
श्रुति कुशवाहा
मैंने तुम्हें देख
आकाश-सी
विस्तृत हो गई कल्पनाएँ
पृथ्वी-सा
उर्वर हो गया मन
सारा जल
उतर आया आँखों में
अग्नि
दहक उठी कामना की
विचारों को मिल गए
वायु के पंख
देखो न कितना अच्छा है
देखना तुमको

भाषा
मेरे पास
वो भाषा नहीं है
जिसमें मैं
तुम्हें अलविदा कह सकूँ
तो जब तुम जाओ
जाते-जाते उस भाषा को
याद करना जिसमें मैंने प्रेम कहा था
प्रेम को अलविदा कहना
अभी भाषा ने सीखा नहीं