Prime Ministerial Candidate In India : भारत में प्रधानमंत्री पद के कौन-कौन हैं संभावित उम्मीदवार जानें
Prime Ministerial Candidate In India : देश में पिछले कई दिनों से राजनीतिक दलों के बीच देश के अगले प्रधानमंत्री पद को लेकर भीतरी खींचतान मची हुई है। राजनेताओं की महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है। कोई किसी को आगे कर या किसी का सहारा लेकर येनकेन प्रकारेण सियासी समीकरण बिठाने पर लगा हुआ है। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जगह लेने के लिए नेता जी तोड़ मेहनत
Prime Ministerial Candidate In India : कर रहे हैं, पर यह सब उनकी पार्टी या आपसी तालमेल पर निर्भर करता है, कि क्या उनकी इच्छा पूरी हो पाएगी ? विपक्ष के नेता कई बार मिलते हैं। बैठकें करते हैं, अगली बार मिलने की कसम खाकर बिछुड़ते हैं, और फिर सबको एक करने का प्रयास होता है, किन्तु किसी न किसी पार्टी के दिग्गज नेता किन्हीं कारणों से एक मंच साझा नहीं कर पाते। यह
तो उन लोगों का दुर्भाग्य ही है कि वे किसी बड़े प्लॉन को अंजाम नहीं दे पाते जिसका एक मात्र कारण उनकी राजनीतिक महात्वाकांक्षा है। यह इतनी बड़ी होती है कि इसकी वे भरपाई नहीं कर पाते, या समान विचारधारा वाले दलों से उनका सामंजस्य नहीं बैठता। पिछले दिनों कई बार भाजपा विरोधी दलों की बैठकें हुई,ं जिसमें कई दलों के नेता
अनुपस्थित रहे। वजह चाहे जो भी हो लेकिन वे सही बात बताने से कतराते रहे, जिसके पीछे उनका कहीं न कहीं कोई स्वार्थ छिपा था। आगामी 2024 में लोकसभा चुनाव में मोदी को पीएम पद पर पुनः स्थापित होने से रोकने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। वर्तमान में देखा जाए तो भाजपा को केवल कांग्रेस ही चुनाव में सही तरीके से मात दे
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सकती है। क्षेत्रीय दलों का बीजेपी से टकराना आसान नहीं है। इन दलों के प्रत्याशी इस चुनाव में स्थानीय मुद्दों के सहारे जीत भी गए तो वे उंगलियां पर गिनने लायक होंगे। विगत दिनों राष्ट्रवादी कांग्रेस के सुप्रीमों शरद पवार, तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी, तेदेपा प्रमुख चंद्रबाबू नायडू, सपा मुखिया अखिलेश यादव, बसपा प्रमुख मायावती, केसीआर
प्रमुख के चंद्रशेखर राव, शिवसेना नेता संजय राउत या प्रियंका चतुर्वेदी, जदयू नेता एवं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व राजद नेता द्वय तेजस्वी यादव और तेज प्रताप और जदसे नेता एचडी देवगौड़ा तथा कई विरोधियों ने आपसी मंथन कर देश में एक नया मोर्चा बनाने का संकेत दिया। इस बैठक में कांग्रेस के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। जैसे-तैसे बैठकों में
सहमति तो बनी, कि हमें हर हाल में आगामी चुनाव के बाद मोदी को पुनः प्रधानमंत्री नहीं बनने देना है। पर इन बैठकों में यह तय नहीं हुआ कि आखिर पीएम बनेगा कौन ? राजनीति में नेता अक्सर इस बात से इंकार करते हैं कि वे फलां पद के दावेदार हैं और विशेषकर आम सहमति पर ही जोर देते हैं,लेकिन अपने दिल का राज उजागर नहीं करते। देखा
जाए तो प्रधानमंत्री बनने की कतार में नेताओं की कोई कमीं नहीं है। शरद पवार, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव, मायावती, ममता बनर्जी, एचडी देवगौड़ा, आप संयोजक अरविंद केजरीवाल, लालू यादव या फिर उनके पुत्रों में से कोई इस पद को पाने से परहेज नहीं करेगा। मायावती 4बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं और वे अनुसूचित जाति की
पहली महिला हैं जो इस पद पर विराजमान हुई हैं। 1977 से राजनीति में आई मायावती भी प्रधानमंत्री पद को काफी करीब से देख रही हैं। एक असवर पर उनके पिता प्रभुदास जो डाकघर के एक कर्मचारी थे ने एक बार उनसे कहा था कि वे जरूर देश की प्रधानमंत्री बनेंगी। मायावती अक्सर कमजोर वर्गों, बहुजनों, अनुसूचित जाति, जनजाति अन्य पिछड़ावर्ग,
पान्थिक अल्पसंख्यकों के जीवन में सुधार के लिए निरंतर राजनीति में सक्रिय हैं। शरद पवार, देश के रक्षा मंत्री रह चुके हैं, और अब महाराष्ट्र में उनकी किसी पद पर रहने की इच्छा नहीं है। वे हमेशा किंगमेकर या सलाहकार बनना ही पसंद करते रहे हैं। अखिलेश यादव यूपी के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और उनकी महत्वाकांक्षा भी अब कुछ बड़ा बनने की है।
ममता बनर्जी भले ही यह कहती हैं कि वे बंगाल में ही ठीक हैं पर उनकी भीतरी इच्छा भी देश के इस उच्च पद पर आसीन होने की है। एचडी देवगौड़ा पहले भी प्रधानमंत्री रह चुके हैं, लेकिन उनकी इच्छा अभी पूरी नहीं हुई है, और वे दोबारा इस पद पर जाना चाहते हैं। चंद्रबाबू नायडू और चंद्रशेखर राव भी यही इच्छा मन में पाले हुए हैं
कि कभी तो हमारी लॉटरी लगेगी और हम राष्ट्रीय राजनीति में पदार्पण करेंगे। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल भी प्रधानमंत्री पद पाने की लगातार जुगत में देखे जा सकते हैं। रहा सवाल शिवसेना का तो उनके पास राष्ट्रीय छवि का ऐसा कोई नेता तो नहीं है पर वे अपने समर्थन से केंद्र से अधिकाधिक लाभ पाने की लालसा मन
में पाले हुए हैं। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस इन नेताओं की हरकतों पर बारीकी से नजर रख रही है, और यह मानकर चल रही है कि हमारे बिना इनका कुछ नहीं होने वाला है। चाहे जो भी हो सत्ता में तो हम ही आकर रहेंगे, और हमारे रहते हुए दूसरी किसी पार्टी का नेता प्रधानमंत्री पद पर काबिज नहीं हो सकता। वैसे भी इस पद को लेकर ख्याली पुलाव पकाने
में आखिर बुराई क्या है ? इस पद को लेकर नेताओं की फेरहिस्त और लंबी हो सकती है, पर कम नहीं। पहले तो देश में कांग्रेस और भाजपा को पीछे छोड़कर ही कोई पार्टी आगे बढ़ सकती है और इन क्षेत्रीय दलों के लिए ये आसान ही नहीं नामुमकिन है
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