्यक्ष बने। सन् 1925 में आश्रमवासियों ने जो दुष्कर्म किए, उनके लिए 7 दिन का उपवास रखा। सन् 1925 में ही अपनी कहानी माय एक्सपेरीमेंट विद ट्रूथ लिखनी शुरू की। सन् 1927 में लंका गए। सन् 1930 में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन मांग पूरी नहीं होने पर नमक कानून तोड़ेंगे। डांडी समुद्रतट के लिए यात्रा की। 3 अप्रैल को वहाँ नमक हाथ में लिया। गिरफ्तारी हुई और जेल भेज दिए गए।
सन् 1931 में बिना शर्त उनकी रिहाई कर दी गई। इरविन गांधी समझौता हुआ। गोलमेज कॉन्फ्रेंस दो बार हुई। वही एकमात्र भारतीय प्रतिनिधि थे। सन् 1932 में बिना किसी कारण गिरफ्तार किए गए। हरिजनों के लिए जेल में आमरण अनशन किया। वजह थी कि हरिजनों का अलग निर्वाचन मंडल न हो। शर्तें
पूरी होने पर उपवास तोड़ दिया। सन् 1933 में हरिजन अखबार निकाला। आत्मशुद्धि के लिए 21 दिन का उपवास रखा। सन् 1934 में राजनीति से संन्यास। ग्रामीण उद्योगों का विकास। हरिजन सेवा। हस्तशिल्पियों को ऊँचा उठाने की लगन। सन् 1936 में सेवाग्राम में एक ऑफिस बनाया। वहीं रहने लगे। शिक्षा सम्मेलन में बुनियादी हस्तशिल्प सिखाने की योजना बताई। सन् 1937 में प्रशासन में सुधार लाने के लिए आमरण अनशन किया। सन् 1942 में पत्रिकाएँ आरंभ कीं। ब्रिटिश सरकार में भारत छोड़ो की अपील की। आगा खाँ महल में नजरबंद हुए। दोस्त महादेव देसाई की मृत्यु हुई।
सन् 1943 में 21 दिन का उपवास किया। सन् 1944 में कस्तूरबा गांधी का निधन हुआ। सन् 1945-1946 में छुआछूत के विरोध और हिंदुस्तानी के प्रचार के लिए बंगाल व असम का दौरा किया। नोआखली में नरसंहार। को देखते हुए कलकत्ता नोआखली गये। माउंटबेटन का वक्तव्य कि जहंा 5-5 हज़ार सैनिक पंजाब में कुहक न कर सके वहां अकेले गांधी ने बंगाल को सांप्रदायिक दंगो से मुक्त कर दिया गाँधीजी के शब्दों में यह अहिंसा का चमत्कार था। 30 जनवरी, 1948 को प्रार्थना सभा में हत्यारों ने उनकी हत्या कर दी गई।

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