Question on transparency: जहां किया था fraud… निलंबन के 2 माह बाद फिर वहीं हो गई posting… प्रशासन पर उठने लगी उंगली

सूरजपुर:  राजस्व विभाग के कारनामे एक बार फिर सुर्खियों में हैं। प्रतापपुर तहसील के मदननगर गांव में शासकीय भूमियों को निजी व्यक्तियों के नाम दर्ज करने के गंभीर मामले में निलंबित किए गए पटवारी मो. नुरुल हसन अंसारी को न केवल दो माह में बहाल कर दिया गया, बल्कि आश्चर्यजनक रूप से उसी मदननगर का कार्यभार फिर से सौंप दिया गया। इस घटनाक्रम ने जिला प्रशासन और राजस्व विभाग की पारदर्शिता व जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। कुलमिलाकर यह मामला जिला प्रशासन और राजस्व विभाग के लिए एक बड़ा सबक है। यदि शासकीय भूमियों के फर्जीवाड़े जैसे गंभीर अपराधों में शामिल लोगों को सजा के बजाय पुरस्कार के रूप में फिर से वही जिम्मेदारी दी जाएगी, तो जनता का प्रशासन पर भरोसा कैसे कायम रहेगा? इस मामले की गहन जांच और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग अब जोर पकड़ रही है।

 पांच शासकीय भूमियों में फर्जीवाड़ा

वर्ष 2021 में पटवारी मो. नुरुल हसन अंसारी ने मदननगर की खसरा क्रमांक 795, 811, 1143, 1154/1 और 1156 की शासकीय भूमियों को मोटी रकम के एवज में निजी व्यक्तियों के नाम पर दर्ज कर दिया था। शिकायत के बाद तत्कालीन एसडीएम प्रतापपुर दीपिका नेताम ने जांच के आधार पर 26 जुलाई 2021 को पटवारी को निलंबित कर दिया। निलंबन आदेश में स्पष्ट था कि पटवारी ने नियम-विरुद्ध तरीके से शासकीय भूमियों को निजी हाथों में सौंपा, जो छत्तीसगढ़ सिविल सेवा नियमों के तहत गंभीर अपराध है।

 दो माह में पलटा निलंबन आदेश

हैरानी की बात यह है कि निलंबन के महज दो माह बाद 30 सितंबर 2021 को तत्कालीन एसडीएम ने ही निलंबन आदेश को रद्द करते हुए पटवारी की बहाली कर दी। बहाली आदेश में दावा किया गया कि पटवारी ने अपने खिलाफ आरोप पत्र का जवाब दे दिया था, जिसके आधार पर उन्हें बहाल किया गया। निलंबन काल को भी कार्यावधि माना गया। सवाल यह है कि इतने गंभीर अपराध के बावजूद बिना किसी आपराधिक कार्रवाई या कठोर सजा के पटवारी को कैसे बहाल कर दिया गया..?

 

 फिर सौंपा वही कार्यक्षेत्र

और भी चौंकाने वाली बात यह है कि फर्जीवाड़े में लिप्त इस पटवारी को वर्तमान में फिर से मदननगर का कार्यभार सौंप दिया गया। यह वही क्षेत्र है, जहां वर्तमान में एसईसीएल भटगांव क्षेत्र द्वारा कोयला खदान खोलने का ग्रामीणों द्वारा पुरजोर विरोध हो रहा है। ऐसे संवेदनशील क्षेत्र में उसी पटवारी को जिम्मेदारी देना राजस्व विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है।

 कानून में सख्त प्रावधान, फिर भी ढील

उस समय लागू भारतीय दंड संहिता और वर्तमान में लागू भारतीय न्याय संहिता, दोनों में ही शासकीय सेवक द्वारा फर्जीवाड़े के लिए कठोर कार्रवाई का प्रावधान है। इसमें आपराधिक मामला दर्ज करने से लेकर बर्खास्तगी और जुर्माना तक शामिल है। लेकिन इस मामले में न तो कोई आपराधिक कार्रवाई हुई और न ही कोई सख्त कदम उठाया गया। इसके उलट, पटवारी को फिर से उसी स्थान पर जिम्मेदारी सौंपकर विभाग ने अपनी विश्वसनीयता को ही कटघरे में खड़ा कर दिया।

 कलेक्टर के निर्देश बेअसर

कलेक्टर द्वारा नियमित बैठकों में पारदर्शी और जवाबदेह कार्यशैली के निर्देश दिए जाते हैं, लेकिन यह मामला दर्शाता है कि उनके मातहत अधिकारी इन निर्देशों को गंभीरता से नहीं लेते। आरटीआई कार्यकर्ता दीपक चंद मित्तल द्वारा प्राप्त जानकारी ने इस पूरे प्रकरण को उजागर किया है, जिससे जनता में आक्रोश बढ़ रहा है।

 ग्रामीणों में रोष, पारदर्शिता पर सवाल

मदननगर के ग्रामीण पहले ही कोयला खदान के मुद्दे पर आंदोलनरत हैं। ऐसे में उसी पटवारी को जिम्मेदारी सौंपना, जिसने पहले शासकीय भूमियों में फर्जीवाड़ा किया, ग्रामीणों के गुस्से को और भड़का सकता है। यह घटनाक्रम न केवल राजस्व विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि गंभीर अपराधों के बावजूद दोषियों को संरक्षण देने की प्रवृत्ति बरकरार है।