:राजकुमार मल:
भाटापारा- कुछ इकाईयां बंद। कुछ ने उत्पादन घटा दिए हैं। कई पोहा मिलें ऐसी भी हैं, जहां कार्य दिवस कम किये जा चुके हैं। प्रतिकूल स्थिति का सामना कर रहीं पोहा मिलों को प्रतीक्षा है उस दिन की, जब धान की कीमत सामान्य स्तर पर आएंगी।
धान की आसमान छूती कीमत और पोहा उपभोक्ता राज्यों की कमजोर मांग के बाद अब शहर की पोहा मिलों के सामने नियमित संचालन एक ऐसी चुनौती बन चुकी है, जिसका स्थाई समाधान खोजा जा रहा है। विकल्प कोई है नहीं इसलिए कार्य अवधि, कार्य दिवस और उत्पादन घटाने जैसे निर्णय लिए जा रहे हैं। ऐसी इकाइयों की संख्या भी बढ़त की राह पर हैं, जहां अस्थाई रूप से बंद का फैसला लिया जा चुका है।

इसलिए फैसला
स्थानीय धान 2600 से 3000 रुपए क्विंटल। जबकि यही धान पड़ोस के राज्यों में 2200 से 2300 रुपए क्विंटल पर आसानी से उपलब्ध है। इसके अलावा तैयार उत्पादन को पोहा उपभोक्ता राज्यों में वैसा प्रतिसाद नहीं मिल रहा है, जैसा मिलना चाहिए। यह स्थिति इसलिए बन चुकी है क्योंकि पोहा का अंतरप्रांतीय बाजार भी प्रतिस्पर्धी हो चुका है। मजबूत खिलाड़ी के रूप में मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे राज्य छत्तीसगढ़ के सामने है।
विवशता में यह फैसला
महंगा होता पोहा क्वालिटी का धान। उपभोक्ता राज्यों में पोहा की कमजोर मांग। यह दो ऐसी प्रमुख समस्या पेश आ चुकी है जिसने पोहा उत्पादन करने वाली इकाइयों को कार्य अवधि, कार्य दिवस और अस्थाई बंद जैसी स्थितियों के लिए विवश कर दिया है। अपने स्तर पर लिए जा रहे ऐसे फैसलों का असर बहुत जल्द श्रम बाजार और मंडी प्रांगण में कमजोर मांग के रूप में देखे जाने की आशंका बनने लगी है।

चाहिए राइस मिलों की तरह सुविधा
प्रतिकूल स्थिति का सामना कर रहीं पोहा मिलों का मानना है कि राइस मिलों की तरह पोहा मिलों को भी उपार्जन एवं संग्रहण केंद्रों से उठाव की सुविधा मिलना चाहिए। इससे मिलों का संचालन और उत्पादन में निरंतरता बनी रहेगी। पोहा मुरमुरा निर्माता कल्याण समिति का एक बड़ा वर्ग इसके लिए मानसिकता बना रहा है तथा उच्च स्तर पर प्रयास करने की जरूरत बता रहा है।
पोहा क्वालिटी के धान की कीमत क्रय शक्ति से बाहर जा चुकी है। तैयार उत्पादन का बाजार भी बेहद कमजोर है। इसलिए काम के घंटे और कार्य दिवस कम करने के साथ अस्थाई बंद जैसे फैसले विवशता में लिए जा रहे हैं।
: रंजीत दावानी, अध्यक्ष, पोहा-मुरमुरा निर्माता कल्याण समिति, भाटापारा: