दिलीप गुप्ता
सरायपाली :- पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है यह देश व पत्रकारिता के लिए बहुत ही गौरव व सम्मान की बात है । कार्यपालिका , विधायिका व न्यायपालिका के बाद मीडिया को महत्वपूर्ण मानना यह मीडिया के लिए बहुत ही गौरवान्वित पल है । किंतु जैसे जैसे विज्ञान नई नई टेक्नालॉजी ला रहा है वैसे वैसे इसका दुरुपयोग भी बढ़ते जा रहा है ।
शुरुवात में प्रिंट मीडिया से जुड़े अखबारों का चलन था जिसके बाद टीवी चैनल आने के बाद कुकुरमुत्ते की तरह पोर्टल वेव पोर्टल व छोटे छोटे अखबारों , साप्ताहिक , पाक्षिक अखबारों के पदार्पणो से देश मे एक बाढ़ सी आ गई । इस बाढ़ में नामचीन अखबार व मीडिया तो किनारे हो गये पर नए नए लोग इस बाढ़ में बहते चले गए जिन्होंने अपनी हदों व कार्यक्षेत्रों को भी पार कर दिया । आज हालात यह है कि इस तरह के मीडिया से जाने अनजाने सैकड़ो लोग इससे जुड़ते चले गये ।
पत्रकारिता व उसके दबाव का आकर्षण व लोभ ऐसे लोगो को भी आकर्षित किया जिन्हें इसकी कोई जानकारी तक भी नही हैं । किसी एक पोर्टल या अखबार में समाचार लगा नही की कॉपी पेस्ट पत्रकारों की नजर गिद्ध के समान पड़ती है और उनका आईडी निकालकर अपना आईडी ऐड कर कई पोर्टलों में इस तरह समाचारो को परोसने का चलन से चल गया है ।
कोई स्वयं होकर समाचार बनाने की झंझट से बचने के लिए इस तरह का शॉर्टकट रास्ता अपनाते दिखाई दे रहे हैं । इसी तरह पत्रकारिता का स्तर इन वेबपोर्टल धारियों ने इतना गिरा चुके हैं किब लोग 200 – 300 रुपये लेकर अपने वेबपोर्टल में समाचार लगाने का चलन आम हो गया है । कुछ पोर्टल संचालकों द्वारा इसे विज्ञापन प्रसारित करने का जरिया भी बना लिया गया है ।
विज्ञापनदाताओं को हजारों की संख्याओं की झूठी जानकारी देकर कुछ ग्रुप से जुड़कर सिर्फ विज्ञापन समाचारो के साथ प्रसारित कर आय का साधन बना लिया गया है ।
विभिन्न अखबारों व वेबपोर्टल धारी पत्रकारों को दीपावली का खास इंतजार रहता है । दीपावली का त्योहार नजदीक आते ही इस तरह के कथित पत्रकारों का सुबह से विभिन्न ग्राम पंचायतों , सहकारी समितियों व अन्य विभागों का दौरा प्रारम्भ हो जाता है यह दौरा समाचारो के संकलनों लिए नही बल्कि अवैध वसूली के लिए किया जाता है ।
कुछ छोटे व अनजान अखबारों द्वारा कार्यालयों में बैठकर बगैर किसी जनप्रतिनिधियों की फोटो के साथ 2×5 साइज़ का विज्ञापन बगैर सहमति व जानकारी के प्रकाशित कर 3000-3000 के बिलों के साथ बाकायदा बारकोड भी भेजा जा रहा है ताकि वे इसमे भुगतान कर सकें ।
ग्राम पंचायतों पर भुगतानों का दबाव बनाया जाता है व उनके खिलाफ समाचार प्रकाशन करने व सूचना के अधिकार लगाए जाने की धमकी भी दी जा रही है । इनके इन कृत्यों से सरपंचो , पंचायत सचिवों के साथ ही विभिन्न विभागों के अधिकारियों के चेहरों पर चिंता की लकीरें भी बहुत गहराती जा रही है। इसकी वजह है कुछ तथाकथित पत्रकार जो छोटे छोटे वेब पोर्टलों और फर्जी प्रेस काडों के सहारे पंचायत प्रतिनिधियों से धन उगाही में जुट गये हैं। ये लोग दिवाली विज्ञापन और त्योहार खर्च के नाम पर हजारों रुपये की मांग करने की जानकारियां आ रही है ।
■ वेब पोर्टलों से शुरू हुई है वसूली की चेन■
जबसे क्षेत्र में वेब पोर्टलो कि शुरुवात हुई है तबसे पत्रकारिता को धब्बा लगाने की शुरुवात अधिक हो गई है । जिन्हें पत्रकारिता से कोई लेना देना नही ऐसे लोग समाचारो को कॉपीपेस्ट कर स्वस्यम्भू पत्रकार बन रहे हैं ।
