(Parasnath Sammed peak) पारसनाथ सम्मेद शिखर पर जैन-आदिवासी विवाद सुलझाने की पहल

(Parasnath Sammed peak)

(Parasnath Sammed peak) दोनों समाज अपनी परंपराओं का करेंगे पालन

(Parasnath Sammed peak) रांची । पारसनाथ पहाड़ी सम्मेद शिखर पर जैन धर्मावलंबियों के बाद आदिवासियों और स्थानीय लोगों की दावेदारी से उपजे विवाद को हल करने के लिए आपसी सहमति बनाने की पहल हुई है। गिरिडीह जिले के उपायुक्त और झामुमो के विधायक सुदिव्य सोनू की मौजूदगी में इस मुद्दे पर त्रिपक्षीय बैठक हुई। इसमें तय किया गया है कि जैन और आदिवासी समाज के लोग परस्पर एक-दूसरे की परंपराओं का सम्मान करते हुए इस पहाड़ पर पूजा करेंगे। यह पहाड़ी दोनों समाज की मान्यताओं के अनुसार पूज्य स्थल है। आदिवासियों के लिए मरांग बुरू यानी देवता की पहाड़ी है, तो जैन धर्मावलंबियों के 20 तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि है। गिरिडीह के उपायुक्त नमन प्रियेश लकड़ा ने बताया कि सदियों से दोनों समाज के लोगों के बीच सौहाद्र्र और समन्वय रहा है और इसे बरकरार रखने का संकल्प लिया गया है।

(Parasnath Sammed peak) सनद रहे कि सम्मेद शिखर पारसनाथ पहाड़ी को पर्यटन स्थल के रूप में नोटिफाई किए जाने के विरोध में देश-विदेश में जैन धर्मावलंबी लगातार प्रदर्शन कर रहे थे। इसके बाद बीते 5 जनवरी को केंद्र सरकार ने इस नोटिफिकेशन में संशोधन करते हुए यहां पर्यटन की सभी गतिविधियां स्थगित करने का आदेश जारी किया था। केंद्र सरकार ने यहां मांस-शराब की बिक्री पर रोक लगाने और इस स्थान की पवित्रता को अक्षुण्ण रखने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने के निर्देश भी राज्य सरकार को दिए हैं।

(Parasnath Sammed peak) इसके बाद आदिवासी संगठनों ने पहाड़ी को अपना धरोहर और पूज्य स्थान बताते हुए इसपर दावा ठोंका है। धरोहर को बचाने के आह्वान के साथ आगामी 10 जनवरी को यहां देश भर के आदिवासियों से जुटने की अपील की गई है। आदिवासी संगठनों का कहना है कि इस स्थान पर सबसे प्राचीन समय से आदिवासी रहते आए हैं। यह पहाड़ हमारा मरांग बुरू है। मरांग का अर्थ होता है देवता और बुरू का अर्थ है पहाड़।

सदियों से हम यहां अपने प्राचीन तौर-तरीकों से पूजा करते आए हैं। अगर केंद्र या राज्य सरकार के किसी भी आदेश के जरिए यहां के मूल निवासियों और आदिवासियों को इस स्थान पर जाने या फिर अन्य तरह की परंपराओं के निर्वाह से रोका जाएगा तो इसका पुरजोर विरोध होगा। आदिवासी संगठनों के इस ऐलान से टकराव की आशंका पैदा होते ही जिला प्रशासन ने दोनों समाज के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की। तय हुआ कि जनवरी महीने में मकर संक्रांति मेला के अलावा सोहराय और महापरना में जैन समाज के लोग भी सहयोग करेंगे।

एक समन्वय समिति बनाने पर भी सहमति बनी, जिसमें श्वेतांबर-दिगंबर जैन समाज, आदिवासी समाज और स्थानीय बाशिंदों के प्रतिनिधि शामिल रहेंगे।

(Parasnath Sammed peak) हालांकि इस समन्वय बैठक से इतर मरांग बुरू पारसनाथ बचाओ समिति 10 जनवरी को यहां आदिवासी जुटान करने पर अडिग है। इसमें झामुमो के वरिष्ठ विधायक लोबिन हेंब्रम भी भाग लेंगे। समिति का कहना है कि सरकार की ओर से जारी नोटिफिकेशन में जब तक इस स्थल के साथ मरांग बुरू दर्ज नहीं किया जाता, तब तक आंदोलन जारी रखा जाएगा।

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