प्रधानमंत्री मोदी ने महाकुंभ में आस्था की डुबकी लगाकर सनातन परंपरा को दी नई पहचान, आस्था के स्नान को राजनीति का ‘तुरूप का इक्का’ बना दिया

प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी आस्था की डूबकी लगाकर अपनी सनातन परंपरा को आमजनों के बीच मजबूती दी है । प्रधानमंत्री के इस स्नान के साथ ही गंगा में डूबकी लगाने वालों की संख्या —- करोड़ पहुँच गई है । समूची भाजपा और उसकी सहयोगी संस्थाएं सनातन की परंपरा को मजबूती के साथ प्रकट करते हुए ऐसा कोई अवसर नहीं गंवाना चाहती हैं जिससे उसका हिन्दुत्व का एंजेडा राजनीतिक पटल पर नजर ना आए । कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता की अपनी चाहे जो मजबूरी हो जो कि होना नहीं चाहिए क्योंकि धर्म और आस्था सबके लिए एक जैसे आस्था केंद्र हैं । लेकिन दूसरे राजनीतिक दलों को इसमें कोई संकोच नहीं है । अयोध्या मंदिर के बाद धर्म , सनातन संस्कृति , आस्था जैसे शब्द और पद राजनीतिक दलों के लिए अब तो तुरूप का इक्का है । राजनीतिक अवसर है । वोट में बदलने का विकल्प है । रामजन्म भूमि आंदोलन के ज़रिए विजयी रथ पर सवार भाजपा अपना परचम लगातार बुलंद करते हुए अब सनातनी परंपरा की सबसे बड़ी वाहक बन गई है ।
आस्था का स्नान हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण परंपरा है, जो पवित्र नदियों, सरोवरों, और तीर्थस्थलों पर किया जाता है। इसे आध्यात्मिक शुद्धिकरण और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना जाता है। इस परंपरा की जड़ें वेदों, पुराणों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में देखी जा सकती हैं।

हमारे यहाँ नदियों , जलस्रोतों में स्नान की एक दीर्घकालिक परंपरा और महत्व है और इसकी धार्मिक पृष्ठभूमि और आधार भी है । ऐसा माना जाता है कि पवित्र नदियों में स्नान करने से पापों का नाश होता है और आत्मा शुद्ध होती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है । हिंदू धर्म में गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी, नर्मदा आदि नदियों को देवी के रूप में पूजनीय माना गया है। इनमें स्नान करने से जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा सदियों से चल रही धार्मिक अनुष्ठानों की पूर्ति होती है । यही वजह है की कुंभ मेले, अर्धकुंभ, कार्तिक पूर्णिमा, माघ मास, छठ पूजा और गंगा दशहरा जैसे पर्वों पर आस्था के स्नान का विशेष महत्व होता है। हमारे यहां चारधाम यात्रा ( केदारनाथ ,बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी, रामेश्वरम), प्रयागराज, हरिद्वार, वाराणसी और उज्जैन जैसे तीर्थस्थलों पर स्नान को पुण्यदायी माना जाता है। हर 12 साल में आयोजित होने वाले कुंभ के मेलों का सबसे अधिक महत्त्व है । यह दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक स्नान पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान करते हैं।
गंगा दशहरा के दिन गंगा नदी में स्नान करना विशेष पुण्यदायी माना जाता है। माघ मेला और मौनी अमावस्या के दिन संगम में स्नान करने से आध्यात्मिक शक्ति और शांति की प्राप्ति होती है ऐसी धारणा है। बिहार से प्रारंभ हुई छठ पूजा आज पूरे देश में आयोजित होने लगी है ।
छठ पूजा के अवसर पर सूर्य को अर्घ्य देने से पहले भक्त गंगा या अन्य पवित्र जलाशयों में स्नान किया जाता हैं।
ऐसा माना जाता है की पवित्र नदियों का जल औषधीय गुणों से भरपूर होता है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। स्नान से मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। प्राचीन काल से जल चिकित्सा (हाइड्रोथेरेपी) का महत्व बताया गया है।
हमारे देश में आस्था का स्नान केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि सामाजिक और आध्यात्मिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है। यह आत्मशुद्धि, आध्यात्मिक उन्नति और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है।

