:दिलीप गुप्ता:
सरायपाली :- बेटा दूज का व्रत एक अत्यंत पवित्र और पारंपरिक पर्व है,
जिसे विशेषकर महिलाएं अपने पुत्र एवं पुत्री की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य
की कामना के लिए करती हैं। यह व्रत केवल व्यक्तिगत पूजा तक सीमित नहीं होता
बल्कि इसे सामूहिक रूप से भी बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ संपन्न किया जाता है।
इस दिन महिलाएं संकल्पपूर्वक निर्जला व्रत रखती हैं। निर्जला व्रत का अर्थ है कि व्रती दिनभर जल तक का सेवन नहीं करती और पूरी आस्था एवं निष्ठा के साथ अपने संतान की मंगलकामना में पूजा करती हैं।

प्रातः काल महिलाएं स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करती हैं और व्रत का संकल्प लेती हैं। पूजा स्थल को पवित्र कर उसमें कलश की स्थापना की जाती है। पूजा सामग्री में विभिन्न प्रकार के फल, पुष्प, दूब (दूर्वा), नारियल, अक्षत चावल एवं नए आभूषण मिठाई और पंचमेवा रखे जाते हैं।
सामूहिक रूप से महिलाएं मिलकर भजन-कीर्तन करती हैं और देवी-देवताओं का आह्वान करती हैं। इस व्रत में दूब और नारियल का विशेष महत्व है। दूब को अमरत्व और लंबी उम्र का प्रतीक माना जाता है, जबकि नारियल पवित्रता और शुभता का प्रतीक है।
पूजा के क्रम में महिलाएं अपने पुत्र और पुत्रियों की लंबी उम्र और सुखी जीवन की कामना करते हुए मंत्रोच्चार के साथ दूब और नारियल से उनकी सात बार आरती उतारती हैं। इस समय महिलाएं यह भावना रखती हैं कि उनके बच्चों पर कोई विपत्ति न आए और उनका जीवन सदैव खुशहाल एवं स्वस्थ रहे।

आरती और पूजा के बाद संतानें अपनी मां और घर के बड़ों का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। मां भी अपने बच्चों को दीर्घायु और समृद्धि का आशीर्वाद देती है। यह व्रत सामूहिकता और पारिवारिक एकता का भी प्रतीक है। महिलाएं एक साथ बैठकर पूजा करती हैं और एक-दूसरे को व्रत की कथा सुनाती हैं।
कथा और पूजा के बाद सभी महिलाएं अपने व्रत को तोड़ती हैं। व्रत का पारण अगले दिन प्रातःकाल किया जाता है, जब महिलाएं स्नान-ध्यान करके भगवान की पूजा करती हैं और संकल्प मुक्त होकर फलाहार या अन्न ग्रहण करती हैं।
बेटा दूज का यह पर्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह बच्चों और माताओं के बीच के गहरे रिश्ते और स्नेह का भी प्रतीक है। इस व्रत के माध्यम से माता अपनी संतान की रक्षा और उनकी लंबी आयु के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती है और यह मान्यता है कि इस व्रत का फल संतान को आयु और माता को संतोष प्रदान करता है।
यह पूजा महलपारा के वार्डवासी सतपथी बाड़ी में कई वर्ष से करते आ रहे हैं ।