लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती की हालिया रैली ने पार्टी में नई जान फूंक दी है। रैली में उमड़ी भारी भीड़ ने बसपा कैडर को दोबारा सक्रिय कर दिया है। पार्टी नेताओं ने रैली के बाद से ही गांव-गांव पहुंचने का अभियान तेज कर दिया है। माना जा रहा है कि 16 अक्टूबर को प्रस्तावित राज्यस्तरीय बैठक में मायावती संगठन को सोशल इंजीनियरिंग से जुड़ा विशेष टास्क सौंप सकती हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, मायावती ने रैली के मंच से अपने पारंपरिक वोट बैंक को एकजुट करने का स्पष्ट संदेश दिया था। उन्होंने प्रतीकात्मक रूप से अपनी कुर्सी के साथ ब्राह्मण, क्षत्रिय, पिछड़ा वर्ग और मुस्लिम समाज का प्रतिनिधित्व करने वाला गुलदस्ता बनाकर पेश किया। पार्टी अब इस संदेश को स्तर तक पहुंचाने की तैयारी में है। माना जा रहा है कि यह फॉर्मूला समाजवादी पार्टी के पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) समीकरण की बड़ी चुनौती बन सकता है।
हालांकि फिलहाल बसपा ने इस दिशा में कोई औपचारिक अभियान शुरू नहीं किया है, लेकिन कार्यकर्ताओं का मानना है कि 16 अक्टूबर की बैठक में मायावती इस पर ठोस निर्देश दे सकती हैं।
बसपा के वरिष्ठ नेता ने बताया कि रैली के बाद पार्टी में उत्साह साफ दिखाई दे रहा है। उनका कहना है कि 16 अक्टूबर की बैठक में मायावती के दिशा-निर्देशों के बाद पार्टी की रणनीति स्पष्ट हो जाएगी।
बसपा प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने कहा कि मायावती जो कहती हैं, वह जमीन पर जरूर उतरता है। रैली में आई भीड़ बूथ लेवल की लगातार बैठकों और संगठनात्मक मेहनत का परिणाम है। उन्होंने कहा कि पार्टी नेता गांव-गांव जाकर बसपा के सामाजिक संतुलन के फॉर्मूले को समझा रहे हैं और सेक्टर स्तर पर संगठन का विस्तार कर रहे हैं।
पाल ने सपा के पीडीए फॉर्मूले पर निशाना साधते हुए कहा कि समाजवादी पार्टी सिर्फ लोगों को भ्रमित कर रही है। कभी ‘ए’ का अर्थ आदिवासी बताती है, तो कभी अगड़ा। इससे उनका उद्देश्य केवल लोगों को गुमराह करना है।
बसपा का मानना है कि सामाजिक समीकरण की अपनी पुरानी नीति को नए सिरे से लागू कर वह प्रदेश की राजनीति में फिर से मजबूती से वापसी कर सकती है।