पत्रकारिता जैसे क्षेत्र में नये व युवाओं का आना स्वागतयोग्य है पर नाम कमाने , सींखने व अपना कैरियर बनाने के लिए यह एक अच्छा माध्यम जरूर है पर इसका गलत उपयोग कर पत्रकारिता को दागदार बनाये जाने से रोकना भी उतना ही आवश्यक है ।
इस संबंध में क्षेत्र के अनेक ग्राम पंचायत के सरपंचों , सचिव व अनेक अधिकारियों ने बताया कि रायपुर से संचालित कुछ वेबसाइटें पंचायतों के नाम से फर्जी विज्ञापन प्रकाशित कर रही हैं। इन विज्ञापनों के बदले में यूपीआई बारकोड भेजकर रकम की मांग की जा रही है। पैसा न देने पर पोर्टल संचालको द्वारा भ्रष्टाचार उजागर करने जैसी धमकी भरे कड़े संदेश भी भेजे जा रहे हैं। इसे लेकर सरपंचों का कहना है कि ये लोग खुद को पत्रकार बताते हैं व झूठा पता बताकर गांव-गांव घूम रहे हैं और मिठाई खर्च या दीपावली गिफ्ट के नाम पर लगातार राशि की मांग कर रहे हैं ।
इसे लेकर अनेकों का कहना है कि ऐसे लोगों के कारण असली पत्रकारों की साख को बहुत ठेस पहुंच रही है। वर्षों से जनहित में कार्य कर रहे पत्रकारों की मेहनत पर फर्जी पत्रकारों की ब्लैकमेलिंग की परछाई बहुत भारी पड़ रही है। अब तो स्थापित पत्रकारों को पत्रकार के नाम से अपना परिचय देने में भी संकोच होने लगा है ।
कुछ वेब पॉर्टलधारी व अखबार नवीसों की जानकारी देते हुवे बताया गया कि आपका विज्ञापन लगने के बाद आपके द्वारा जनहित में किये जा रहे कार्यो का समाचार प्रकाशन किये जाने का झांसा भी दिया जाता है । प्रतिनिधियों ने बताया कि कुछ फर्जी पत्रकार यूपीआई बारकोड भेजकर ऑनलाइन वसूली कर रहे हैं जबकि वो न गांव आये न ही कभी मुलाकात की है फिर भी कहते हैं कि आपकी खबर छापी है। अब विज्ञापन दो।
इस संबंध में नगर के कुछ वरिष्ठ पत्रकारों ने बताया कि ऐसे लोग जो गांव गांव घूमकर अवैध वसूली कर रहे हैं वे पत्रकार नहीं है बल्कि सिर्फ वो ब्लैकमेलर हैं। उन्होंने कहा कि असली पत्रकारिता का इन लोगों से कोई लेना-देना नहीं है और जो व्यक्ति या संस्था ऐसे लोगों के संपर्क में आये वो सीधे पुलिस या प्रशासन को जरूर सूचित करें।
इसके साथ ही सरपंच संघ ने भी दी चेतावनी देते हुवे कहा कि दीपावली आते ही ऐसे फर्जी पत्रकार सक्रिय हो जाते हैं और कई बार ये बिना पहचान पत्र दिखाए पंचायतों में पहुंचते हैं और नकली विज्ञापन दिखाकर रुपये मांगते हैं। उन्होंने कहा कि हमने क्षेत्र के सभी सरपंचों को सतर्क कर दिया है ऐसे पत्रकारों के खिलाफ अब सीधे थाने में शिकायत दर्ज कराई जायेगी ।
क्षेत्र में व खासकर लगभग पूरे राज्य में इस तरह की शिकायतें आम हो गई है इसके लिए अखबार , न्यूज पोर्टल व टीवी चैनल संचालकों के साथ ही विभिन्न पत्रकार संघ भी जिम्मेदार है । कई पत्रकार संघ तो सिर्फ ऐसे पत्रकारो को मिलाकर ही अवैध वसूली के लिए संघ बना रखे हैं ।
जिनका वे सरंक्षण भी करते हैं । सरकार को चाहिए कि वे पत्रकारिता के व्यवसाय से जुडने वालो के लिए गाइडलाइन जारी करे । शासकीय मानकों पर खरा नही उतरने वाले व प्रेसकार्ड जारी करने वालो पर सख्ती से कार्यवाही करे । इस चौथे स्तंभ में भी स्पष्टता , पारदर्शिता व अनुशासन बनाये रखने के लिए सरकार , प्रिंट , इलेक्ट्रॉनिक व वेब पोर्टल के संचालकों व प्रशासन को भी सतर्कता बरतनी चाहिए ।