Kanker Chhattisgarh : यहां के लोग विवाह की स्मृति में वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी नही स्मारक या लकड़ी का स्तंभ लगाकर रखते है याद

 Kanker Chhattisgarh : यहां के लोग विवाह की स्मृति में वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी नही स्मारक या लकड़ी का स्तंभ लगाकर रखते है याद

 Kanker Chhattisgarh : यहां के लोग विवाह की स्मृति में वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी नही स्मारक या लकड़ी का स्तंभ लगाकर रखते है याद

यहां के लोग विवाह की स्मृति में वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी नही स्मारक या लकड़ी का स्तंभ लगाकर रखते है याद

विवाह एक पवित्र बंधन होता है जिसमे दो लोग एक दूसरे के साथ सात जन्मों के अटूट बंधन में बंधते है. विवाह की याद स्मृति के रूप में डिजिटल युग मे लोग अधिकतर वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी या किसी अन्य माध्यम से इन यादों को संजोकर रखते है.पर हम आपको बस्तर में विवाह के बाद होने वाली एक ऐसी रिवाज के बारे में बताएंगे जो आपने इससे पहले कभी सुना है ना ही देखा होगा ….देखिए ये खास रिपोर्ट

 Kanker Chhattisgarh : यहां के लोग विवाह की स्मृति में वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी नही स्मारक या लकड़ी का स्तंभ लगाकर रखते है याद

जी हां हम बात कर रहे है आदिवासी बहुल उत्तर बस्तर कांकेर जिले के कागबरस गांव की जोकि जिला मुख्यालय से लगभग 140 किलोमीटर दूर कोयलीबेड़ा ब्लॉक में जंगलों से घिरा हुआ है । यहां के ग्रामीण आदिवासी परंपरा के अनुसार शादी विवाह के संपन्न होने के बाद यहां के ग्रामीण लकड़ी का बड़ा सा स्मृति चिन्ह बनाकर अपने घरों के सामने गड़ा देते है । ऐसा ही कागबरस गांव के एक आंचला परिवार के लोग विवाह की स्मृति चिन्ह के रूप में अपने घर के बाहर एक स्तंभ लगाए हुए है ताकि उस स्मारक को उनकी आने वाली पीढ़ी देख सके।

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वही कागबरस के स्थानीय ग्रामीण दशरथ आंचला बताते है की उनका विवाह पिछले साल मई के महीने में संपन्न हुआ था जिसके बाद उनके घर में बाहर एक स्मारक लगाया गया है ताकि उनकी आने वाली पीढ़ी इसे देख सके व अपने रीति रिवाजों को न भूले दशरथ ने स्वदेश न्यूज़ से बात करते हुए बताया की ऐसा स्तंभ उनके घर के बाहर हर पीढ़ी का लगा हुआ है जिसमे उनके पिता,चाचा, दादा व अन्य शामिल है व इसे सिर्फ गोंड जाति के आंचला गोत्र के लोग ही ऐसा करते है।

सर्व आदिवासी समाज के युवा प्रभाग के अध्यक्ष योगेश नरेटी ने भी बताया की स्मारक या स्तंभ लगाने की परंपरा आदिवासी समुदाय का शुरू से ही रहा है मृत्यु के पश्चात पत्थर गाड़ना हो या शादी के बाद यह स्मृति स्तंभ हो साथ ही उन्होंने आगे बताया की यह स्तंभ दरअसल विवाह के समय मड़वा मंडप में लगाया जाता उस का बीच का भाग होता है जिसे स्थानीय भाषा में मांडो कहा जाता है जिसे विवाह संपन्न होने के बाद स्मृति चिन्ह के रूप में घरों के बाहर लगाया जाता है

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