Kumbhi’s legacy- आदिवासी जनजीवन में रचे-बसे कुंभी की विरासत खत्म हो रही

छत्तीसगढ़ के 6 जिलों में ही बचे हैं इनके अवशेष

राजकुमार मल
भाटापारा। एक मात्र ऐसी प्रजाति जो सूखा प्रतिरोधी तो है ही, साथ ही शुष्क और अर्ध शुष्क क्षेत्र में जोरदार ग्रोथ लेती है। नाम है ‘कुंभी’ जिसे पौधरोपण की योजना में शामिल किए जाने के प्रयास हैं।
अवैध कटाई और बढ़ते शहरीकरण के दौर में कुंभी के वृक्ष केवल 6 जिलों में ही रह गए हैं। शेष 30 जिलों के वनों से गायब हो चुके हैं। पहली बार ध्यान में इसलिए लिया जा रहा है क्योंकि कुंभी के वृक्ष जलवायु परिवर्तन के दौर में भी न केवल हरियाली बनाए रखने में सक्षम हैं बल्कि मिट्टी की प्राकृतिक गुणवत्ता को बनाए रखते हैं।
इसलिए गंभीरता
फिलहाल कोरबा, बस्तर, रायगढ़, सरगुजा, महासमुंद, कांकेर जिलों में ही कुंभी के वृक्ष शेष रह गए हैं। बेहद अहम है इसमें सूखा प्रतिरोधी के गुण का होना। ऐसे ही मौसम में कुंभी भरपूर बढ़वार लेता है। हैरत इसलिए क्योंकि सूखे दिनों में भी हरियाली रहती है इसके वृक्ष में। यही वजह है कि पशु-पक्षियों को भोजन और आश्रय के लिए ज्यादा दूरी तय नहीं करनी पड़ती।

विशाल है उपयोग क्षेत्र
छाल से बनाया गया काढ़ा का सेवन आदिवासी समुदाय वर्षों से करता आ रहा है क्योंकि सूजन और संक्रमण कम करता है। पत्तियों में एंटीसेप्टिक तत्व होते हैं। जिसका उपयोग घाव से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है। कच्चे फलों की सब्जियां बनाई जाती है, तो इसके बीज को आदिवासी समुदाय में जंगली बादाम कहा जाता है। पत्तियां बड़ी होतीं हैं इसलिए दोना एवं पत्तल बनाने व उपयोग का चलन आदिवासी समुदायों में शुरू से रहा है। छाल के रेशे से रस्सियां और जाल भी बनाए जाते हैं।
एक नजर कुंभी पर…
9 से 18 मीटर तक ऊंचे हो सकते हैं कुंभी के वृक्ष। पत्तियां, फल और बीज आय का मजबूत जरिया बन सकती है। छाल और तना से भी आय बढ़ाई जा सकती है। सबसे अहम गुण यह है कि कुंभी को सबसे कम पानी की जरूरत होती है बढ़वार के लिए। जलवायु परिवर्तन के दौर में कुंभी के वृक्ष हरियाली बनाए रखने में भरपूर मदद कर सकते हैं।
हरियाली बनाए रखने की क्षमता
कुंभी एक अत्यंत उपयोगी और सूखा प्रतिरोधी वृक्ष है, जो जलवायु परिवर्तन के दौर में हरियाली बनाए रखने की क्षमता रखता है। इसकी पारंपरिक उपयोगिता, कम जल आवश्यकता और पारिस्थितिक संतुलन में भूमिका इसे वानिकी योजनाओं में प्राथमिकता का पात्र बनाती है।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर

Related News

Related News