
मुहब्बत किसी को रुलाती नही है
मुहब्बत किसी को रुलाती नही है।
उठाती, किसी को गिराती नही है।
सहनशील सबको बनाती मुहब्बत,
मुहब्बत किसी को सताती नही है।
करती निछावर खुशियां, मां की मुहब्बत,
और मां की मुहब्बत कभी आजमाती नही है।
अगर रुह से रुह को है मुहब्बत,
मुहब्बत कभी शर्माती नही है।
समर्पण सिखाती,हमेशा मुहब्बत,
एहसां किसी पर जताती नही है।
किसी जन्म का अंकुरण है पनपता,
मुहब्बत है निर्मल ,किसी को लजाती नही है।

डॉ. निर्मला साहू “निर्मल” दंतेवाड़ा छत्तीसगढ़