MEDIA: सवाल पूछने की आजादी तो है… पर उसके बाद के आजादी की कोई गारंटी नही-सिद्धार्थ वरदराजन

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छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता में एक नया आगाज आज हो गया है. द लेंस ने प्रदेश की पत्रकारिता में मजबूत कदम रखा है. वरिष्ठ पत्रकार रूचिर गर्ग के मार्गदर्शन और बेहतर नेतृत्व में द लेंस काम करेगी.

कार्यक्रम के अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. और चर्चित लेखक प्रो अपूर्वा नंद ने द लेंस.इन की टीम को बधाई दी. उन्होने कहा कि  छत्तीसगढ़ आज और आने वाले भविष्य में देश के जनतंत्र का इम्तहान कैसे होगा यह साबित किया प्रदेश में सच बोलना और सही सवाल खोजना चुनौती होगी. आज के वक्त किसी ने यह फैसला किया और खड़े हुए वह सराहनीय है.

प्रो. अपूर्वा नंद ने कहा कि आज के आयोजन से ही पता चल जाता है कि छत्तीसगढ़ में सवाल खोजना कितना मुश्किल है और उसका जवाब भी कितना मुश्किल है यह आज के आयोजन से हमें पता चल जाता है.आज हम खुले में बैठे है जो गलत नही पर यह जगह हमें 24 घंटे के भीतर मिली है- लोग कहते हैं हम जनतंत्र में रहते हैं.भारत जिस दौर में है क्या भारत को उन सवालों का अहसास है जो उन्हे पूछना चाहिए. लेकिन उन्हे अहसास कौन कराएगा.

जैसे  हमें  भ्रम होता है हम अपने विद्यार्थियों के जरिये विद्यार्थियो को अपने शोध के जरिए अध्ययन-कक्षाओं के जरिए हम उन सवालों को खोजना सीखाते है. उनका उत्तर देना सीखाते हैं- लेकिन आज से 100 साल पहले माखनलाल चतुर्वेदी जी ने पत्रकारिता पर व्याख्यान दिया था. उन्होने पत्रकारिता और विश्वविद्यालयों की तुलना की थी उन्होने कहा था कि एक स्तर पर पत्रकारिता का दायित्व विश्वविद्यालयों  के दायित्व से कही अधिक गंभीर है क्योंकि पत्रकार अखबारों के जरिए तथ्य बतलाते थे जानकारी और विश्लेषण बतलाते है. अध्यापक भी वही करते थे शोधकर्ता शोध पत्र में  गलती करते हैं तो उनके लोग ही उनकी गलती ढूंढ कर दुरूस्त कर देते हैं. पर पत्रकार गलती करेगा तो समाज पर  गलत असर पड़ेगा शोध पत्र की भरपाई दूसरे शोध पत्र से हो सकती है पर पत्रकारिता की जानबूझकर की गई गलती की भरपाई नही हो सकती माखनलाल चतुर्वेदी जी के कहे शब्द आज की पत्रकारिता में दिखाई देती है.

 

प्रो-  अपूर्वा नंद ने कहा कि पिछले 10 साल में भारत की पत्रकारिता ने लोगो को गुमराह किया है 10 साल से मीडिया ने मनगढ़ंत तथ्य प्रस्तुत किया है हम सच्चाई को नही देख पाते पूरी दुनिया में यही सवाल पूछा जा रहा है गाजा में जो हो रहा है उस सच को भी रिपोर्ट नही किया जा रहा गाजा में इस वक्त सबसे बड़ा इम्तिहान है यूरोप-अमेरिका के कई बड़े समाचार संस्थान सच दिखाने में विफल हो गए वे न तो सच देखना चाहते है और न ही चाहते है कि उनके पाठक सच देखे भारत में भी ऐसा ही हो रहा है वक्फ बोर्ड पर सर्वोच्च न्यायालय ने 3 प्रश्न किये पर मीडिया ये सवाल नही पूछ पाई. सुको ने पूछा तब मीडिया संसथानों के सामने मजबूरी हो गई की इसे कवर करें.

कबीर जी ने कहा था सांच कहे तो मारन धावे अब हम सच देखने से घबराने लगे है ऐसे में लेंस का काम गंभीर हो गया है जनता को नफरत के नशे से बाहर निकालना है उससे बाहर लाना है जनता को सच देखने का साहस पैदा करना होगा यह नशा 10 साल का है इससे बाहर लाना होगा.

प्रख्यात पत्रकार और जानीमानी लेखिका नीरजा चौधरी ने कार्यक्रम को संबोधित किया. उन्होने कहा कि मुझे इस एतिहासिक पल के लिए बुलाया उसके लिए आभारी हूं द लेंस.इन की टीम को बधाई उनके उत्साह उर्जा देख लगा यह टीम बहुत दूर जाने वाली है.  महिला सशक्तीकरण का मुद्दा दर्शाने वाले हैं मैं चुनाव के समय देश मे घुमती हुं और युवा महिलाओं से मिलती हूं तो कहना चाहती हूं यह सदी युवा महिलाओं की होने वाली है उनमें आसमान से तारे तोड़ने की चाह है एक 90 साल की हैदाराबाद की महिला से मैने पूछा  कि वे अपनी नातियों के लिए क्या चाहती है तो उन्होने कहा  कि वे पढ़ लिखकर अपने पैर पर खड़े हो जाए. इसी तरह मुजफ्फरपुर में एक 10 साल की छोटी दलित लड़की जो स्कूल छोड़ चुकी थी उसकी मां काम करती है. मैने पूछा तुम क्या बनना चाहती हो 10 मिनट तक वह कुछ नही बोली फिर एक शब्द बोली कम्प्यूटर. तो आप इस उर्जा को कुछ देर टाल सकते हो पर रोक नही सकते.

