भानुप्रतापपुर। माता पिता अपने बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए ऊंचे-ऊंचे विद्यालयो में भेजते है। पर उन्हें संस्कार नही दे पाते है, जिसका परिणाम माता पिता को उपेक्षा सहन करना पड़ता है। बालिका बालक अपने धर्म से विमुख होते जा रहे है।
संबलपुर में राठी परिवार द्वारा श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह का का आयोजन 8 दिसंबर से 14 दिसंबर तक समय दोपहर 2.00 बजे से संध्या 6.00 बजे तक सिद्ध श्री गणेश स्वामी मंदिर प्रांगण संबलपुर में किया जा रहा है। व्यासपीठ पर विराजमान जोधपुर राजस्थान के रससिह प्रवक्ता श्री १०८ परमहंस डॉ.रामप्रसाद जी महाराज के श्रीमुख से भक्तिमयी मधुर एवं ओजस्वी अमृतवाणी में भागवत की ज्ञान गंगा प्रवाहित हो रही है।
आज के कथा में ध्रुव चरित्र का वर्णन करते हुए भक्ति व दृढ़ संकल्प का बताया
महत्व उत्तम राजा उत्तानपाद की गोदी में बैठा हुआ था। ध्रुव राजा की गोदी में चढ़ने का प्रयास करने लगे। सुरुचि को अपने सौभाग्य का इतना अभिमान था कि उसने ध्रुव को डांटा और कहा गोद में चढ़ने का तेरा अधिकार नहीं है। बालक ध्रुव अपने माता सुनीती के पास पहुचकर बताया माँ ने उन्हें भगवान को पाने का रास्ता दिखाया। महज ही 6 वर्ष की उम्र में बालक धरु भगवान को पाने के लिए वन में निकल गया। वन में नारद जी मिले बालक ध्रुव को ओम नमो भागवत वासुदेव नमो के जाप करने को कहा। बालक के निष्ठा व भक्ति से भगवान उन्हें दर्शन दिए। कहते है यदि लगन निष्ठा से भगवान की तरफ कदम रखोगे तो वह किसी न किसी रूप में संत से मिलवा देते है, जिनके माध्यम से ईश्वर को पाया जा सकता है।
ध्रुव चरित्र हमे बहुत कुछ सिखाती है। माता का स्थान सर्वोपरि होती है, ध्रुव की माता सुनीती, प्रहलाद की माता कायदु कई संत महात्मा हुए जिनके प्रेरणा भी माता से मिली है।
जीवन जीने की कला उपयोगिता हमे रामायण, भागवत, गीता जैसे धार्मिक ग्रंथो से मिलती है। नारी का हमेशा सम्मान करना चाहिए जिस घर मे नारी का सम्मान है वहा देवता भी वास करते है। जहा पर नारी का अपमान मारपीट किया जाता है, उस घर मे दरिद्रता व वंश का नाश हो जाता है।
वही पुरुषोंतार्थ करने से ब्यक्ति सब कुछ पा सकता है। आलस्य का त्याग, मेहनत करना, निंदा बुराइयों से दूर रहना चाहिए।
सत्संग की तुलना स्वर्ग से भी नही की जा सकती है। सभी जीवों में मनुष्य जीव को श्रेठ माना गया है, जप तप सत्संग से भगवान को पाया जा सकता है। वही यदि नशा करनी हो तो प्रभु श्याम से करो आपके जीवन संवर जाएगा।
सती चरित्र का भी वर्णन किया गया। पति की बात न मानकर देवी सती बिना बुलाये ही यज्ञ समारोह में पहुच गई। पिता दक्ष द्वारा पति के अपमान सहन नही कर पाई यज्ञ कुंड में देवी सती अपने प्राण त्याग दिया। कथा के माध्यम से हमे यह प्रेरणा मिलती है कि पति के आज्ञा बिना पत्नी को कुछ भी नही करना चाहिए।
राठी परिवार शंकरलाल-रमा देवी राठी अशोक (पिन्टू) राठी एवं समस्त राठी परिवार द्वारा यह आयोजन किया जा रहा है।