Muktibodh Jayanti मुक्तिबोध जयंती : ‘हम हैं समाज की तलछट’ में समाज और साहित्य पर गंभीर विमर्श

Muktibodh Jayanti

Muktibodh Jayanti मुक्तिबोध जयंती

Muktibodh Jayanti रायपुर। मुक्तिबोध की जयंती के मौके पर एक खास साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन किया गया। सिविल लाइन स्थित वृंदावन हॉल में आयोजित इस कार्यक्रम में जाने-माने साहित्यकार अशोक वाजपेयी और युवा कवि और आलोचक आशीष त्रिपाठी मुख्य वक्ता के रूप में शामिल हुए। ‘हम हैं समाज की तलछट’ (मुक्तिबोध की कविता में निम्नवर्ग) विषय पर अपने विचार रखे।

Muktibodh Jayanti कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार अशोक वाजपेयी ने कहा कि मुझे 60 से ज्यादा वर्ष हो गए हैं, मुक्तिबोध के साथ बिताते हुए लेकिन अभी भी उनको पढ़ते हुए कुछ न कुछ ऐसा मिला जाता है जो पहले न पढ़ा हो। हमेशा कुछ न कुछ नया जानने समझने को मिलता है। उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध ने अपनी रचनाओं के माध्यम से एक बुनियादी परिवर्तन किया। आमतौर पर माना गया है सद्चितआनंद मुक्तिबोध ने इसमें परिवर्तित करते हुए सद्चितवेदाना में बदल दिया।

Muktibodh Jayanti इसी तरह हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर आशीष त्रिपाठी ने कहा कि मैं खुद को मुक्तिबोध का विचार वंशज मानता हूं। मुझे यहां बुलाने के लिए मैं उनके परिवार का धन्यवाद करता हूं। ‘अंधेरे में कविता जन इतिहास का इस्पाती दस्तावेज है।

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Muktibodh Jayanti मुक्तिबोध जयंती : ‘हम हैं समाज की तलछट’ में समाज और साहित्य पर गंभीर विमर्श

Muktibodh Jayanti मुक्तिबोध हिंदी साहित्य के निराला के बाद सबसे ज्यादा प्रभावशाली संवेदना और आलोचना को हिलाए हुए कवि हैं। साथ ही आचार्य रामचंद्र शुक्ल के बाद कविता के सबसे मौलिक आलोचक मुक्तिबोध हैं। इस तरह बीसवीं सदी के दो प्रमुख हस्ताक्षर निराला और रामचंद्र शुक्ल के सम्मुख मुक्तिबोध खड़े होते हैं। उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध की संवेदना समाज को लेकर 1950 में वो देख पा रही थी जो आज हमारे सामने मौजूद है। मुक्तिबोध की आशंकाएं आज यथार्थ साबित हुईं।

Muktibodh Jayanti मुक्तिबोध स्मृति का ये 12वां आयोजन था। इसे गजानन माधव मुक्तिबोध के चारों बेटे रमेश मुक्तिबोध, दिवाकर मुक्तिबोध, दिलीप मुक्तिबोध और गिरीश मुक्तिबोध ने आयोजित किया। कार्यक्रम में राजधानी के तमाम साहित्य प्रेमियों ने शिरकत की।

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