Kargil Vijay Diwas : कारगिल के 23 साल, प्राणों की आहुति देकर सपूतों ने बढ़ाया था भारत का मान
23 साल पहले कारगिल युद्ध में भारत के वीर सपूतों ने जिस अदम्य साहस का परिचय दिया था, वह इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गया है, जब भी कारगिल युद्ध का जिक्र होता है, तो खुद-ब-खुद इन वीर सपूतों के सम्मान में सिर झुक जाते हैं। हम सबको उनकी शहादत पर नाज है।
अपनी जान की बाजी लगाकर भारत मां के लालों ने पाकिस्तानी सैनिकों को रणछोड़ बना दिया था। दो महीने तक चली जंग में हमारे पांच सौ से ज्यादा वीर सपूत शहीद हो गए।
सैकड़ों पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। साल 1971 में भारत-पाकिस्तान से ज्यादा कारगिल युद्ध-1999 में भारत के जवान शहीद हो गए और पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। जिले के वीर सपूतों ने अपनी जिंदगी देश के लिए न्योछावर कर दी।
आखिरकार, 26 जुलाई 1999 में वीर योद्धाओं ने जंग जीतकर भारत की ताकत का एहसास कराया और पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस पर जांबाज योद्धाओं की जुबानी सुनिए…
कारगिल विजय की कहानी।
कारगिल युद्ध में जिले के चार सपूत हुए थे शहीद
– कारगिल युद्ध में चंडौस के गांव जौहरा निवासी राजपूत रेजीमेंट के जवान योगेंद्र सिंह, इगलास के नरेश, अतरौली के राजगांव निवासी सूबेदार राजवीर सिंह, इगलास के गांव खैमकावास निवासी व कारगिल विजय ऑपरेशन नाइन महार के जवान प्रेम पाल सिंह शहीद हुए थे।
टाइगर हिल पर कब्जा करने में की थी मदद : कर्नल सिंह
– कर्नल जगरूप सिंह के मुताबिक, कारगिल युद्ध के दौरान शारीरिक मजबूती और कमांडो प्रदर्शन के आधार पर चयनित 10 अधिकारियों की एक टीम को सेना मुख्यालय से गठित किया गया था, जिसे मई 1999 की शुरुआत में 15वीं कोर श्रीनगर भेजा गया था। बाद में उसे द्रास सेक्टर में स्थानांतरित कर दिया गया।
मैं उस वक्त मेजर के पद पर तैनात था। हमारी टीम में जकरिफ, जाकली और हिमाचल स्काउट्स के जवान शामिल थे। हमें दो कार्य दिए गए थे। एक 29 जून 1999 को एक विशेष टास्क फोर्स के रूप में दुश्मन पर हमला
, क्षेत्र पर कब्जा करने में ब्लैक रॉक थ्री पिंपल्स और नोल फाइटिंग ब्रिगेड 56 की मदद करना था और दूसरा 4 जुलाई 1999 को फाइटिंग ब्रिगेड द्वारा क्षेत्र टाइगर हिल पर कब्जा करने में मदद करना था। हमने आखिरकार लक्ष्य पर कब्जा कर लिया।
चट्टान को काटकर बना दिया था मार्ग : कैप्टन खान
– सेवानिवृत्त कैप्टन आसीन खान सेना के इंजीनियरिंग कोर में थे। उन्होंने बताया कि कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सैनिकों को मात देने के लिए पहाड़ों पर दुर्गम चढ़ाई थी। उनके कोर को कारगिल की लिली टॉप तक दो-दो फुट चौडे़ और एक-एक किलोमीटर के करीब लंबे तीन मार्ग बनाने को जिम्मेदारी दी गई।
जवानों ने रातों-रात चट्टान को काटकर रास्ते बना दिए। पैदल सेना इसी मार्ग के सहारे पहाड़ियों पर चढ़ी और पाकिस्तानी सैनिकों पर हमला बोल दिया। इस हमले में बहुत से पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। कैप्टन खान ने कहा कि एक बार उनके कैंप के पास पाकिस्तानी सैनिकों ने मोर्टार फेंका। सुखद ये रहा कि कोई जनहानि नहीं हुई। पाकिस्तानियों की हार पर वीर सपूतों ने खुशी मनाई।