Shri Ramcharit Manas जल भरि नयन कहहिं रघुराई । तात कर्म निज तें गति पाई ।।

Shri Ramcharit Manas

Shri Ramcharit Manas श्रीरामचरितमानस – विचार

 

Shri Ramcharit Manas जल भरि नयन कहहिं रघुराई । तात कर्म निज तें गति पाई ।।
परहित बस जिन्ह के मन माहीं । तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं ।

Shri Ramcharit Manas जटायु जी ने रावण का मार्ग रोका है, रावण उन्हें घायल कर सीता जी को ले जाता है । राम जी सीताजी को खोजते हुए जटायु जी को दर्शन देते हैं और कहते हैं कि आपको ठीक किए देता हूँ । जटायु जी कहते हैं कि आपके दर्शन हो गये, अब मुझे और क्या चाहिए । राम जी सजल नेत्रों से कहते हैं कि तात! आपने मेरा दर्शन अपने श्रेष्ठ कर्मों से पाया है । जिनके मन में दूसरों का हित समाया हुआ रहता है उनके लिए जगत में कुछ भी दुर्लभ नहीं है ।

 

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मित्रों! इस जगत में हमारे लिए तो सब कुछ दुर्लभ ही दुर्लभ है कारण हमारे कर्म श्रेष्ठ नहीं हैं । एकबार श्रेष्ठ कर्म ( परहित ) करने में लग कर देखें, जटायु जी की तरह हमें राम जी भी सुलभ हो जाएँगे । अत: कर्म सुधारें , राम पाएँ । अथ ! जय जय राम , जय जय राम

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