हमारे देश में तीज-त्योहारों और धार्मिक अवसरों पर नदियों, सरोवरों और अन्य जल स्रोतों में स्नान करने की परंपरा है। इसे धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
कुंभ मेला और अर्धकुंभ मेला पूरे देश में चार स्थान प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक में आयोजित होता है
माघ मेला और मौनी अमावस्या को प्रयागराज (संगम तट) पर गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान करने से पुण्य प्राप्त होता है। मौन रहकर स्नान करना विशेष शुभ माना जाता है।
गंगा दशहरा हरिद्वार, वाराणसी, प्रयागराज, गढ़मुक्तेश्वर में
गंगा नदी के धरती पर अवतरण का पर्व है। ऐसा माना जाता है की इस दिन गंगा स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है।
कार्तिक पूर्णिमा (देव दीपावली) के अवसर पर हरिद्वार, वाराणसी, पुष्कर, प्रयागराज में स्नान का अपना महत्व है ।इस दिन गंगा, यमुना, नर्मदा और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने से हजारों यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है।
छठ पूजा के अवसर पर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, नेपाल और
जहां कहीं भी पूर्वांचल के लोग रहते हैं वहाँ पर श्रद्धालु उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए नदी, तालाब या जलाशय में स्नान करते हैं।
सोमवती अमावस्या के दिन गंगा, नर्मदा, कावेरी, यमुना आदि नदियों के तट पर स्नान की परंपरा है । जब अमावस्या सोमवार को आती है, तो इसे अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से विशेष पुण्य फल मिलता है।
राजस्थान के पुष्कर में आयोजित होने वाले पुष्कर मेला में पुष्कर झील में स्नान को पवित्र माना जाता है, विशेषकर कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर।महाशिवरात्रि के अवसर पर शिव स्नान परंपरा के अनुसार
वाराणसी, उज्जैन, हरिद्वार के अवसर पर गंगा स्नान और शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।मकर संक्रांति के अवसर पर गंगा सागर, प्रयागराज, हरिद्वार, काशी में सूर्य उत्तरायण के अवसर पर गंगा, नर्मदा, कावेरी आदि नदियों में स्नान का विशेष महत्व होता है।
वैशाख पूर्णिमा (बुद्ध पूर्णिमा) के अवसर पर बोधगया, कुशीनगर, लुंबिनी में गंगा, नर्मदा या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने से आध्यात्मिक शांति मिलती है।
अष्टका स्नान के अन्तर्गत पितृ तर्पण हेतु विभिन्न तीर्थ स्थल
पर पूर्वजों के तर्पण और मोक्ष प्राप्ति के लिए किया जाता है, जिसमें नदियों में स्नान का महत्व होता है।
भारतीय संस्कृति में जल को पवित्र और जीवनदायी माना गया है। विभिन्न त्योहारों और धार्मिक अवसरों पर नदियों और पवित्र जल स्रोतों में स्नान करने की परंपरा आत्मशुद्धि, मोक्ष प्राप्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने का माध्यम मानी जाती है।
एक तरफ़ जहां पूजा पाठ धार्मिक अनुष्ठान से पुण्य कमाने , मोक्ष प्राप्ति और पापों से मुक्ति की धारणा है वहीं हमारे देश में संत कबीर जैसे लोगों ने इसे आडंबर मानकर खुली आलोचना की है । संत कबीर ने अपने दोहों के माध्यम से धर्म के आडंबरों, पाखंड और बाह्य आडंबरों की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि केवल गंगा स्नान या तीर्थ यात्रा से पाप नहीं धुलते, बल्कि सच्ची भक्ति और अच्छे कर्म ही वास्तविक मोक्ष का मार्ग हैं।
माथे तिलक, हाथ में माला, बसते जपु अनंता।
मन काछा तन उजियारा, कैसे तरसि गंगा ता॥
कबीर कहते हैं की केवल माथे पर तिलक लगाने, हाथ में माला लेने और गंगा स्नान करने से कोई पवित्र नहीं होता। यदि मन अशुद्ध है और बुरे विचारों से भरा है, तो गंगा स्नान से कैसे उद्धार होगा?
कबीर का एक और दोहा भी बहुत प्रासंगिक है ।
दूध जले तो झाँछ पीये, तिसकी कौन बड़ाई।
भक्ति बिना निष्फल हैं, गंगा गोता खाई॥
कबीर कहते हैं की अगर किसी ने अच्छे कर्म नहीं किए, तो गंगा में डुबकी लगाने से कोई लाभ नहीं होगा। वास्तविक भक्ति और अच्छे कर्म ही व्यक्ति को सच्ची मुक्ति दिला सकते हैं।
कहावत है की ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा ‘ । कहने का आशय यह है की धर्म आडंबर और बाहरी कर्मकांडों से नहीं, बल्कि सच्चे हृदय, अच्छे कर्मों और भक्ति से होता है। केवल गंगा स्नान करने, मंदिर-मस्जिद जाने या तीर्थ यात्राएं करने से कोई पवित्र नहीं होता, बल्कि मन की शुद्धि और सच्चे आचरण से ही सच्चा धर्म स्थापित होता है। ओशो ने भी कहा है कि , पाप हम लोग करें और उसको गंगा धोएगी , ऐसा क्यों ?
दरअसल पवित्र नदियां और पवित्र धर्मस्थल आपके पापों को नष्ट करते हैं लेकिन उसके लिए जरूरी यह है कि आपका मन पूरी तरह शुद्ध हो । क्षमा का आकांक्षी हो । पाप के प्रति आपके मन में पश्चाताप हो । और धर्मस्थल के दर्शन करते हुए या पवित्र नदियों में स्नान करते हुए आप यह प्रतिज्ञा करें कि आगे से कोई पाप नहीं करेंगे । कोई बुरा काम नहीं करेंगे । किसी का मन नहीं दुखाएंगे । किसी के साथ छल नहीं करेंगे तो वह दर्शन या स्नान आपके पाप धोते हैं । अन्यथा जैसे आप घर में नहाए हैं वैसे ही नदी का नहाना भी रहेगा । निरर्थक ,सारहीन और पुण्य से खाली ।

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