Marginalized politics : हाशिए पर दक्षिण भारत का एक और स्टॉर

marginalized politics : हाशिए पर दक्षिण भारत का एक और स्टॉर

Marginalized politics : हाशिए पर दक्षिण भारत का एक और स्टॉर

Marginalized politics : चाल- चरित्र और चहरे वाली पार्टी एक हाई क्लॉस स्टॉर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी बन कर रह गई है। यहां देश के सर्वोच्च पद से लेकर दूसरे नंबर तक के पद के लिए भी चुन-चुन कर स्टॉर लाए जाते हैं।

सियासी गणित बैठाकर उनको लोकतंत्रीय ढांचे में फिट कर दिया जाता है। ऐसा एक दो बार नहीं कई बार हो चुका है। तो वहीं इनको लोगों को हाशिए पर रखने में भी महारत हासिल है।

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लाल कृष्ण आडवाणी हों या फिर सुषमा स्वराज इनको जिस तरह से हाशिए पर रखा गया। उसको भी देश के युवा और बुध्दिजीवी वर्ग के लोग जानते हैं। आज उन्हीं हाशिए पर जाने वाले लोगों की तादाद में एक और ईजाफा हो गया।

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इस में देश के पूर्व उपराष्ट्रपति का नाम भी जुड़ गया। हालांकि ये वो पूर्व उपराष्ट्रपति हैं जो उस पद के लिए कतई तैयार ही नहीं थे। उन्होंने कहा था कि, मैं न राष्ट्रपति और न ही उपराष्ट्रपति बनना चाहता हूं. मैं उषा का पति बनकर ही खुश हूं.।
बहुत से लोगों को नहीं पता होगा कि उषा, वेंकैया नायडू की पत्नी का नाम हैं।

दक्षिण भारत से आने वाला ये स्टॉर एक समय में भारतीय जनता पार्टी शान हुआ करता था। अब उनको बड़े ही करीने से हाशिए पर रख दिया गया।

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उसके पीछे बहाना ये भी है कि अब वेंकैया नायडू 73 साल के हो चुके हैं। भारतीय जनता पार्टी में 70 साल से अधिक के नेताओं को स्थान नहीं मिलता है।

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यही कारण है कि राजनीतिक गलियारों के लोगों ने अभी से योगी आदित्यनाथ को भारत के अघोषित प्रधानमंत्री के रूप में देखना शुरू कर दिया है।

हाशिया करण की सियासत की शुरूआत वैसे तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से शुरू हुई । छोटा भाई और मोटा भाई की जोड़ी ने जिस तरह चोटी के नेताओं को साइड लाइन में डाला,

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वह किसी से भी छिपा नहीं है। बड़े पदों पर कैसे अपने मोहरे फिट किए जाते हैं इस काम में भी मोटा भाई को महारत हासिल है। भारत की उस बड़ी नेत्री को हाशिए पर ठेल कर उसकी जगह इन लोगों ने जिसको फिट किया।

वो कभी भी उस नेत्री की कमी को पूरा नहीं कर सकतीं। इससे भी बड़ी पीड़ा देश के उस कद्दावर नेता को उस समय भोगनी पड़ती रही होगी, जब उनको प्रमुख अवसरों पर बुलाया जाता था।

सामने की कुर्सी पर बैठाया जाता रहा, और मंच पर वो लोग होते थे, जो कभी उसी इंसान के आगे-पीछे दौड़ा करते थे। उसके बाद वहां जब ये वाक्य दुहराया जाता रहा होगा कि हम बुजुर्गों का सम्मान करते हैं ।

तो फिर उस इंसान को कैसा लगता होगा ? जिसने अपनी पूरी जिंदगी उसी पार्टी को मजबूत करने में खपा दी। जिसके रणनीतिकारों ने उनको हाशिए पर डाल दिया ?
वेंकैया नायडू उप राष्ट्रपति के पद से रिटायर हो गए। यह तो पूरा देश जानता है।

पर अघोषित तौर पर उनको भाजपा की सियासत से भी रिटायर कर दिया गया। इसको बहुत कम लोग जाते हैं। कुल मिलाकर दक्षिण भारत का एक स्टॉर हाशिए पर चला गया।

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जब कि ये वही देश है जहां उप राष्ट्रपति बनने वाले तमाम नेता राष्ट्रपति बनाए गए। इनमें डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जाकिर हुसैन, वी वी गिरी, आर. वेकेटरमण, शंकर दयाल शर्मा और के आर नारायणन जैसे नेता शामिल थे।

कहीं न कहीं वेंकैया नायडू के भी मन में ये उम्मीद रही होगी कि उनको भी नाम कभी पार्टी राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में सामने लाएगी। पर ऐसा नहीं हो सका। वहीं चाल-चरित्र, चेहरे वाली पार्टी के रणनीतिकारों ने उनको दरकिनार कर दिया।

हाशिए की सियासत को किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता है। चाल-चरित्र और चेहरे वाली पार्टी जिस वैचारिक पवित्रता का ढोंग रच रही है।

उन्हीं की नाक के नीचे वंशवाद की लंबी-लंबी बेल, दिल्ली दरबार की शीतल हवाओं में अटखेलिया कर रही हैं। साथ ही ईमानदारी तो तभी होगी जब वे खुद भी इसी हाशियाकरण की अदालत में ठीक वैसे खड़े किए जाएंगे।

जैसे इन्होंने पार्टी के पुरोधा नेताओं को खड़ा किया था। ऐसा कब और कैसे होगा ? इस सवाल का जवाब अभी भविष्य के गर्भ में छिपा हुआ है। इसके लिए हम सभी को करना होगा समय का इंतज़ार।

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