लेखिका नीरजा चौधरी ने आज के प्रश्न और पत्रकारिता का उत्तर को गंभीर मुद्दा बताया उन्होने कहा कि एआई सबसे बड़ा सवाल है ये 10 साल में हमारी चित्र नही बल्कि जिंदगी बदल देगी.  पूरा समाज बदल जाएगा इसके लिए हमें सोचना पड़ेगा सोशल मीडिया ने मीडिया का रोल बदल दिया है. पत्रकार सवाल करता है लेकिन पत्रकार लोगों के सामने सच रख सकता है. द लेंस . इन का लोगो सच साफ-साफ बहुत बेहतरीन है. मीडिया का रोल पब्लिक रिलेशन नही करना है न किसी सरकार न किसी पार्टी के लिए मीडिया का रोल सच दिखाना और पावर को आईना दिखाना जब मैने पत्रकारिता शुरू की थी तब लोग कहते थे अखबार में लिखा है वो सच ही होगा. पर आज के दौर में ऐसा नही है पत्रकारिता पर भरोसा खत्म हो रहा है. पर आज भी देश में कई पत्रकार हैं जो सच दिखाने का साहस रखते हैं नए जमाने में पॉलिटिकल पत्रकारिता होती है. नेता भी अपने चहेते पत्रकारों से बात करते है. पर आडवाणी जी सभी पत्रकारों से संसद में बात करते थे . पर आज नेता सोशल मीडिया पर ही अपनी बात रखते हैं पर हमें मीडिया के वास्तविक रोल को बचाना है और उसी डगर पर चलना है.

 

जाने माने पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन ने टीम को बधाई दी. उन्होने कहा-पत्रकारिता  में आपने बड़ी संजीदगी से साथ रास्ते का चयन किया देश में ऐसा सियासी माहौल है कि मीडिया सवाल पूछने से दूर भाग रहा है.  ऐसी ही सवाल है कि क्या लोकतंत्र का मतलब केवल चुनाव से जुड़ा है क्या चुनाव के अलावा लोकतंत्र का कोई मतलब नही है.  लोकतंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा  है वह खोते जा रहे है लोकतंत्र में आपको हर दिन हर रोज मौका मिलता है  कि आप अपने हक की आवाज या सवाल पूछ सकते हैं अगर हम इमानदारी से पूछे तो क्या भारत के लोगों को उनका यह हक मिल रहा है तो पाएंगे कि देशवासियों को यह अधिकार नही मिल रहा है लोकतंत्र की कल्पना की गई थी कि चुनाव के साथ-साथ अलग-अलग संस्था देखे की सरकार सही काम कर रही है या नही  कानून के तहत काम कर रही है या नही देश में शिक्षा वैज्ञानिक तरिके से चले  पर आज हम इन सभी को देखे तो पाएंगे इनमें से कोई भी संस्था ठीक से काम नही कर पा रही है  पिछले 10 साल में हमने सुना की सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैसले पर सवाल उठाया. उसी तरह उप राष्ट्रपति जी ने सुप्रीम कोर्ट  की सुनवाई पर सवाल उठाया उससे ही पता चल जाता है कि यह सरकार सभी पर नियंत्रण रखना चाहती है. आज कई संस्थान कमजोर हो गए पर मीडिया में कोई  चर्चा नही हो रही.

दूसरा सवाल यह कि क्या चुनाव फ्री और फेयर तरिके से हो सकता है. हम इवीएम पर सवाल नही कर रहें लेकिन जिस तरह से धन का प्रयोग चुनाव में होता है उद्योगपतियों को डोनेशन दिया जा रहा एक खास पार्टी को उसमें  बीजेपी को 83 प्रतिशत चंदा मिला है ऐसे में हम फेयरचुनाव की बात कैसे सोच सकतें हैं पिछले 75 साल में चुनावों में धन का उपयोग कम किया जाए पर  यह बढ़ता जा रहा है. भारत के प्रदेशों के अधिकारों को कम किया जा रहा उनको एंटीनेशलन बताया जा रहा प्रदेशों के अधिकारों पर लगातार हमला हो रहा है उस पर कोई चर्चा नही होती आज का आखिरी सवाल कि क्या हम आजाद है  प्रश्न उठाने के लिए क्या कुणाल कामरा आजाद नही था लतीफा सुनाने उसने केवल गद्दार शब्द कहा लेकिन केस हो गया उसे मुंबई से भागकर  चेन्न्ई जाना पड़ा खतरे में पड़ गया. ऐसे ही कई फिल्मकार लेखकों के साथ यही हो रहा उन्होने कहा कि सवाल पूछने की आजादी है पर सवाल पूछने के बाद आप आजाद है इसमें मोदी की कोई गारंटी नही है. जो सवाल उठाते है उन पर एफआईआर  हो जाता है.